'चाणूर', 'मुष्टिक', 'शल', 'तोषल' एवं कुबलियापीड हाथी का वध

Subscribe






Share




  • States News

'चाणूर', 'मुष्टिक', 'शल', 'तोषल' एवं कुबलियापीड हाथी का वध 

'चाणूर', 'मुष्टिक', 'शल' तथा 'तोषल' कंस के प्रमुख मॉल थे और कुबलयापीड नाम के एक हाथी को विशेष प्रशिक्षण दिलाकर कृष्ण और बलराम को मार डालने के लिए रखा गया था। किंतु मल्ल युद्ध के समय बलराम द्वारा मुष्टिक और श्रीकृष्ण द्वारा चाणूर का वध कर दिया गया।

कंस ने श्रीकृष्ण और बलराम को मारने का षड़यन्त्र कर इस तीर्थ स्थान पर एक रंगशाला का निर्माण करवाया था। 

अक्रूर के द्वारा गोकुल से श्रीकृष्ण और बलदेव को लाया गया। श्रीकृष्ण और बलराम नगर भ्रमण के बहाने ग्वालबालों के साथ लोगों से पूछते–पूछते इस रंगशाला में प्रविष्ट हुये। रंगशाला बहुत ही सुन्दर सजायी गई थी। सुन्दर-सुन्दर तोरण-द्वार पुष्पों से सुसज्जित थे। सामने भगवान शिव का विशाल धनुष रखा गया था। मुख्य प्रवेश द्वार पर मतवाला कुबलयापीड हाथी झूमते हुए, बस संकेत मात्र से ही दोनों भाइयों को मार डालने के लिए तैयार था। रंगेश्वर महादेव की छटा भी निराली थी। उन्हें विभिन्न प्रकार से सुसज्जित किया गया था। रंगशाला के अखाड़े में चाणूर, मुष्टिक, शल, तोषल आदि बड़े-बड़े भयंकर पहलवान दंगल के लिए प्रस्तुत थे। कंस अपने बडे़-बड़े नागरिकों तथा मित्रों के साथ उच्च मञ्च पर विराजमान था।

कुबलयापीड का वध

अब रंगशाला में प्रवेश करते ही श्रीकृष्ण ने अनायास ही धनुष को अपने बायें हाथ से उठा लिया। पलक झपकते ही सबके सामने उसकी डोरी चढ़ा दी तथा डोरी को ऐसे खींचा कि वह धनुष भयंकर शब्द करते हुए टूट गया। धनुष की रक्षा करने वाले सारे सैनिकों को दोनों भाईयों ने ही मार गिराया। कुबलयापीड का वध कर श्रीकृष्ण ने उसके दोनों दाँतों को उखाड़ लिया और उससे महावत एवं अनेक दुष्टों का संहार किया। कुछ सैनिक भाग खड़े हुए और महाराज कंस को सारी सूचनाएँ दीं, तो कंस ने क्रोध से दाँत पीसते हुए चाणूर, मुष्टिक को शीघ्र ही दोनों बालकों का वध करने के लिए इंगित किया। इतने में श्रीकृष्ण एवं बलराम अपने अंगों पर रक्त के कुछ छींटे धारण किये हुए हाथी के विशाल दातों को अपने कंधे पर धारण कर सिंहशावक की भाँति मुस्कुराते हुए अखाड़े के समीप पहुँचे।

चाणूर और मुष्टिक ने दोनों भाईयों को मल्ल युद्ध के लिए ललकारा। नीति विचारक श्रीकृष्ण ने अपने समान आयु वाले मल्लों से लड़ने की बात कही। किन्तु चाणूर ने श्रीकृष्ण को और मुष्टिक ने बलराम जी को बड़े दर्प से, महाराज कंस का मनोरंजन करने के लिए ललकारा। श्रीकृष्ण और बलराम तो ऐसा चाहते ही थे। इस प्रकार मल्लयुद्ध आरम्भ हो गया। चाणूर का मुकाबला कृष्ण और मुष्टिक का मुकाबला बलराम कर रहे थे। वहाँ पर बैठी हुई पुर–स्त्रियाँ उस अनीतिपूर्ण मल्ल्युद्ध को देखकर वहाँ से उठकर चलने को उद्यत हो गईं। श्रीकृष्ण की रूपमाधुरी का दर्शन कर कहने लगीं- अहो! सच पूछो तो ब्रजभूमि ही परम पवित्र और धन्य है। वहाँ परम पुरुषोत्तम मनुष्य के वेश में छिपकर रहते हैं। देवादिदेव महादेव शंकर और लक्ष्मी, जिनके चरणकमलों की पूजा करती हैं, वे ही प्रभु वहाँ रंग-बिरंगे पुष्पों की माला धारणकर गऊओं के पीछे-पीछे सखाओं और बलरामजी के साथ बाँसुरी बजाते और नाना प्रकार की क्रीड़ाएँ करते हुए आनन्द से विचरण करते हैं। 

श्रीकृष्ण की इस रूपमधुरिमा का आस्वादन केवल ब्रजवासियों एवं विशेषकर गोपियों के लिए ही सुलभ है। वहाँ के मयूर, शुक, सारी, गौएँ, बछड़े तथा नदियाँ सभी धन्य हैं। वे स्वच्छन्द रूप से श्रीकृष्ण की विविध प्रकार की माधुरियों का पान करके निहाल हो जाते हैं।

रंगशाला में चाणूर ने कृष्ण पर प्रहार पर प्रहार किए, किंतु उसके प्रहार कृष्ण पर ऐसे लग रहे थे, जैसे हाथी के शरीर पर फूल फेंककर मारे जा रहे हों, भगवान श्रीकृष्ण ने अंततः उसकी बाँह पकड़ी और वमन करता हुआ चाणूर यमलोक पहुँच गया। तभी बलराम ने भी मुष्टिक के मस्तक पर प्रहार करके उसकी खोपड़ी तोड़ दी। शेष रंगभूमि में जितने भी मल्लयोद्धा थे, उनका या तो कृष्ण-बलराम ने संहार कर डाला या फिर वे वहाँ से भाग निकले। इसके तदनन्तर कूट, शल, तोषल आदि भी मारे गये।

प्रस्तुति - राकेश चतुर्वेदी

TTI News

Your Own Network

CONTACT : +91 9412277500


अब ख़बरें पाएं
व्हाट्सएप पर

ऐप के लिए
क्लिक करें

ख़बरें पाएं
यूट्यूब पर