आओ नैतिकता के दीए जलाएं

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विजयादशमी जानी बुराई पर अच्छाई की विजय का दिन और विजयादशमी के दिन भगवान श्रीराम ने आततायी रावण का अंत कर, लंका से अयोध्या पहुंचने में श्री राम को 20 दिन लगे ।और जब श्रीराम कार्तिक मास की अमावस्या को अयोध्या पहुंचे। तो अयोध्या वासियों ने नगर में दीप जलाकर  नगर को जगमग कर दिया। और उस दिन से दीपावली का शुभारंभ हुआ।

 

 आज उत्तर प्रदेश की सरकार ने भी त्रेता युग के उस दृश्य को अयोध्या में साकार किया है। मनुष्य जीवन अवगुणों का भंडार है परंतु कोई भी अवगुण मनुष्य में जन्म से नहीं होता है। वह इस धरा पर ही दानव और मानव का पाठ ग्रहण करता है, यदि मनुष्य का बचपन नैतिकता- धर्म और नीति की संगत में चला जाता है तो वह उस सदप्रवृत्ति को अपना लेता है, और यदि मानव बालपन अनैतिकता- अधर्म और अनीति की ओर चला जाता है तो वह अवगुणी बन जाता है।

 

प्रत्येक राष्ट्र में अनेक महापुरुष हुए हैं। उसी प्रकार प्रत्येक राष्ट्र में बहुत सारे सामाजिक संगठन भी चलते हैं। परंतु नैतिक मान्यताओं और परंपराओं को संजोकर स्थायित्व प्रदान करना ना तो प्रत्येक महापुरुष के द्वारा संभव हुआ है, और ना ही किसी सामाजिक संगठन के द्वारा। क्योंकि अवगुणों से सद्गुणों तक का सफर अथवा सद्गुणों से   अवगुणों तक का सफर ही जीवन चक्र है ।

 

परंतु यदि यह महापुरुष और सामाजिक संगठन उसजीवन चक्र में ना मिले ,तो!आप कल्पना कीजिए क्या प्रत्येक वर्ष प्रभु श्री राम रावण का वध करने पृथ्वी पर अवतरित होंगे ।

 

इसलिए प्रभु श्रीराम के मार्गदर्शन को समयानुसार स्थापित करने का कार्य करते हैं महापुरुष और सामाजिक संगठन जो श्री राम की मर्यादा को स्मरण दिलाने हेतु दीपोत्सव पर्व की महत्ता का उद्देश्य समाज को देते हैं ।

 

यहां मैं युवा पीढ़ी की जानकारी हेतु दो बातों का उल्लेख करना चाहूंगा ।हमारे समाज में एक कहावत प्रचलित है "अपने घर में कुत्ता भी शेर बनता है" परंतु भगवान श्रीराम ने रावण को अयोध्या में नहीं बल्कि उसके राज्य की सीमा में लंका में कुल    सहित यमलोक पहुँचाया था।

दूसरी घटना अभी हाल ही की सन 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ तो देश के लौह पुरुष गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने भारत में फैली हुई 500 से ज्यादा रियासतों   में से अधिकांश राजाओं के राज्य में जाकर ही भारत सरकार में विलय के पत्र पर हस्ताक्षर कराए थे इसीलिए उन्हें लौह पुरुष कहा जाता है।

 

 कहने का तात्पर्य यही है भारतीय सनातन धर्म के देवी-देवताओं के एक हाथ में नैतिकता की पुस्तक  यानी शास्त्र है और दूसरे हाथ में नैतिकता की स्थापना के लिए अत्याचारीयों को उनके घर में जाकर सबक सिखाने के लिए शस्त्र है ।

 

जब जब भारत भूमि पर दुराचार यों की अधिकता हुई तब तब अनेक संतों ,ऋषियो ,योद्धाओं और महापुरुषों ने इस धरा पर अपने नैतिकता की स्थापना की है उसी कड़ी में समय की आवश्यकता को भापकर एक सामाजिक संगठन की स्थापना विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रूप में इस राष्ट्र के महापुरुष परम पूज्य डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार जी ने सन 1925 में की। उनकी सोच और आशय स्पष्ट था ,कि समाज में घट रही नैतिकता को कर्मशीलता के द्वारा पुनः स्थापित किया जा सकता है ।और विजयादशमी के दिन से प्रारंभ हुआ नैतिकता का दीपक जलाने का संदेश केवल दीपावली के दिन ही नहीं बल्कि आज इस राष्ट्र को नैतिकता के दीपक रूपी प्रकाश की प्रतिदिन आवश्यकता है और उसी के लिए उन्होंने प्रारंभ की दैनिक शाखा यानी प्रतिदिन की नैतिकता की पाठशालाएं देश मे स्थान ,-स्थान पर चलें और सैकड़ों कार्यकर्ता स्वयं दीपक बनकर अपनी कर्म शीलता के प्रकाश से इस राष्ट्र के सामाजिक वातावरण से रावण रूपी अनैतिकता के दोषों को समाप्त करें ।

 

डॉक्टर साहब का मानना था कि भारत भूमि को आज इतने नैतिक दीपको की आवश्यकता है कि उन दीपको के प्रकाश से देश का कोई नगर, ग्राम ,गली, मोहल्ला रिक्त ना रह जाए। और हम सभी जानते हैं और हमने सुना है कि दीप से दीप जलाने की परंपरा उसी त्रेतायुग में  मनाई गयी दीपावली से चली आ रही है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ केआद्य सरसंघचालक परम पूज्य डॉक्टर हेडगेवार  जी ने उसी राम युग की दीप से दीप जलाने की परंपरा की पुनः स्थापना शाखा के रूप में स्वयं सेवक से स्वयं सेवक का निर्माण और यह विकास क्रम चलता रहे ।और नैतिकता के दीपक स्वयं जलकर इस राष्ट्र को देदीप्यमान करते रहें।

 

तो आइए इस दीपावली पर नैतिकता के दीपकों की प्रगाढ़ता में और तत्परता के साथ वृद्धि करें और प्रतिदिन दीपक जलाने के व्रत का स्मरण कर पालन करें।

 

 सभी राष्ट्र प्रेमी और धर्म प्रेमी नागरिकों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।

 

- अजय कुमार अग्रवाल

 भाग बौद्धिक प्रमुख

 कृष्ण भाग

 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, मथुरा. (बृज प्रान्त)

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