आज‬ का पंचांग

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  • Jeevan Mantra

रवींद्र कुमार

 

|।ॐ।|

आज‬ का पंचांग

 

तिथि.........चतुर्थी रात्रि ७.५७ तक

वार...........शनिवार

पक्ष... .......शुक्ल

         

नक्षत्र.........हस्त रात्रि ७.११तक

योग...........साध्य प्रातः १०.२२तक

राहु काल.....९.१९ से १०.५४ तक

 

मास............भाद्रपद

ऋतु.............शरद

 

कलि युगाब्द....५१२२

विक्रम संवत्....२०७७

 

२२ अगस्त   सं  २०२०

आप सभी को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं

आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो

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#हरदिनपावन

गणेश चतुर्थी

हर वर्ष की भांति मंगलमूर्ति गणेश एकबार फिर गणेशोत्सव अर्थात् गणेश चतुर्थी के अवसर पर घर-घर पधार रहे हैं।

 

  

हर वर्ष की भांति मंगलमूर्ति गणेश एकबार फिर गणेशोत्सव अर्थात् गणेश चतुर्थी के अवसर पर घर-घर पधार रहे हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश का जन्म हुआ था। इसी चतुर्थी से आरंभ होकर गणेशोत्सव पूरे दस दिनों तक चलता है और विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा की जाती है।

गणेश चतुर्थी के अवसर पर घरों में छोटी-बड़ी प्रतिमाओं के अलावा कई प्रमुख स्थानों पर भगवान गणेश की बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं, जिनका लगातार नौ दिनों तक पूजन किया जाता है। दस दिनों के पश्चात् अनंत चतुर्दशी के दिन पूरे जोश के साथ गणेश प्रतिमा को तालाब इत्यादि किसी जलस्रोत में विसर्जित कर दिया जाता है। गणपति विसर्जन को लेकर मान्यता है कि हमारा शरीर पंचतत्व से बना है और एकदिन उसी में विलीन हो जाएगा। इसी आधार पर अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति विसर्जन किया जाता है। इस वर्ष कोरोना के चलते अधिकांश लोग ऐसे पंडालों या सार्वजनिक स्थलों के बजाय अपने-अपने घरों में ही गणपति की पूजा करेंगे और अधिकांश जगहों पर मूर्तियों का जलस्रोतों में विसर्जन भी नहीं होगा।

 

गणेश बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता हैं और मान्यता है कि गणेश चतुर्थी पर गणपति बप्पा की पूजा करने से वे भक्तों के सारे कष्ट हर लेते हैं। सच्चे मन से उनकी पूजा करने से शुभ-लाभ की प्राप्ति तथा समृद्धि के साथ धन-धान्य की वृद्धि होती है। श्रीगणेश के अनेक प्रचलित नामों में से गजानन. लम्बोदर, विघ्ननाशक, विनायक, गणाध्यक्ष, एकदन्त, चतुर्बाहु, गजकर्णक, भालचन्द्र, कपिल, विकट, धूम्रकेतु, सुमुख इत्यादि काफी प्रसिद्ध हैं। बुद्धि, विवेक, धन-धान्य और रिद्धि-सिद्धि के कारक भगवान गणेश की पूजा गणेश चतुर्थी के दिन प्रायः दोपहर के समय की जाती है। इसके पीछे मान्यता है कि विध्नहर्ता गणेश का जन्म मध्यान्ह के समय हुआ था इसीलिए गणेश चतुर्थी पर उनकी पूजा के लिए यही समय सर्वोत्तम माना गया है। माना जाता है उनकी पूजा करने से शनि की वक्रदृष्टि तथा ग्रहदोष से भी मुक्ति मिलती है। गणेश जी की कृपा से समस्त कार्य बगैर किसी बाधा के पूर्ण होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी भगवान गणेश की पूजा सभी देवी-देवताओं में सबसे सरल मानी जाती है। वैसे तो देश में 33 करोड़ देवी-देवताओं की पूजा की जाती है लेकिन हिन्दू धर्म में गणेश जी को सभी देवों में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त है और प्रत्येक पूजा या कोई भी शुभ कार्य करने से पहले उनकी पूजा करने का विधान है। दरअसल उन्हें उनके पिता भगवान शिव ने ही यह विशेष वरदान दिया था कि हर पूजा या शुभ कार्य करने से पहले उनकी पूजा अनिवार्य होगी।

