नवरात्रि प्रारंभ, जानें कलश स्थापना का सर्वश्रेष्ठ शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र और सामग्री

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रजत शर्मा 

शारदीय नवरात्रे आज 17 अक्तूबर, शनिवार से प्रारंभ हो गए हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष आश्विनमास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर घटस्थापना के साथ नौ दिनों तक देवी दुर्गा की आराधना की जाती है। इस बार मलमास का महीना होने के कारण नवरात्रे एक माह की देरी से शुरू हो रहे हैं। 

नवरात्रि का अर्थ होता है नौ रातें। इन नौ दिनों में देवी के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। वर्ष के 4 नवरात्रों में से चैत्र और अश्विन माह के नवरात्रों का विशेष महत्व होता है। नवरात्रों के पहले दिन कलश स्थापना करके लगातार नौ दिनों तक उपवास और साधना करते हुए नवमी तिथि पर नवरात्रे सम्पन्न होते हैं। आइए जानते हैं नवरात्रि का महत्व और पूजा की विधि।

 

नवरात्रि का महत्व

 

मान्यता है कि नवरात्रि पर देवी दुर्गा पृथ्वी पर आती हैं, जहां वे नौ दिनों तक वास करते हुए अपने भक्तों की साधना से प्रसन्न होकर उनको आशीर्वाद देती हैं। नवरात्रों में देवी दुर्गा की साधना और पूजा-पाठ करने से आम दिनों के मुकाबले पूजा का कई गुना ज्यादा फल की प्राप्ति होती है। नवरात्रि पर ही विवाह को छोड़कर सभी तरह के शुभ कार्यों की शुरूआत करना और खरीदरारी करना बेहद ही शुभ माना जाता है। मान्यता है भगवान राम ने भी लंका पर चढ़ाई करने से पहले रावण संग युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए देवी की साधना की थी। नवरात्रि पर सभी शक्तिपीठों पर विशेष आयोजन किए जाते हैं जहां पर भारी संख्या में लोग माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनके दरबार में शीश झुकाने जाते हैं।

 

नवरात्रि घटस्थापना का महत्व

 

नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है जिसे कलश स्थापना भी कहते हैं। पहले दिन घटस्थापना का विशेष महत्व होता है। प्रतिपदा तिथि पर कलश स्थापना के साथ ही नौ दिनों तक चलने वाला नवरात्रि का पर्व आरंभ हो जाता है। पहले दिन में विधि-विधान से घटस्थापना करते हुए भगवान गणेश की वंदना के साथ माता के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा, आरती और भजन किया जाता है।

 

घटस्थापना 2020 सर्वश्रेष्ठ शुभ मुहूर्त

 

आज 17 अक्तूबर को शनिवार के दिन वैसे तो राहुकाल और अशुभ चौघड़ियाओं को छोड़कर आप पूरे दिन कभी भी घट स्थापना कर सकते हैं। लेकिन आज पूरे दिन विषकुंभ योग होने के कारण अभिजीत मुहूर्त जो पूर्वान्ह 11 बजकर 43 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 28 मिनट तक रहेगा। इस मुहूर्त में कलश स्थापना कर नवरात्रि का शुभारंभ करना सर्वश्रेष्ठ रहेगा। शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि पर कलश स्थापना के लिए सभी 27 नक्षत्रों में से पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद, हस्ता, रेवती, रोहिणी, अश्विनी, मूल, श्रवण, धनिष्ठा और पुनर्वसु शुभ होता है।

 

नवरात्रि पूजा सामग्री

 

नवरात्रि पर कलश स्थापना के लिए कुछ पूजा की चीजों का आवश्कता होती है।

 

मिट्टी का कलश

सात तरह के अनाज

पवित्र मिट्टी

गंगाजल

पान और सुपारी

जटा नारियल

अक्षत

माता की लाल चुनरी

फूल और श्रृंगार का सामान

आम के पत्ते

घटस्थापना विधि

 

शारदीय नवरात्रि 2020 के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि पर सुबह शुभ मुहूर्त को ध्यान में रखते हुए घर के उत्तर-पूर्व दिशा में कलश स्थापना के लिए उपयुक्त होती है। इसके लिए घर के उत्तर-पूर्वी हिस्से में अच्छे से साफ-सफाई करनी चाहिए। घटस्थापना वाले स्थान को गंगा जल से स्वच्छ करें और जमीन पर साफ मिट्टी बिछाएं, फिर उस साफ मिट्टी पर जौ बिछाएं। इसके बाद फिर से उसके ऊपर साफ मिट्टी की परत बिछाएं और उस मिट्टी के ऊपर जल छिड़कना चाहिए। फिर उसके ऊपर कलश स्थापना करनी चाहिए।

