"नन्दव्रज" की भव्यता और संपन्नता का ऐसा मनोरम निरूपण... बहुत ही कम चित्रों में दृश्यमान होता है...!!!

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  • Jeevan Mantra

प्रस्तुति - श्रीधर चतुर्वेदी, पूर्व अधिकारी, 

 

राजाधिराज ठाकुर श्री द्वारकाधीश जी महाराज मंदिर, मथुरा.

"लटकत चलत जुवती-सुखदानी।

संध्या समे सखामण्डल में 

सोभित तन गौरज लपटानी।।

मोरमुकुट गुंजा पीयरो पट,

मुख मुरली कूजत मृदु बानी।

'चतुर्भुज' प्रभु गिरिधारी आये बन तें, 

लै आरती वारत नंदरानी।।"

 

अष्टछाप महानुभाव श्रीचतुर्भुजदासजी ने...

"आवनी" के इस पद में... जो अद्भुत शब्दचित्र

प्रस्तुत किया है... बस वैसे ही तादृश दर्शन यहाँ

इस चित्र में हो रहे हैं...!!!

 

साथ ही साथ... "नन्दव्रज" की भव्यता और

संपन्नता का ऐसा मनोरम निरूपण... बहुत ही कम

चित्रों में दृश्यमान होता है...!!!

 

किन्तु... चित्रकार जिसका चित्रण करने में असमर्थ

है... वह है... वन से व्रज में पधार रहे वनमाली के

दर्शन से व्रजांगनाओं के हृदय में उद्भूत हो रहे विविध

भाव-मनोरथ... जिन को उन्होंने स्वयं... "श्रीगोपीगीत" के बारहवें श्लोक में इस प्रकार 

प्रकट किये हैं :--

 

"दिनपरिक्षये नीलकुन्तलै-

र्वनरूहाननं बिभ्रदावृतम्।

धनरजस्वलं दर्शयन् मुहु-

र्मनसि नः स्मरं वीर यच्छसि।।"

 

परमप्रेमरूपा व्रजरत्नाओं के पावन पादपद्मों में

भूरिशः वन्दन करते हुए... उनसे यही विनती करें...

कि... उनकी भावसमृद्धि के अंशमात्र का दान हमें

भी... उन्हीं की आड़ी से प्राप्त हो...!!!

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