सादगी से मनाई स्वामी लीलाशाह जयंती

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किशोर इशरानी

मथुरा 7 अप्रैल 2021

सिंधी समुदाय के मार्गदर्शक आध्यात्मिक गुरू स्वामी लीलाशाह महाराज की 141वीं जयंती बुधवार को सादगी के साथ मनाई गई।

मीडिया प्रभारी किशोर इसरानी ने बताया कि कोरोना वायरस संक्रमण को देखते हुए भारत सरकार द्वारा जारी की गई गाइडलाइन का गम्भीरतापूर्वक पालन करते हुए हर वर्ष धूमधाम से हर्ष और उल्लास के साथ नगर में निकलने वाली संकीर्तन यात्रा और कार्यक्रम रद्द होने के कारण स्वामी लीलाशाह जयंती सूक्ष्म रूप में मनाई गई।

बुधवार को सर्वप्रथम बहादुर पुरा स्थित स्वामी लीलाशाह सिंधी धर्मशाला में स्वामी लीलाशाह की छवि के समक्ष दीप प्रज्जवलित कर पूजा-अर्चना की गई। पंडित मोहन लाल महाराज ने आरती कराई।

इस मौके पर पंचायत अध्यक्ष नारायणदास लखवानी ने स्वामी लीलाशाह जी महाराज के प्रेरक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि हर किसी को ईश्वर की उपासना व जनसेवा की ओर प्रेरित करने वाले मानवता के सच्चे हितेषी स्वामी लीलाशाह जी का जन्म सिंध प्रांत (तत्कालिन भारत का हिस्सा) के हैदराबाद जिले की टंडे बाग तहसील में महाराव चंडाई नामक गांव में सन् 1880 में ब्रहम क्षत्रिय कुल में हुआ था।

मुख्य संयोजक रामचंद्र ख़त्री ने बताया कि स्वामी लीलाशाह वेद विद्या और सनातन धर्म के उच्च ज्ञाता थे, वह समाज में व्यप्त कुरीतियों तथा लुप्त होते धार्मिक संस्कारों से काफी दुखी थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति के पुनरोत्थान तथा सोई हुई आध्यात्मिकता को जगाने के लिये बेहतर कार्य किये।

उपाध्यक्ष तुलसी दास गंगवानी ने बताया कि स्वामी जी ने जहां समाज को आध्यात्मिक संदेश दिया वहीं समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने हेतु सबको जागृत किया और दहेज बिना सामुहिक विवाह समारोह के प्रेरक आयोजन शुरू कराये।

सिंधी धर्मशाला के साथ ही शहर के अनेक सिंधी परिवारों ने अपने घर के सदस्यों के साथ ही मिलकर आरती और प्रार्थना की और स्वामी लीलाशाह महाराज के प्रति श्रद्धा-सुमन अर्पित कर, कोरोना वायरस के संक्रमण से मानवता को बचाने के लिए परमात्मा से सामुहिक प्रार्थना की। पूजा-अर्चना के उपरांत प्रसाद का वितरण किया गया।

विचारक किशोर इसरानी ने स्वामी लीलाशाह जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि लीलाशाह जी समाज के निर्बल वर्ग की पीड़ा से काफी आहत रहते थे, उन्होंने निर्धन विद्यार्थियों को पाठ्य सामिग्री एवं आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई। कई स्थानों पर धर्मशाला, गौशाला, पाठशाला व सत्संग भवन बनवाये, ऐसे महान संत ने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज सेवा में अर्पण करते हुए 4 नवम्बर सन् 1973 को अपना नश्वर शरीर त्यागा था।

सिंधी जनरल पंचायत ने देश के जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभाते हुए देश हीत में सत्तर वर्षों की परम्परा तोड़ दी और राष्ट्र हीत में देश के नागरिकों के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए बड़े आयोजन नहीं किए।

इस मौके पर नारायण दास लखवानी, बसंत मंगलानी, रामचंद्र खत्री, तुलसीदास गंगवानी, जीवतराम चंदानी, गुरूमुखदास गंगवानी, झामनदास नाथानी, किशोर इसरानी, जितेंद्र लालवानी, योगेश खत्री, लीलाराम लखवानी, दौलतराम एल आर खत्री, सुरेश मनसुखानी, हरिश चावला, परषोत्तम भाटिया, भगवानदास बेबू आदि ने भागीदारी की।

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