नवग्रह और वनस्पति

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  • Jeevan Mantra

सामान्य उपचारों में देखें तो यदि शनि मारकेष है तो राजपथ पर वट वृक्ष लगाने से आयु बढ़ती है। गुरु निर्बल है या किसी अन्य ग्रह के कारण अल्पायु योग बनाता है तो गुरुवार के दिन पीपल का वृक्ष लगाना श्रेयष्कर है। चंद्रमा का किसी तरह का दोष है तो पलाष का एक फलदार वृक्ष लगाने से इसका प्रभाव सकारात्मक हो जायेगा। इसी तरह आयुर्वेद की औषधियों की भांति ज्योतिष में भी वृक्षों का इस्तेमाल ग्रहों के दुष्प्रभावों को दूर करने में किया जाता रहा है। हर वृक्ष किसी न किसी ग्रह से संबंधित है। कुछ वृक्षों को विषेष रूप से चिन्हित किया गया है, जो ग्रह शांति के लिए सटीकता के साथ काम करते हैं। एक ओर यज्ञ के जरिए ग्रह शांति तो दूसरी ओर शरीर पर धारण कर ग्रहों की पीड़ा को कम करने के लिए वनस्पतियों का इस्तेमाल किया जाता रहा है। इसके साथ ही वास्तु संबंधी दोषों को दूर करने में भी पौधों की महत्वपूर्ण भूमिका है।

 

ज्योतिषीय उपचारों के लिए यज्ञ में वनस्पति का विषद् उपयोग बताया गया है। वेदों और पुराणों के अनुसार ग्रह का सबसे सषक्त माध्यम यज्ञ है। बाद के विद्वानों ने स्पष्ट किया है कि कौन सी वनस्पति के काष्ठ की आहुति देने पर क्या उपचार हो सकता है। यज्ञाग्नि प्रज्वलित रखने के लिए प्रयोग किए जाने वाले काष्ठ को समिधा अथवा इध्म कहते हैं। प्रत्येक लकड़ी को समिधा नहीं बनाया जा सकता। आह्निक सूत्रावली में ढाक, फल्गु, वट, पीपल, विकंकत, गूलर, चन्दन, सरल, देवदारू, शाल, खैर का विधान है। वायु पुराण में ढाक, काकप्रिय, बट, पिलखन, पीपल, विकंकत, गूलर, बेल, चन्दन, पीतदारू, शाल, खैर को यज्ञ के लिए उपयोगी माना गया है। दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाष में यज्ञ के लिए पलाष, शमी, पीपल, बट, गूलर, आम व विल्व को उपयोगी बताया है। उन्होंने चन्दन, पलाश और आम की लकड़ी को तो यज्ञ के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया है। सूर्य के लिए अर्क, चंद्र के लिए ढाक, मंगल के लिए खैर, बुध के लिए अपामार्ग, गुरू के लिए पारस पीपल, शुक्र के लिए गूलर, शनि के लिए शमी और राहू के लिए चन्दन (दूर्वा) व केतु के लिए असगंध (कुश) वनस्पतियों को उपचार का आधार बनाया जाता है। ज्योतिष और वनस्पति विज्ञान प्रकृति के पूरक हैं। वृक्ष और वनस्पतियां मनुष्य के ग्रहों की स्थिति तक बदल देती हैं। पेड़-पौधे लगाने व उनकी देखभाल से पर्यावरण संरक्षण के साथ ही जीवन में स्वास्थ्य, सुख और संपन्नता हासिल होती है।

 

वास्तु से जुड़ी वनस्पतियांः- किसी भी घर में पक्के मकान के साथ कच्ची जमीन हो तो वास्तु के कई उपचार इसी कच्ची जमीन पर हो सकते हैं। चारदीवारी के भीतर के वास्तु से बाहर आने पर बाउंड्रीवाल के भीतर के वास्तु को दुरुस्त करने के लिए पौधों का बेहतरीन इस्तेमाल किया जा सकता है। घर के आगे नवग्रहों के वृक्षों की स्थापना के लिए सिद्धांत बताए गए हैं। इसके लिए स्पष्ट किया गया है कि पूर्व में गूलर, पश्चिम में शमी, उत्तर में पीपल, दक्षिण में खैर और मध्य में आक का वृक्ष लगाना लाभदायी है। इसके अलावा उत्तर पूर्व में अपामार्ग, उत्तर पश्चिम में असगंध (कुश), दक्षिण पष्चिम में चंन्दन (दूब) और दक्षिण पूर्व में ढाक का वृक्ष लगाना चाहिए। इससे पूरे प्लाट के वास्तु दोष बहुत हद तक खत्म हो जाते हैं और घर में सुख शांति का वातावरण बना रहता है।

 

