धर्म- संस्कृति : सीताजी ने किया जब ससुर दशरथ का श्राद्ध

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- विजय बुधोलिया 

कोई विवाहित स्त्री पति के होते हुए अपने श्वसुर का श्राद्ध कर सकती हैै या नहीं, इस बारे में पक्की तौर पर कर्मकांडी पंडित ही बता सकते हैं किन्तु, सीता जी ने तो ऐसा ही किया था। शिव महापुराण की कथा बताती है कि राम और लक्ष्मण दशरथ के श्राद्ध की सामग्री लाने के लिए गांव जाते हैं। उनके लौटने में देर होने पर सीता श्राद्धकाल का मात्र कुछ समय शेष होना समझकर स्वयं श्राद्ध की क्रिया करती हैं। जिससे दशरथ प्रकट होकर कहते हैं–मैं दशरथ हूँ,तुम्हारे सफल श्राद्ध से मैं तृप्त हुआ। बाद में राम के अर्पण करने पर दशरथ उनसे कहते हैं–किमर्थं हूयते पुत्र ह्यनया तर्पिता वयम्।

आनन्द रामायण में राम अपने अभिषेक के बाद सीता के साथ तीर्थयात्रा करते हुए गया पहुँचते हैं। सीता फल्गु में स्नान करने जाती हैं और माहेश्वरी की पूजा करने के उद्देश्य से १०८ बालूपिंड तैयार करती हैं। इस अवसर पर धरती में से दशरथ का हाथ प्रकट हो जाता है और सीता एक-एक कर सभी १०८ बालूपिंड दशरथ के हाथ में रख देती हैं। सीता भयभीत होकर यह वृतान्त छिपा रखती हैं। बाद में राम पिंड चढ़ाने आते हैं किन्तु दशरथ का हाथ प्रकट नहीं होता जिससे सबको आश्चर्य होता है। तब सीता अपना रहस्य प्रकट कर कहती हैं कि दशरथ मुझसे पिंड ग्रहण कर चुके हैं। राम साक्षी चाहते हैं। इस पर सीता एक-एक करके आमवृक्ष,फल्गु नदी,ब्राह्मणों,विडाल, गाय तथा अश्वत्थ से अपने पक्ष में साक्ष्य देने का निवेदन करती हैं।सब अस्वीकार करते हैं,जिससे सीता उन्हें शाप देती हैंं। उस शाप के फल स्वरूप आमवृक्ष फलहीन,फल्गु नदी अन्त:सलिला,विडाल की पूंछ अस्पृश्य, गाय का मुँह अपवित्र और अश्वत्थ ‘अचलदल’ बन गया। सीता ने ब्राह्मणों से कहा–युष्माकं नाअत्र संतृप्ति: कदा द्रव्यैर्भविष्यति।। द्रव्यार्थ सकलान् देशान् भ्रमध्वं दीनरुपिण:।अन्त में सूर्य सीता का समर्थन करते हैं, जिस पर दशरथ विमान पर आ पहुँचते है और राम को आश्वासन देते हैं–प्राह्रत्वया तारितोअहम् नरकादतिदुस्तरात् मैथिल्या: पिंडदानेन जाता मे तृप्तिरुत्तमा।

