मुरैना की प्रसिद्ध गज़क कब और कैसे बननी हुई शुरू ?

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  • Vishesh

सर्दी की आहट के साथ ही इस मौसम की मिठाई कही जाने वाली तिल पट्टी, तिल पापड़, तिल गुड़ वाली गजक की मांग बढ़ गई है. 

सर्दी बढने के साथ-साथ गजक का बाजार गर्म हो रहा है. इन दिनों मावा, मूंगफली, घी, काजू, चॉकलेट, गजक मावा रोल लोगों की पहली पसंद बन रही है.

वैसे तो राजस्थान के ब्यावर का तिल पट्टी उद्योग विश्वप्रसिद्ध हैं, मगर आजकल शहर में मुरैना के गजक की भी पूछपरख है. शहर की मूंग, उडद, मैथी, गोंद के लड्डू, सौंठ, तिल्ली, ड्रायफ्रूट के लड्डू, थाल वाली गजक की स्पेशल डिमाण्ड हैं.

यूं तो तिल्ली- गुड़ से बनी गजक का चलन वर्षो पुराना है. लेकिन समय के साथ इसमें भी बदलाव आए हैं.

पहले जहां गजक में तिल्ली, गुड़, शक्कर, रेवडिय़ों का चलन ज्यादा था. आज मावा, मूंगफली, घी, काजू, चॉकलेट, गजक मावा रोल लोगों की पहली पसंद बन रही है.

लोगों को सभी वैराइटियों की गजक पसंद आती है, सबसे ज्यादा स्पेशल कुटमा गजक की मांग बाजार में रहती है. नरम व खस्ता होने से यह आम लोगों के साथ-साथ बुजुर्गों के खाने लायक भी होती है. आमदिनों की अपेक्षा सर्दियों में इसकी मांग कुछ ज्यादा बढ़ जाती है.

मुरैना के लोग मानते हैं कि खस्ता गजक के मौजूदा स्वरूप का अविष्कार सीताराम शिवहरे ने किया था.

इससे पहले गजक गुड़ व तिल की तिलकुटिया के तौर पर घरों में ही बनती थी.

सर्दियों में विशेषकर मकर संक्रांति पर तिल और गुड से बनी गजक खाना शुभ माना जाता है. 

दुनिया भर में फेमस मुरैना की गज़क आखिर वजूद में कैसे आई. कब पहली बार उसे बनाया गया.. आइये, आज आपको पूरी कहानी बताते हैं. ये भी बताते हैं कि किस व्यक्ति ने सबसे पहले इसे बनाना शुरू किया था.   तिलपट्टी से गज़क बनने तक का ये है सफ़र  मुरैना के लोग मानते हैं कि खस्ता गजक के मौजूदा स्वरूप का अविष्कार सीताराम शिवहरे ने किया था.

साल 1946 में चंबल के शुद्ध पानी ने मुरैना में खस्ता गजक को जन्म दिया था. जब  डकैतों के कारण देश भर के लोग चंबल के लोगों को खौफनाक मानने लगे थे. 

उस वक्त सीताराम शिवहरे इस इलाक़े को एक नई पहचान दिलाने में जुटे थे. वे घरों में तिल व गुड़ से बनने वाली मिठाई को चंबल के शुद्ध पानी की मदद से खस्ता गजक में ढाल रहे थे. उन दिनों  गजक की दुकानें अलग से नहीं हुआ करती थीं. 

इनके आइडिया के बाद  कुछ हलवाईयों ने कुटी हुई तिल और गुड़ की पट्टियां बेचना शुरू कीं, और इस तरह गजक का जन्म हुआ. धीरे-धीरे तिलकुटिया गजक बन गई, और देशभर में पहुंचने लगी. 

गजक का जायका मशहूर हुआ तो आगरा, अलीगढ़, जयपुर और दौसा के कारीगरों ने भी इसे बनाना सीखा. 

इस समय है 700 करोड़ का कारोबार करने वाली गजक बनने तो पूरे उत्तर भारत  में लगी थी, लेकिन जब सीताराम शिवहरे ने चंबल के पानी से सिंचित तिल को जब खस्ता गजक में बदला तो बाकी जगह की गजक पीछे छूट गई. 

सीताराम गोयल आज नहीं हैं. उनका कारोबार बेटे संभाल रहे हैं, मगर उनकी खस्ता गजक आज मुरैना, ग्वालियर व श्योपुर से विदेशों तक जा रही है और करीब 700 करोड़ सालाना का कारोबार कर रही है. 

अब तो बालीवुड ITEM SONG में भी गजक.... तेवर फिल्म में श्रुति हसन और अर्जुन कपूर पर फिल्माया गया ITEM SONG “....इस्माइल मलाई है तेरी, स्टाइल है 'गजक', नरमी भी-गरमी भी तू बड़ी गजब'.......युवाओं के जुबान पर चढ़ गया  था.

इस गीत के साथ ही हिट हुई, करीब 70 साल पहले जन्मी तिल और गुड़ से बनने वाली 'गजक'. इलाके की इस प्रसिद्ध मिठाई से पहले चंबल के डाकू, बीहड़ और यहां की बोली ही फिल्मों में आई थी. लेकिन गजक जब ग्लोबल हो गई तब आखिर बॉलीवुड ने भी इसे ब्रेक दे दिया. मुरैना के लोगों को उम्मीद भी नहीं होगी कि उनके यहां पली-बढ़ी ‘गजक’ का नाम भी कभी किसी गीत में सुनाई देगा, लेकिन गजक के देश-विदेश में मशहूर होने से इस पर ITEM SONG भी बन गया.

अब तो अपने जोधपुर में भी नृसिंह दड़ा से घोड़ों के चौक जाने वाली रोड़ पर मुरैना से आये कारीगरों ने भारी मात्रा में गज़क, तिलकुटा, गुड़ पापड़ी और रेवड़ी बनाने का काम शुरू कर दिया हैं, जहां भीड़ लगी रहती है..

गुड़ गजक के फायदे:

गजक में मौजूद तिल और गुड़ ठंड में बॉडी का मेटाबालिज्म तेज रखते हैं। इससे वेट लॉस में मदद मिलती है.

तिल और गुड़ कैल्शियम में मौजूद कैल्शियम से हड्डियां मजबूत रहती हैं। आर्थराइटिस से बचाव होता है.

तिल में मौजूद सीसीमोलिन ब्लड प्रेशर को नार्मल करके हाई बीपी की प्रॉब्लम को दूर करता है.

तिल और गुड़ का कॉम्बिनेशन पोटेशियम और मैग्नीशियम जैसे मिनिरल से भरपूर होता है. ये लिवर को हेल्दी रखता है.

अब गुड़ गजक के स्वास्थवर्धक ज़ायके से कोई चूके नहीं...

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