 

गले तक कलश को शुद्ध जल से भरना चाहिए और उसमें एक सिक्का रखना चाहिए। कलश के जल में गंगा जल अवश्य मिलाएं। अगर संभव हो तो कुछ और पवित्र नदियों का जल भी आप कलश के जल में मिला सकते है। इसके बाद कलश पर अपना दाहिना हाथ रखकर इस मंत्र का जाप करना चाहिए।

 

गंगे! च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति!

नर्मदे! सिंधु! कावेरि! जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु!

 

अगर आप मंत्र नहीं पढ़ना चाहते है तो आप बिना मंत्र के ही गंगा, यमुना, कावेरी, गोदावरी, नर्मदा आदि पवित्र नदियों का ध्यान करें और साथ ही वरूण देवता का भी ध्यान करना चाहिए। इसके बाद कलश के मुख पर कलावा बांधे और फिर एक कटोरी से कलश को ढक देना चाहिए। इसके बाद ढकी गई कटोरी में जौ भरिए। एक नारियल ले उसे लाल कपड़े से लपेटकर कलावें से बांध देना चाहिए। फिर उस नारियल को जौ से भरी हुई कटोरी के ऊपर स्थापित कर देना चाहिए।

 

इन मंत्रों के साथ पूजा का संकल्प करना चाहिए

 

ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्राह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे, अमुकनामसम्वत्सरे

आश्विनशुक्लप्रतिपदे अमुकवासरे प्रारभमाणे नवरात्रपर्वणि एतासु नवतिथिषु

अखिलपापक्षयपूर्वक-श्रुति-स्मृत्युक्त-पुण्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये संयमादिनियमान् दृढ़ं पालयन् अमुकगोत्रः

अमुकनामाहं भगवत्याः दुर्गायाः प्रसादाय व्रतं विधास्ये।नवरात्रि प्रारंभ, जानें कलश स्थापना का सर्वश्रेष्ठ शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र और सामग्री

 

 

रजत शर्मा 

शारदीय नवरात्रे आज 17 अक्तूबर, शनिवार से प्रारंभ हो गए हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष आश्विनमास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर घटस्थापना के साथ नौ दिनों तक देवी दुर्गा की आराधना की जाती है। इस बार मलमास का महीना होने के कारण नवरात्रे एक माह की देरी से शुरू हो रहे हैं। 

नवरात्रि का अर्थ होता है नौ रातें। इन नौ दिनों में देवी के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। वर्ष के 4 नवरात्रों में से चैत्र और अश्विन माह के नवरात्रों का विशेष महत्व होता है। नवरात्रों के पहले दिन कलश स्थापना करके लगातार नौ दिनों तक उपवास और साधना करते हुए नवमी तिथि पर नवरात्रे सम्पन्न होते हैं। आइए जानते हैं नवरात्रि का महत्व और पूजा की विधि।

 

नवरात्रि का महत्व

 

मान्यता है कि नवरात्रि पर देवी दुर्गा पृथ्वी पर आती हैं, जहां वे नौ दिनों तक वास करते हुए अपने भक्तों की साधना से प्रसन्न होकर उनको आशीर्वाद देती हैं। नवरात्रों में देवी दुर्गा की साधना और पूजा-पाठ करने से आम दिनों के मुकाबले पूजा का कई गुना ज्यादा फल की प्राप्ति होती है। नवरात्रि पर ही विवाह को छोड़कर सभी तरह के शुभ कार्यों की शुरूआत करना और खरीदरारी करना बेहद ही शुभ माना जाता है। मान्यता है भगवान राम ने भी लंका पर चढ़ाई करने से पहले रावण संग युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए देवी की साधना की थी। नवरात्रि पर सभी शक्तिपीठों पर विशेष आयोजन किए जाते हैं जहां पर भारी संख्या में लोग माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनके दरबार में शीश झुकाने जाते हैं।

 

नवरात्रि घटस्थापना का महत्व

 

नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है जिसे कलश स्थापना भी कहते हैं। पहले दिन घटस्थापना का विशेष महत्व होता है। प्रतिपदा तिथि पर कलश स्थापना के साथ ही नौ दिनों तक चलने वाला नवरात्रि का पर्व आरंभ हो जाता है। पहले दिन में विधि-विधान से घटस्थापना करते हुए भगवान गणेश की वंदना के साथ माता के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा, आरती और भजन किया जाता है।

 

घटस्थापना 2020 सर्वश्रेष्ठ शुभ मुहूर्त

 

आज 17 अक्तूबर को शनिवार के दिन वैसे तो राहुकाल और अशुभ चौघड़ियाओं को छोड़कर आप पूरे दिन कभी भी घट स्थापना कर सकते हैं। लेकिन आज पूरे दिन विषकुंभ योग होने के कारण अभिजीत मुहूर्त जो पूर्वान्ह 11 बजकर 43 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 28 मिनट तक रहेगा। इस मुहूर्त में कलश स्थापना कर नवरात्रि का शुभारंभ करना सर्वश्रेष्ठ रहेगा। शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि पर कलश स्थापना के लिए सभी 27 नक्षत्रों में से पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद, हस्ता, रेवती, रोहिणी, अश्विनी, मूल, श्रवण, धनिष्ठा और पुनर्वसु शुभ होता है।

 

नवरात्रि पूजा सामग्री

 

नवरात्रि पर कलश स्थापना के लिए कुछ पूजा की चीजों का आवश्कता होती है।

 

मिट्टी का कलश

सात तरह के अनाज

पवित्र मिट्टी

गंगाजल

पान और सुपारी

जटा नारियल

अक्षत

माता की लाल चुनरी

फूल और श्रृंगार का सामान

आम के पत्ते

घटस्थापना विधि

 

शारदीय नवरात्रि 2020 के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि पर सुबह शुभ मुहूर्त को ध्यान में रखते हुए घर के उत्तर-पूर्व दिशा में कलश स्थापना के लिए उपयुक्त होती है। इसके लिए घर के उत्तर-पूर्वी हिस्से में अच्छे से साफ-सफाई करनी चाहिए। घटस्थापना वाले स्थान को गंगा जल से स्वच्छ करें और जमीन पर साफ मिट्टी बिछाएं, फिर उस साफ मिट्टी पर जौ बिछाएं। इसके बाद फिर से उसके ऊपर साफ मिट्टी की परत बिछाएं और उस मिट्टी के ऊपर जल छिड़कना चाहिए। फिर उसके ऊपर कलश स्थापना करनी चाहिए।

 

गले तक कलश को शुद्ध जल से भरना चाहिए और उसमें एक सिक्का रखना चाहिए। कलश के जल में गंगा जल अवश्य मिलाएं। अगर संभव हो तो कुछ और पवित्र नदियों का जल भी आप कलश के जल में मिला सकते है। इसके बाद कलश पर अपना दाहिना हाथ रखकर इस मंत्र का जाप करना चाहिए।

 

गंगे! च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति!

नर्मदे! सिंधु! कावेरि! जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु!

 

अगर आप मंत्र नहीं पढ़ना चाहते है तो आप बिना मंत्र के ही गंगा, यमुना, कावेरी, गोदावरी, नर्मदा आदि पवित्र नदियों का ध्यान करें और साथ ही वरूण देवता का भी ध्यान करना चाहिए। इसके बाद कलश के मुख पर कलावा बांधे और फिर एक कटोरी से कलश को ढक देना चाहिए। इसके बाद ढकी गई कटोरी में जौ भरिए। एक नारियल ले उसे लाल कपड़े से लपेटकर कलावें से बांध देना चाहिए। फिर उस नारियल को जौ से भरी हुई कटोरी के ऊपर स्थापित कर देना चाहिए।

 

इन मंत्रों के साथ पूजा का संकल्प करना चाहिए

 

ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्राह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे, अमुकनामसम्वत्सरे

आश्विनशुक्लप्रतिपदे अमुकवासरे प्रारभमाणे नवरात्रपर्वणि एतासु नवतिथिषु

अखिलपापक्षयपूर्वक-श्रुति-स्मृत्युक्त-पुण्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये संयमादिनियमान् दृढ़ं पालयन् अमुकगोत्रः

अमुकनामाहं भगवत्याः दुर्गायाः प्रसादाय व्रतं विधास्ये।

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