सारलादास के महाभारत और कृतिवास के रामायण में जो वृतान्त मिलता है,वह आनन्द रामायण की कथा से ज्यादा अलग नहीं है। किन्तु, इन दोनों रचनाओं में माना गया है कि यह घटना वनवास के समय की है। सारलादास के अनुसार चित्रकूट निवास के समय राम अनेक तीर्थयात्राएँ करते हैं। किसी दिन वह रामगया पहुँचते हैं और पितृकर्म के लिए गैंडा आवश्यक समझकर वह लक्ष्मण के साथ उसी की खोज में शिकार खेलने जाते हैं। सीता ब्रह्मा के पुत्र फल्गु नदी के संरक्षण में रामगया में रह गईं। राम को समय पर न आता देखकर सीता ने राम के पूर्वजों को सात बालू-पिण्ड समर्पित किए। दशरथ का हाथ प्रकट हुआ जिससे सीता को उस दिन पता चला कि दशरथ का देहान्त हो चुका है। सीता ने फल्गु से निवेदन किया कि इस घटना को राम से छिपाकर रखें। इस पर फल्गु ने सीता से अनुचित प्रस्ताव किया और ठुकराए जाने पर ब्राह्मणों से कहा कि सीता ने पिण्डदान किया है। ब्राह्मण दक्षिणा के लिए अनुरोध करने लगे,सीता ने उनसे कहा कि वे राम के आने तक रुक जाएँ। जो उन्होंने अस्वीकार कर दिया। इस पर सीता ने अपने कपड़े दे दिए और पद्मपत्रों से शरीर ढँक लिया।वापस आकर सारा वृतान्त जान लेने पर राम ने फल्गु और गया के ब्राह्मणों को शाप दिया।

कृतिवास रामायण के अनुसार दशरथ की मृत्यु के एक वर्ष बाद उनका श्राद्ध यथा-रीति से सम्पन्न करने के लिए राम और लक्ष्मण अंगूठी बेचने चले जाते हैं। इतने में सीता फल्गु के किनारे खेलती हैं और दशरथ दर्शन देकर कहते हैं–भूख से पीड़ा असह्य हो उठी है,रेत का पिंड देकर मेरी भूख शांत कर दो। बाद में ब्राह्मण,तुलसी और फल्गु सीता के पक्ष में साक्ष्य देने से मना करते हैं,जिससे सीता उनको शाप देती हैं। वटवृक्ष मात्र सीता का समर्थन करता है और राम और सीता दोनों से आशीर्वाद प्राप्त कर लेता है। राम कहते हैं–अमर अक्षय हो।सीता कहती है–शीतकाल में उष्ण,ग्रीष्म काल में शीतल और सदा पत्रों से विभूषित रहो।

असमिया गीतिरामायण में भी इस प्रसंग का वर्णन मिलता है।इसमें सीता चन्द्रमा,सूर्य,वायु,पृथ्वी, फल्गु और ब्राह्मणों को शाप देती हैं। बलरामदास रामायण में इस प्रसंग में राम फल्गु नदी को अन्त:सलिला बन जाने का शाप देते हैं। फल्गु के अनुनय करने पर सीता उसे यह वरदान देती है कि तुम वर्षा ऋतु में प्रकट हो सकोगी। ब्राह्मणों ने जब दक्षिणा के लिए अनुरोध किया,तब राम ने शाप दिया कि जो कोई गया में मर जाएगा,वह अगले जन्म में गधा बन जाएगा।

श्राद्ध से संबंधित एक और कथा भासकृत प्रतिमानाटक में मिलती है,जो इनसे अलग हटकर है। दशरथ के वार्षिक श्राद्ध के अवसर पर राम और सीता सोच रहे थे कि श्राद्ध कैसे योग्यरीति से मनाया जाए। इस पर रावण परिव्राजक का रूप धरकर आता है और अपना परिचय देकर भिन्न-भिन्न शास्त्रों का उल्लेख करता है जिनका उसने अध्ययन किया है। इनमें से एक है प्रचेतसं श्राद्धकल्पम् । राम श्राद्ध के विषय में जानना चाहते हैं। तब रावण कहता है कि हिमालय में रहने वाले स्वर्णमृग से पितृ विशेषरूप से प्रसन्न हो जाते हैं। राम उस साधु के बातों में आ जाते हैं। उसी क्षण मारीच इस प्रकार का मृग बनकर दिखाई देता है। लक्ष्मण उस समय आश्रम के कुलपति का स्वागत करने गए थे। इस कारण राम सीता को साधु बने रावण के पास छोड़कर स्वर्णमृग के पीछे चले जाते हैं। तब रावण अपना असली रूप धारण कर सीता का अपहरण कर लंका ले जाता है। यह घटना भी श्राद्ध के अवसर पर ही घटती है।

(लेखक मध्यप्रदेश शासन के पूर्व अधिकारी और रामकथा के अध्येता हैं।)

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