शिवपुराण के अनुसार एकबार माता पार्वती ने स्नान से पूर्व अपने मैल से एक बालक उत्पन्न कर उसे अपना द्वारपाल बना दिया। जब पार्वती जी स्नान करने लगी, तब अचानक भगवान शिव वहां आए लेकिन द्वारपाल बने बालक ने उन्हें अंदर प्रवेश करने से रोक दिया। उसके बाद शिवगणों ने बालक से भयंकर युद्ध किया लेकिन कोई भी उसे पराजित नहीं कर सका तो क्रोधित शिव ने अपने त्रिशूल से बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया। जब पार्वती को यह पता चला तो आगबबूला हो उन्होंने प्रलय का निश्चय कर लिया। इससे देवलोक भयाक्रांत हो उठा और देवताओं ने उनकी स्तुति कर उन्हें शांत किया। भगवान शिव ने निर्देश दिया कि उत्तर दिशा में सबसे पहले जो भी प्राणी मिले, उसका सिर काटकर ले आएं। विष्णु उत्तर दिशा की ओर गए तो उन्हें सबसे पहले एक हाथी दिखाई दिया। वे उसी का सिर काटकर ले आए और शिव ने उसे बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। पार्वती उसे पुनः जीवित देख बहुत खुश हुई और तब समस्त देवताओं ने बालक गणेश को अनेकानेक आशीर्वाद दिए। भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि कोई भी शुभ कार्य यदि गणेश की पूजा करके शुरू किया जाएगा तो वह निर्विघ्न सफल होगा। उन्होंने गणेश को अपने समस्त गणों का अध्यक्ष घोषित करते हुए आशीर्वाद दिया कि विघ्न नाश करने में गणेश का नाम सर्वोपरि होगा। इसीलिए भगवान गणेश को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है।

एक प्रचलित लोककथा के अनुसार भगवान शिव का एकबार त्रिपुरासुर से भीषण युद्ध हुआ। युद्ध शुरू करने से पहले उन्होंने गणेश का स्मरण नहीं किया इसलिए वे त्रिपुरासुर से जीत नहीं पा रहे थे। उन्हें जैसे ही इसका अहसास हुआ, उन्होंने गणेश जी को स्मरण किया और उसके बाद आसानी से त्रिपुरासुर का वध करने में सफल हुए।

भगवान गणेश के देशभर में कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जिनमें सबसे लोकप्रिय मुम्बई के प्रभादेवी में श्री सिद्धिविनायक मंदिर है, जहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं। वर्ष 2014 में गुजरात के मेहमदाबाद में छह लाख वर्गफुट में बना सिद्धिविनायक मंदिर भगवान गणेश का सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है। जमीन, अचल सम्पति और चढ़ावे के आधार पर इन्दौर स्थित खजराना गणेश मंदिर सबसे धनी गणपति मंदिर है। हालांकि संचित धन के हिसाब से पुणे का दगडुशेठ गणपति मंदिर देश का सबसे धनी गणपति मंदिर है। वैसे प्रतिदिन चढ़ावे के हिसाब से मुम्बई का सिद्धिविनायक मंदिर सबसे आगे है।

 

#हरदिनपावन

"22 अगस्त/जन्म-दिवस"

 

संकल्प के धनी  : डा. जगमोहन गर्ग

‘‘भारत की उन्नति स्वदेशी उद्योगों के बल पर ही हो सकती है। इसलिए हमें विदेशों का मुँह देखने की बजाय स्वयं ही आगे आना होगा।’’ संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी ने जब ये शब्द युवा वैज्ञानिक जगमोहन को कहे, तो उन्होंने तत्काल अमरीका की चमकदार नौकरी और वैभव को लात मारकर मातृभूमि की सेवा के लिए देश लौटने का निश्चय कर लिया।

