तृतीय गृह एकादश गृहाधीश श्रीबालकृष्णलालजी महाराज - 3

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प्रस्तुति : श्रीधर चतुर्वेदी

।।श्रीद्वारकेशो जयति।।

तृतीय गृह गौरवगान | प्रसंग:- 213

तृतीय गृह एकादश गृहाधीश श्रीबालकृष्णलालजी महाराज - 3

कल के प्रसंग में श्रीबालकृष्णलालजी का कांकरोली घर में गोद आना और उनके विवाह एवं सन्तति के विषय में जानकारी प्राप्त करने के बाद आज उनके चरित्र की महत्त्वपूर्ण घटनाओं से अवगत होने का उपक्रम आरम्भ करते हैं।

"सं.1939 में पद्मावती माजी महाराज के दिवंगत हो जाने पर महाराजश्री ने कांकरोली का स्वयं शासन करना प्रारंभ किया। तिलकायित बनने के बाद कुछ समय बाद ही इन्होंने प्रदेश-भ्रमण कर अपनी वैष्णवसृष्टि को सँभालना शुरू कर दिया। विस्तारभय से इनके सभी प्रवास-यात्राओं का वर्णन कर पाना अति कठिन होने से यहाँ उनकी कुछ विशेष यात्रा और प्रदेश का वर्णन करेंगें।"

 

"सं.1950 के भाद्रपद मास के प्रारंभ में महाराजश्री ने व्रज चौरासी कोस की यात्रा की। इस समय साथ में इनके भाई श्रीगोपाललालजी महाराज, श्रीजीवनलालजी महाराज, श्रीगिरिधरलालजी महाराज, श्रीमधुसूदनलालजी महाराज आदि प्रायः सभी निकटवर्ती आत्मीय विद्यमान थे। इस यात्रा में इन्होंने अपने नाम के अनुरूप ख़ूब ही दानपुण्य किया था।"

"सं.1950 में महाराजश्री अपने भाई काशीस्थ गोपाल-मंदिर के अधिपति श्रीजीवनलालजी महाराज के आग्रह पर काशी गये और वहाँ श्रीगोपाललालजी ठाकुरजी की सेवा तथा विविध मनोरथ कर तीर्थयात्रा की। यहाँ रहकर महाराजश्री ने अच्छी साहित्यिक प्रगति की। इसी वर्ष इन्होंने अपने भाइयों के साथ बड़ी सजधज के साथ बहुत सा रुपया व्यय कर बुढ़वामंगल के मेला में एक नई ही रंगत पैदा कर दी। कहते हैं कि- महाराजश्री की ओर से चारों ओर कपड़े रँगने का मुफ़्त प्रबन्ध कर दिया गया था। मेला देखनेवाला कोई भी व्यक्ति बिना गुलाबी रंग के कपड़े पहिने नहीं आ सकता था। चारों ओर एक ही रंग दिख रहा था। इस प्रकार महाराज ने अपने रंग में समस्त काशी को रँग कर जैसी वाहवाही लूटी वैसी आज तक किसी को भी नहीं मिली।"

 

"सं.1961 भाद्रपद मास में महाराजश्री ने अपने अन्य भ्राताओं के साथ द्वितीय बार व्रज चौरासी कोस की यात्रा की। इसमें उन्होंने यात्रियों के लिए विशेष रूप से सुविधाओं का ध्यान रखकर आवश्यक प्रबन्ध किया था। गिरिराज आदि स्थानों पर विविध मनोरथ किये गये। जब यात्रा का मुक़ाम भरतपुर राज्य के डीग नामक स्थान में हुआ, तब भरतपुर-महाराजा ने आकर महाराजश्री तथा परिकर का स्वागत किया, और दर्शन कर भेंट चढ़ाई। महाराजश्री ने अपनी यात्रा के सभी स्थलों के फोटू उतरवाये, जिसमें भरतपुर-नरेश भी एक चित्र में उपस्थित हैं। यह अलबम द्वारकेश-चित्रशाला में संग्रहित है। इस यात्रा में महाराजश्री तथा उनके भाइयों ने स्थान-स्थान की रासलीलाएँ कराकर व्रजलीलाओं का अनुभव और विशेष रूप में दानपुण्य किया था।"

 

आज के प्रसंग को यहाँ विराम देते हुए कल श्रीबालकृष्णलालजी के यहाँ पुत्रजन्म के उत्सव का विवरण देखेंगें। साथ ही उनके द्वारा श्रीद्वारकाधीश प्रभु को विट्ठलविलास बाग़ में पधराकर आयोजित किये गये अद्भुत छप्पनभोग मनोरथ का वृत्तांत भी पढ़ेंगें।

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