हजारों साल पुराना है वैदिक धर्म और यह हमेशा रहेगा : प्रो. अरविंद

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किशन चतुर्वेदी

वरिष्ठ पत्रकार

मथुरा 25 जनवरी 2021

संस्कृति विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित महत्वपूर्ण आनलाइन व्याख्यान श्रंखला, ‘चांसलर डिस्टिंग्विश लेक्चर्स सिरीज-लीडर्स टुडे’ के तीसरे चरण में ‘द सनातन वैदिक धर्मा, ऐगेमिक ट्रेडिशन एंड भगवत् गीता’ विषय पर बोलते हुए मुख्य वक्ता प्रोफेसर अरविंद पी जमखेदकर चेयरमैन इंडियन काउंसिल आफ हिस्टोरिकल रिसर्च, नई दिल्ली ने कहा कि संसार में वैदिक धर्म ही है जो हजारों साल से चलता आ रहा है और चलता रहेगा। सनातन धर्म में समयानुकूल परिवर्तन आए हैं। 

उन्होंने कहा कि कुछ खोजकर्ताओं का मत है कि ईसा के दो हजार पूर्व सिंधु नदी की सभ्यता के दौरान वैदिक धर्म की उपस्थिति के प्रमाण मिले हैं। यानि की यह धर्म उससे पूर्व से चलता आ रहा है। उन्होंने कहा कि किसी धर्म के अध्ययन के लिए तीन बिंदु महत्वपूर्ण होते हैं, पहला उससे जुड़ी पुराण कथाएं क्या हैं, दूसरा धर्म की विधि क्या है और तीसरा है उसकी नीति क्या है। हमारे वेद धर्म का स्थान लेते हैं।

वेद भगवान की सहच क्रिया ही हैं। स्मृति बाद में आती है। वैदिक धर्म के लिए यज्ञ का आचरण करना बताया गया है। यज्ञ में मंत्रों का उच्चारण होता है। ये मंत्र वेदों में उल्लेखित हैं। बहुत शक्तिशाली हैं। यज्ञ में मंत्रों का उच्चारण कर देवताओं का प्रसन्न किया जाता है। यज्ञ में संस्कार होते हैं। ये सब करने के बाद आत्मा शुद्ध होती है। यज्ञ का ऐसा अनुभव बताया गया है। 

प्रोफेसर अरविंद ने विद्यार्थियों और शिक्षकों को विस्तार से समझाते हुए कहा कि ब्राह्मण ग्रंथ यज्ञ करने का तरीका बताते हैं। यज्ञ के रहस्य को जान लें तो यज्ञ करें। यज्ञ से ज्ञान प्राप्त होता है। मन शुद्ध होता, प्राणी सदाचार के लिए प्रेरित होता है। उन्होंने कहा कि संसार चक्र टलता नहीं, इससे मुक्ति पानी है और आगे बढ़ना है तो हमें आत्मज्ञान होना जरूरी है।

उत्तरायण में मरेंगे तो स्वर्ग लोक में जाएंगे बार-बार जन्म से मुक्ति मिलेगी और दक्षिणायन में मरेंगे तो पितृलोक में जाएंगे यानि बार-बार किसी न किसी रूप में पृथ्वी पर आना पड़ेगा। उन्होंने बताया कि ब्राह्मण ग्रंथों से वैदिक परंपरा में बदलाव आए। उन्होंने विभिन्न ऋषि-मुनियों का ब्यौरा देते हुए मनुष्य के चार आश्रमों, तीन ऋणों और दस लक्षणों के बारे में विस्तार से बताया। 

प्रोफेसर अरविंद ने गीता के कर्मयोग के बारे में प्रकाश डालते हुए कहा कि सबके कल्याण की प्रेरणा भागवत् गीता से मिलती है। उन्होंने कहा कि आपको सबकुछ मिलेगा यदि आप अपने जीवन में भारतीय परंपराओं का निर्वाह करेंगे, गीता के कर्मयोग का पालन करेंगे। इससे आप जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाएंगे और आपका आध्यात्मिक व आत्मिक दोनों तरह से विकास होगा। 

वेबिनार के प्रारंभ में संस्कृति विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सी.एस. दुबे ने मुख्य वक्ता प्रोफेसर अरविंद का स्वागत करते हुए कहा कि संस्कृति विवि के कुलाधिपति सचिन गुप्ता को विशेष रूप से धन्यवाद देना चाहूंगा जिनकी प्रेरणा से विद्यार्थियों को अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वानों के विचार सुनने का अवसर मिल रहा है। वेबिनार का संचालन विवि के स्कूल आफ फार्मेसी की फैकल्टी रिंका जुनेजा ने किया।

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