आज बलराम जन्मोत्सव का पर्व हलषष्ठी (28 अगस्त 2021 दिन शनिवार)

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आज बलराम जन्मोत्सव का पर्व हलषष्ठी (28 अगस्त 2021 दिन शनिवार) 

    ॐ नमो नारायणाय

भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी बलराम जन्मोत्सव के रूप में देशभर में मनायी जाती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मान्यता है कि व्दापर युग में भगवान शेषनाग इस दिन भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई के रुप में अवतरित हुए थे। मान्यता है कि बलराम जी के मुख्य शस्त्र हल और मूसल हैं जिनके कारण इन्हें हलधर कहा जाता है। इन्हीं के नाम पर इस पर्व को हलषष्ठी के भी कहा जाता है।

मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण और राम भगवान विष्णु जी के स्वरूप हैं और बलराम और लक्ष्मण शेषनाग के स्वरूप हैं। पौराणिक कथाओं के संदर्भ अनुसार एक बार भगवान विष्णु से शेष नाग नाराज हो गए और कहा कि भगवान मैं आपके चरणों में रहता हूं, मुझे थोड़ा सा भी विश्राम नहीं मिलता, आप कुछ ऐसा करो के मुझे भी विश्राम मिले। तब भगवान विष्णु ने शेषनाग को वरदान दिया कि आप द्वापर में मेरे बड़े भाई के रूप में जन्म लोगे, तब मैं आपसे छोटा रहूंगा।

हिन्दू धर्म के अनुसार मान्यता है कि त्रेता युग में भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण शेषनाग के अवतार थे, इसी प्रकार द्वापर में जब भगवान विष्णु पृथ्वी पर श्री कृष्ण अवतार में आए तो शेषनाग भी यहां उनके बड़े भाई के रूप में अवतरित हुए। शेषनाग कभी भी भगवान विष्णु के बिना नहीं रहते हैं, इसलिए वह प्रभु के हर अवतार के साथ स्वयं भी आते हैं। बलराम जयंती के दिन सौभाग्यवती स्त्रियां बलशाली पुत्र की कामना से व्रत रखती हैं, साथ ही भगवान बलराम से यह प्रार्थना की जाती है कि वो उन्हें अपने जैसा तेजस्वी पुत्र प्राप्त करें।

शक्ति के प्रतीक बलराम भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई थे, इन्हें आज्ञाकारी पुत्र, आदर्श भाई और एक आदर्श पति भी माना जाता है। श्री कृष्ण की लीलाएं इतनी महान हैं कि बलराम की ओर ध्यान बहुत कम जाता है। मान्यता है कि ये मां देवकी के सातवें गर्भ थे, चूंकि देवकी की हर संतान पर कंस की कड़ी नजर थी। इसलिेए इनका बचना बहुत ही मुश्किल था ऐसे में देवकी के सातवें गर्भ के गिरने की खबर फैल गई। लेकिन असल में देवकी और वासुदेव के तप से देवकी का यह सत्व गर्भ वासुदेव की पहली पत्नी के गर्भ में प्रत्यापित हो चुका था। लेकिन उनके लिये संकट यह था कि पति तो कैद में हैं फिर ये गर्भवती कैसे हुई लोग तो सवाल पूछेंगे। लोक निंदा से बचने के लिये जन्म के तुरंत बाद ही बलराम को नंद बाबा के यहां पालने के लिए भेज दिया गया था।

बलराम जी के हल की कथा

बलराम के हल के प्रयोग के संबंध में किवदंती के आधार पर दो कथाएं मिलती हैं। कहते हैं कि एक बार कौरव और बलराम के बीच किसी प्रकार का कोई खेल हुआ। इस खेल में बलरामजी जीत गए थे लेकिन कौरव यह मानने को ही नहीं तैयार थे। ऐसे में क्रोधित होकर बलरामजी ने अपने हल से हस्तिनापुर की संपूर्ण भूमि को खींचकर गंगा में डुबोने का प्रयास किया। तभी आकाशवाणी हुई की बलराम ही विजेता है। सभी ने सुना और इसे माना। इससे संतुष्ट होकर बलरामजी ने अपना हल रख दिया। तभी से वे हलधर के रूप में प्रसिद्ध हुए।

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