ग्रहों के अधीन पौधे :- पर्वतों पर उगने वाले पौधे, मिर्च, शलजम, काली मिर्च व गैहूं को सूर्य के अधिकार में बताया गया है। इसी तरह खोपरा, ठण्डे पदार्थ, रसीले फल, चावल और सब्जियां चंद्रमा से संबंधित हैं। नुकीले वृक्ष, अदरक, अनाज, जिंसें, तुअर दाल और मूंगफली को मंगल से देखा जाएगा। बुध के अधिकार में नम फसल, भिंडी, मूंग दाल और बैंगन आते हैं। वृहस्पति ग्रह से केला के वृक्ष, खड़ी फसल, जड़ें, बंगाली चना और गांठों वाले पादप जुड़े हैं। शुक्र के अधीन फलदार वृक्ष, फूलदार पौधे, पहाड़ी पृक्ष, मटर, बींस और लताओं के अलावा मेवे पैदा करने वाले पादप आते हैं। शनि से संबंधित वृक्षों में जहरीले और कांटेदार पौधे, खारी सब्जियां, शीषम और तम्बाकू शामिल हैं। राहू और केतू के अधिकार में शनि से संबंधित वृक्षों के अलावा लहसुन, काले चने, काबुली चने और मसाले पैदा करने वाले पौधे आते हैं।

 

पीड़ा निवारण के लिए :-

 

सूर्य की पीड़ा होने परः- बेलपत्र की जड़ को लाल डोरे में बांधकर पहनने से आराम मिलता है। यदि हवन किया जाए तो समिधा के रूप में आक का इस्घ्तेमाल किया जाता है। सूर्य के कारण आ रही बाधा के निवारण के लिए मंत्र दिया गया है ‘ऊं ह्रां ह्रीं ह्रौ सः सूर्याय नमः’ इस मंत्र के सात हजार जाप करने होंगे।

 

चंद्र की पीड़ा होने परः- खिरनी की जड़ को सफेद डोरे में बांधकर पहनने से लाभ होता है। यदि चंद्रमा की शांति के लिए हवन किया जाता है कि इसमें पलाष की लकड़ी का समिधा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। चंद्र से बाधा होने पर ‘ऊं श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः’ का पाठ करने से लाभ होगा। इस मंत्र के ग्यारह हजार जाप बताए गए हैं।

 

मंगल की पीड़ा होने परः- अनन्तमूल की जड़ को लाल डोरे में बांधकर पहनने से लाभ होगा। मंगल शांति यज्ञ में खैर की लकड़ी को समिधा के रूप में काम में लिया जाता है। मंगल शांति के लिए ‘ऊं क्रां क्रीं कौं सः भौमाय नमः’ के दस हजार जाप करने का प्रावधान बताया गया है।

 

बुध की पीड़ा होने परः- विधारा की जड़ को हरे डोरे में बांधकर पहनने से पीड़ा दूर होती है। बुध की शांति के लिए किए जाने वाले यज्ञ में अपामार्ग को समिधा के रूप में काम में लिया जाता है। मंत्र जाप के रूप में ‘ऊं ब्रां ब्रीं बौं सः बुधाय नमः’ के नौ हजार पाठ करने का प्रावधान है।

 

बृहस्पति की पीड़ा होने परः- केले की जड़ को पीले धागे में बांधकर पहनने से लाभ होगा। गुरु ग्रह की शांति के लिए किए जाने वाले यज्ञ में पीपल को समिधा के रूप में काम में लिया जाता है। बृहस्पति पीड़ित होने पर ‘ऊं ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः’ के उन्नीस हजार पाठ करने से लाभ होता है।

 

शुक्र पीड़ित होने परः- सरपोंखा की जड़ को चमकीले धागे में बांधकर धारण करने से लाभ होता है। गूलर की समिधा को शुक्र शांति के यज्ञ में इस्घ्तेमाल किया जाता है। शुक्र की बाधा के निवारण के लिए ‘’ऊं द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः’’ के सोलह हजार पाठ का प्रावधान बताया गया है।

 

शनि की पीड़ा होने परः- बिच्छु की जड़ को काले धागे में बांधकर पहनने से लाभ होता है। शनि शांति यज्ञ में शमी की समिधा का उपयोग किया जाता है। शनि की पीड़ा के निवारण के लिए ‘ऊं प्रां प्रीं प्रौं सः शनैष्चराय नमः’ के 23 हजार पाठ का प्रावधान बताया गया है।

 

राहु की पीड़ा होने परः- सफेद चंदन की लकड़ी को पहनने से लाभ होता है। धागा उसी रंग का लिया जाएगा, जिस राषि में राहू स्थित है। राहू की पीड़ा के निवारण के लिए किए जाने वाले यज्ञ में चन्दन का इस्तेमाल समिधा के रूप में किया जाता है। राहु की शांति के लिए ‘ऊं भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः’ के 18 हजार पाठ करने की सलाह दी जाती है।

 

केतु की पीड़ा होने परः- असगंध की जड़ को धारण करने से लाभ होता है। केतु के लिए भी राषि स्वामी के अनुरूप ही धागा लिया जाएगा। केतु की पीड़ा निवारण के लिए होने वाले यज्ञ में असगंध का इस्तेमाल समिधा के रूप में किया जाता है।केतु की शांति के लिए ‘ऊं स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः’ के दस हजार पाठ करने का प्रावधान है।

पं बनवारी चतुर्वेदी

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