डा. जगमोहन गर्ग का जन्म गाजियाबाद में 22 अगस्त, 1933 को हुआ था। एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे जगमोहन जी बचपन से ही अति प्रतिभावान थे। प्रारम्भिक शिक्षा गाजियाबाद में पूर्ण कर उन्होंने बनारस से बी.एस-सी. की उपाधि विश्वविद्यालय में स्वर्ण पदक लेकर पायी।

इसके बाद वे उच्च शिक्षा के लिए अमरीका के परड्यू विश्वविद्यालय चले गये। वहाँ उन्होंने बी.टेक. तथा फिर एम.ई. किया। यहाँ भी वे विश्वविद्यालय में प्रथम रहे। स्वयं को जीवन भर छात्र समझने वाले जगमोहन जी ने फिर उसी विश्वविद्यालय में पढ़ाना शुरू कर दिया। वे पहले भारतीय थे, जिन्होंने वहाँ सर्वश्रेष्ठ शिक्षक का सम्मान पाया।

1966 में भारत आकर उन्होंने गाजियाबाद में उद्योग स्थापित किया। इसमें उच्च ताप सहने योग्य विशेष प्रकार का तार बनता था, जो पनडुब्बी, टैंक, रडार तथा हवाई और पानी के जहाजों में प्रयोग होता था। इसकी आवश्यकता रक्षा विभाग को पड़ती थी। वह सारी सामग्री विदेश से आयात करता था; पर अब उनकी विदेशों पर निर्भरता समाप्त हो गयी।

जगमोहन जी द्वारा उत्पादित तार विदेशों से अच्छा और सस्ता भी पड़ता था। वे चाहते, तो उसे बहुत अधिक मूल्य पर बेच सकते थे; क्योंकि पूरे भारत में इस तार का केवल उनका ही उद्योग था; पर अनुचित लाभ उठाने का विचार कभी उनके मन में नहीं आया।

इस तार के लिए कच्चा माल विदेश से आता था। मुम्बई में सीमा शुल्क विभाग के लोग बिना रिश्वत लिये उसे छोड़ते नहीं थे। डा. जगमोहन जी ने निश्चय किया कि चाहे कितनी भी कठिनाई आये; पर वे रिश्वत नहीं देंगे। वे कई दिन तक मुम्बई में पड़े रहते और अपना माल छुड़ा कर ही मानते। कई बार के संघर्ष के बाद सीमा अधिकारी समझ गये कि इन तिलों से तेल नहीं निकलेगा, तो वे बिना रिश्वत लिये ही माल छोड़ने लगे।

डा. जगमोहन जी बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में जाते थे। गाजियाबाद नगर कार्यवाह से लेकर क्षेत्र संघचालक तक के दायित्व उन्होंने निभाये। कुछ वर्ष तक वे अखिल भारतीय सम्पर्क प्रमुख भी रहे। वे अपने व्यवसाय के सिलसिले में प्रायः विदेश जाते थे। वहाँ वे विदेशस्थ स्वयंसेवकों और वैज्ञानिकों से मिलकर उन्हें भारत में काम करने को प्रेरित करते थे। जो लोग इसके लिए तैयार होते, उन्हें वे हर प्रकार से सहयोग करते थे।

सामाजिक कार्यों को जीवन में प्राथमिकता देने के कारण उन्होंने गृहस्थी नहीं बसाई। शहर में रहते हुए भी उन्हें ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा की चिन्ता रहती थी।

उन्होंने इस बारे में शोध हेतु पिलखुवा के पास ‘ग्राम भारती’ प्रकल्प स्थापित किया। वे चाहते थे कि गाँवों के बच्चे पढ़ने के बाद भी खेती, पशु पालन आदि से जुड़े रहें। पार्किन्सन रोग से पीड़ित होने के कारण उन्होंने उद्योग का सारा कार्य अपने छोटे भाई को सौंप दिया। 11 अक्तूबर, 2007 की रात्रि में संकल्प के धनी वैज्ञानिक डा. जगमोहन जी का देहान्त हुआ।

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