बृज के राजा दाऊजी महाराज का जन्मोत्सव आज

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बृज के राजा दाऊजी महाराज का जन्मोत्सव आज

भगवान कृष्ण के बड़े भाई दाऊबाबा का जन्मोत्सव आज

यूपी के मथुरा जनपद के जिला मुख्यालय से 22 km पर है दाऊजी महाराज की नगरी बलदेव (दाऊजी)

कोरोना के चलते दर्शनार्थी नहीं हो सकेंगे आयोजन में शामिल

 

सुजीत वर्मा

बलदेव 24 अगस्त 2020

बधाई बाजे घर-घर मंगलचार, बिरज में जन्मेंगे बलदेव कुमार। ब्रज क्षेत्र में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के बाद कान्हा बड़े भाई बलदाऊ का जन्मोत्सव मनाने के लिए श्रद्धालुओं में विशेष उत्साह है।कल 24 अगस्त  को श्रद्धा और भक्ति के साथ यह आयोजन होगा। लेकिन कोरोना के चलते दर्शनार्थी व भक्तगण आयोजन व दर्शनों से वंचित रहेंगे।

आज सुबह अभिषेक के बाद दाऊजी महाराज  हीरा जवाहरात के साथ श्रृंगार धारण करेंंगे। दोपहर को नंदोत्सव के रूप में दधिकाधौं उत्सव मनाया जाएगा। इसमें प्रसाद स्वरूप नारियल, फल, मेवा के साथ हल्दी, माखन, मिश्री, दही के रूप लाला की छीछी लुटाई जाएगी। इसे लूटने के लिए मल्ल विद्या का प्रदर्शन होगा। नंद के आनंद भयौ जय दाऊदयाल की के स्वर गुंजायमान होंगे। श्रद्धालु घर-घर में भी अपने आराध्य का जन्मदिन मनाएंगे। 

जन्म की रोचक कथा

गर्ग संहिता के बलदेव खंड में शेषावतार बलदेव के जन्म की रोचक कथा का वर्णन है। लिखा है कि देवकी के सातवें गर्भ में भगवान अनंत का आगमन हुआ। वसुदेवजी की दूसरी पत्नी रोहिणी भी कंस के भय से नंदबाबा के यहां गोकुल में रहती थी।

भगवान की आज्ञा पाकर योगमाया ने भगवान अनंत को देवकी के गर्भ से रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को जो स्वाति नक्षत्र और बुधवार का दिन था, मध्याह्न के समय, तुला लग्न मेें पांच ग्रह उच्च होकर स्थित थे, रोहिणी के गर्भ से बलदेव जी का जन्म हुआ।

कुषाण काल से पहले की प्रतिमा

शेषावतार बलराम की विशाल प्रतिमा भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र ब्रजनाभ ने अपने पूर्वजों की पुण्य स्मृति में स्थापित कराई थी। यही प्रतिमा द्वापर युग के बाद कालशेष से भूमिस्थ हो गई। पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार बलदेव में स्थापित मूर्ति कुषाण काल से पूर्व की है।

इसका निर्माण काल 3000 वर्ष या इससे अधिक होना चाहिए। विग्रह के प्राकट्य का इतिहास भी रोचक है। मान्यता हे कि गोकुल में महाप्रभु बल्लभाचार्य के पौत्र गोस्वामी गोकुलनाथ को बलदेव ने स्वप्न दिया कि श्यामा गाय जिस स्थान पर प्रतिदिन दूध स्त्रवित कर जाती है।

उस स्थान पर भूमि में उनकी प्रतिमा दबी हुई है। भूमि की खोदाई कराई गई तो श्रीविग्रह निकला। गोकुलनाथ ने विग्रह को तपस्वी कल्याण देवजी को पूजा अर्चना के लिए सौंप दिया और मंदिर का निर्माण कराया। तब से आज तक कल्याणदेव के वंशज ही मंदिर में नित्य प्रतिदिन पूजा सेवा कर रहे हैं। 

रामावतार में छोटे तो कृष्णावतार में बने बड़े भ्राता

भगवान बलराम को शेषावतार माना जाता है। रामावतार में लक्ष्मण के रूप में छोटे भाई बनकर प्रकट हुए तो वे ही कृष्णावतार में बडे़ भाई बने। दाऊजी महाराज को प्रतिदिन प्रिय भोग प्रसाद के रूप में माखन मिश्री, खीर पूड़ी, भांग, दूध, पेड़ा का भोग लगता है। धर्माचार्यों में बल्लभाचार्य, निम्बार्क, माध्व, गौड़ीय, रामानुज, शंकर, कार्ष्णि उदासीन आदि नियमित रूप से पधारते रहते हैं। 

भांग पीवे तो यहीं आजा

मान्यता है कि जब सभी देव ब्रज को छोड़ कर चले, तब बलदेव ब्रज के संरक्षक और रक्षक बनकर यहीं रहे। इसलिए दाऊजी को ब्रज का राजा माना जाता है। मान्यता यह भी है कि ब्रजराज प्यार और श्रद्धा से पुकारे जाने पर अदृश्य रूप में उपस्थित हो जाते हैं। तभी तो आज भी असंख्य श्रद्धालु अपनी बगीची में भांग घोंटते के बाद भांग का भोग लगाते समय दाऊजी महाराज को भांग पीने का आमंत्रण इस प्रकार देते हैं-‘दाऊजी महाराज ब्रज के राजा, भांग पीवे तो यहां आजा’।

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