मां का पल्लू अनमोल

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  • Jeevan Mantra

प्रस्तुति - मोहित

मुझे नही लगता कि आज के बच्चे यह जानते हो कि 

*पल्लू* क्या होता है ? 

 

इसका कारण यह है कि आजकल की माताएं

अब साड़ी पहनती ही नही है ।

 

*पल्लू* बीते समय की बात हो चुका है।

 

*माँ के पल्लू* का सिद्धाँत , 

माँ को गरिमामयी छवि प्रदान करने के लिए था।

 

*पल्लू* की बात ही निराली थी।

 

*पल्लू* पर तो बहुत कुछ

लिखा और कहा जा सकता है।

 

*पल्लू* बच्चों का पसीना - आँसू पोंछने,

गंदे नाक - कान, मुँह की सफाई के लिए ,

सिर भीना होने पर पोंछने और

धूप से बचाने के लिए भी

उपयोग किया जाता था।

 

*पल्लू*  एप्रेन का काम भी करता था,

माँ इसको अपना हाथ पोंछने के लिए

तौलिया के रूप में भी उपयोग कर लेती थी।

 

खाना खाने के बाद , 

*पल्लू* से  मुँह साफ करने का 

अपना ही आनंद होता था।

 

गरम बर्तन को चुल्हे से हटाने के लिए भी

 *मां का पल्लू* ही काम आता था ।

 

जब कभी आँख मे दर्द हो ,

माँ अपने 

*पल्लू* को गोल बनाकर , 

फूंक मारकर ,गरम करके पलकों पर रख देती थी, 

तो दर्द उसी समय गायब हो जाता था।

 

माँ की गोद में सोने वाले बच्चों के लिए 

 उसकी गोद ,गद्दा और उसका

*पल्लू* ,चादर का काम करता था।  

 

जब भी कोई अंजान घर पर आता , तो बच्चा उसको 

*मां के पल्लू* की ओट लेकर देखता था।

 

जब भी बच्चे को किसी बात पर शर्म आती 

या डर लगता तब वह 

*पल्लू* में ही अपना सिर छुपा लेता था।

 

*मां का पल्लू* गर्मी में पंखे का काम करता था।

 

*पल्लू* ही बालक के शरीर से मक्खि - मच्छर ,

उड़ाने का काम भी करता था ।

 

 बच्चों को जब बाहर जाना होता था , तब 

*'माँ का पल्लू'* एक मार्गदर्शक का काम करता था।

 

अपनी बात मनवाने के लिए  बच्चा 

*मां का पल्लू* खिंचकर ज़िद पुरी करता था।

 

मेहनत के समय मां अपने

*पल्लू* को कसकर बांध लेती थी ।

 

जब तक बच्चे ने हाथ में 

*पल्लू* थाम रखा होता था ,

 तो सारी कायनात उसकी मुट्ठी में होती थी।

 

*मां के पल्लू* में सुगंध ,ममता और अपनेपन का भाव था।

 

जब मौसम ठंडा होता था ,

माँ उसके

*पल्लू* को अपने 

चारों और लपेट कर अपने को

ठंड से बचाने की कोशिश करती और 

जब बारिश होती,माँ अपने 

*पल्लू* से अपना सिर ढँक लेती थी ।

 

*पल्लू* का उपयोग पेड़ों से गिरने वाले 

जामुन ,बेर ,मीठे फल और सुगंधित फूलों को 

लाने के लिए किया जाता था।

 

*पल्लू* में धान, दान, प्रसाद भी संकलित किया जाता था।

 

*पल्लू* घर में रखे समान से

धूल हटाने में भी बहुत सहायक होता था।

 

कभी कोई वस्तु खो जाए ,

तो मां की मानता के अनुसार

*पल्लू* में गांठ लगाकर वह निश्चिंत हो जाती थी कि 

अब जल्द मिल जाएगी।

 

किसी बात को स्मरण करने के लिए और 

कसम खाने के लिए भी 

*पल्लू* में गांठ बांधी जाती थी ।

 

*पल्लू* में गाँठ लगा कर माँ 

 एक चलता फिरता बैंक या 

 तिजोरी रखती थी और अगर

 सब कुछ ठीक रहा, तो कभी- कभी

 उस बैंक से कुछ पैसे भी मिल जाते थे।

 

*मां के पल्लू* ने मां की भीगी अंखियां भी पोंछी है ।

 

मां ने बच्चों के दु:ख के समय में अपना  

*पल्लू* फैलाकर ईश्वर से 

उनके सुख की मिन्नत की है ।

 

भगवान श्रीकृष्ण को चोट लगने पर 

*पल्लू* फाडकर राधा ने पट्टी बांधी थी ।

 

*मां का पल्लू* बालक का रक्षा कवच है ।

 

*मां का पल्लू* एक , सेवा - काम - लाभ अनेक थे ।

 

पुरानी पीढ़ी से संबंध रखने ‌वाले

अपनी मां के इस 

*पल्लू* वाले प्यार , ममता और स्नेह को

हमेशा महसूस करते है 

जो कि आज की पीढ़ी की समझ से परे है ।

 

*मां के पल्लू* में सुखद अनुभूति है ।

 

*मां के पल्लू* में ईश्वर का खज़ाना है ।

 

मुझे नहीं लगता कि विज्ञान

कितनी भी तरक्की करने के बाद भी 

*मां के पल्लू* का विकल्प ढूँढ पाये।

 

*पल्लू* कुछ और नही अपितु 

 एक जादुई अनुभूति है।

 

आधुनिकता ने हमारी मूल धरोहर ,  

हमारे संस्कारों को ,

हमारी संस्कृति को

धूमिल अवश्य किया है।

 

*मां के पल्लू* में स्नेह , सेवा और समर्पण है ।

 

संस्कार एवं संस्कृति फिर वही

 *पल्लू* वाला समय ले आए ,

जिससे बच्चे अपने बचपन को 

पुनः प्राप्त कर सके।

*ईश्वर से यही  विनंती है।*

 

  ???????????????? *सभी माताओं को समर्पित*????????????????

 

????☘????????????जय श्री कृष्ण????????????????????????????☘????????????

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