उत्तर प्रदेश, मथुरा : विश्व संगीत कुम्भ का विसर्जन समारोह बना अविस्मरणीय

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मथुरा 3 सितम्बर 2020

पद्मभूषण पं० सामता प्रसाद जी की 101वीं जयन्ती के उपलक्ष्य में 40 दिवसीय महापर्व "विश्व संगीत कुंभ" का विसर्जन समारोह अत्यंत भव्यता से संपन्न हुआ।सर्वप्रथम कार्यक्रम की एंकर निराजना शर्मा ने अत्यंत वैविध्य पूर्ण ढंग से "विश्व संगीत कुंभ विसर्जन समारोह" का शुभारंभ किया। उन्होंने सभी प्रमुख कलाकारों का परिचय प्रस्तुत किया।

इसके पश्चात ट्रस्ट की सचिव व इस महापर्व की संयोजिका डॉ० रेनू जौहरी ने कहा कि सदी के महानतम कलाकार पद्मभूषण पं० सामता प्रसाद जी की 101वीं जयन्ती के उपलक्ष्य में 40 दिन की सुर-लयांजलि-भावांजलि महाराज जी को अर्पित की गई।

महाराज जी की यश प्रतिष्ठा की भांति यह 40 दिन लंबा ऑनलाइन उत्कृष्ट समारोह विश्व संगीत के इतिहास में सदा के लिए अंकित एवं अमर हो गया। श्रद्धांजलि समर्पण की यह भव्य परंपरा भारतीय संस्कृति की देन है। श्रेष्ठ, उत्कृष्ट व्यक्तियों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन किसी पर कोई एहसान नहीं है अपितु ऋषि-ऋण के प्रति कृतज्ञ होना है ऐसा करने से श्रेष्ठ आत्माओं का हृदय गत आशीष मिलता है। उनकी प्रसन्नता से हमारा इस लोक में कल्याण होता है।

प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है। विश्व संगीत कुम्भ विसर्जन समारोह के मुख्य अतिथि ताल योगी पद्मश्री पं० सुरेश तलवलकर जी ने  पद्मभूषण पं० सामता प्रसाद ट्रस्ट के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा की पं० सामता प्रसाद जी बहुत महान कलाकार थे। उनके नाम के आगे सभी झुकते हैं। उनकी 101 वीं जन्म जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित विश्व संगीत कुंभ के सफल आयोजन हेतु मैं हृदय से साधुवाद देता हूँ।

विश्व संगीत कुम्भ विसर्जन समारोह की पर्यवेक्षक प्रो० पंकज माला शर्मा,चंडीगढ़ ने कहा कि जो सब प्राणियों में चैतन्य रूप है,व्यापक है और सारे विश्व की आत्मा है, उसका आनन्द आद्वितीय है; ऐसे नाद की हम उपासना करते हैं। इस मार्ग को जाने का ढंग जो बताता है, वह गुरु है। देवता के तीनों गुण  द्योतन(चमकना),दिव्यता(अलौकिक) तथा दान पद्मभूषण पं. सामता प्रसाद (गुदई महाराज) में निहित होने के कारण उन्हें तबले का देवता कहा गया।

इसके पश्चात पंजाब घराने के वरिष्ठ तबला वादक पं० रमाकांत जी का स्वतंत्र तबला वादन हुआ। उन्होंने विलंबित तीन ताल में उठान, पंजाब तथा बनारस घराने के सम्मिश्रित बोलों का पेशकार व  कुछ प्रसिद्ध कायदे-पल्टे बजाए। द्रुत लय में ऐसी महत्वपूर्ण गतें प्रस्तुत कीं जो परंपरागत पंजाब घराने में पल्लवित होकर बनारस की भी खास चीज बन गई हैं तथा बनारस घराने में बहुलता से बजाई जाती हैं। इन गतों को 'बीवी की गतें' भी कहा जाता है। इन गतों की रोचक परंपरागत कथा आज भी तबला रसिक याद करते हैं। पंजाब घराने की महत्वपूर्ण तबला जोड़ी पर खुले बोलो की खास प्रस्तुति की l वायलिन पर आपके नाती चैतन्य शर्मा ने अत्यंत सधा हुआ नगमा दिया।

इसके पश्चात देहरादून की सुप्रसिद्ध नृत्यांगना मंजूषा सौरखिया ने महाराज जी के तबला वादन से सुसज्जित - झनक - झनक पायल बाजे फिल्म के गीत -"मुरली मनोहर कृष्ण कन्हैया" पर अत्यंत मनोहारी नृत्य प्रस्तुत कर महाराज जी को श्रद्धांजलि दी। 

विसर्जन समारोह का प्रमुख आकर्षण देश के मूर्धन्य, सरस व सशक्त, संत गायक टॉप श्रेणी कलाकार संगीत-नाटक अकादमी व पद्मश्री सम्मान प्राप्त एम० वेंकटेश कुमार जी का गायन रहा। आपने सर्वप्रथम राग यमन की अवतारणा कर एक ताल में निबद्ध बड़ा ख्याल 'मेरा मनवा' का क्रमबद्ध स्वरात्मक विकास करते हुए अत्यंत सुंदर बढ़त की। फ़िर तीनताल में निबद्ध सुप्रसिद्ध छोटा ख्याल -'एरी आली पिया बिन' की अत्यंत ही मनोहारी प्रस्तुति की। किराना ग्वालियर घरानों की विशिष्टता युक्त आपकी गायकी में पटियाला घराने व कर्णाटिक संगीत की विशिष्टताएं भी पाई जाती हैं।

अत्यंत उत्तम, सरस, जबरदस्त, अत्यंत सुंदर गायकी ने सबका मन मोह लिया। आपके साथ हारमोनियम पर श्री नरेंद्र एल० नायक, तबला पर श्री केशव जोशी तथा तानपुरा पर श्री अर्जुन वटार व किरण नायक ने अनुकूल संगति की। कार्यक्रम के अंत में भैरवी में बहुत सुंदर बंदिश 'श्याम सुंदर मदन मोहन जागे मोरे लाल' का वात्सल्य रस युक्त गायन कर नेत्र सजल कर दिए।

तत्पश्चात कुम्भ की संयोजिका डॉ० रेनू जौहरी ने शंखाध्वनि कर विधिपूर्वक समस्त दैवीय शक्तियों को भावभीनी विदाई दे 40 दिवसीय विश्व संगीत कुंभ की विसर्जन प्रक्रिया संपन्न की।

अन्त में संगीत-मनीषी डॉ० राजेन्द्र कृष्ण अग्रवाल, मथुरा ने बेहद भावभीना उद्बोधन देकर सभी की आँखें नम कर दीं। उन्होंने कहा कि सिर्फ़ और सिर्फ़ संगीत ही एक ऐसी कला है, जिसमें एकीकरण के तत्त्व मिलते हैं। हमने दूसरे देशों के कलाकारों में पाकिस्तान तक के कलाकारों को स्थान देकर यह सिद्ध भी किया। उन्होंने कहा कि संस्कृति से ही सम्पूर्णता की ओर गमन सम्भव है। उन्होंने जाने-अनजाने हुई गलतियों के लिए सभी कलाकारों, ट्रस्टियों, मीडियाकर्मियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि-

विश्व संगीत कुम्भ में, हुए हों जो अपराध।

हाथ जोड़ माँगे क्षमा, यही 'रजक' की साध।।

यही 'रजक' की साध, क्षमा कर दीजे इसको।

अज्ञानी, अंजान, अनाड़ी मान के इसको।।

बनी रहे ऐसे ही कृपा, गुदई गुरुवर की।

बहती रहे त्रिवेणी ताल, सुस्वर अरु लय की।।

ऑनलाइन सम्पन्न इस भव्य-दिव्य समारोह में अध्यक्ष श्रीमती शकुन्तला जौहरी, संरक्षिका डॉ० शशि भारद्वाज, पर्यवेक्षक श्री राजीव किशोर श्रीवास्तव, डॉ० सीमा जौहरी, प्रो० विद्याधर प्रसाद मिश्र, पं० भोलानाथ मिश्र, पं०विजय शंकर मिश्र, अलीशा मिश्र, डॉ० संध्या वर्मा, डॉ० कविता श्रीवास्तव, एकता विशाल बंसल, कुसुम बंसल, नागेन्द्र मिश्र, शिवांगी सक्सेना, एकता गुप्ता, विक्की कुमार आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। ऊर्जा श्रीवास्तव, कामिनी निषाद, स्फूर्ति श्रीवास्तव, इंदाली शर्मा, दर्शी श्रीवास्तव, आलोक अग्रवाल, अंतस प्रकाश ने सक्रिय योगदान दिया।

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