आज का पंचांग

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  • Jeevan Mantra

रवींद्र कुमार ज्योतिष, वास्तु एवं रत्न सलाहकार (राया वाले)

दिनांक 09 अगस्त 2020

दिन - रविवार

विक्रम संवत - 2077

ऋतु - वर्षा

मास - भाद्रपद 

पक्ष - कृष्ण 

तिथि - षष्ठी पूर्ण रात्रि तक

नक्षत्र - रेवती शाम 07:07 तक तत्पश्चात अश्विनी

राहुकाल - शाम 05:23 से शाम 07:00 तक 

सूर्योदय - 06:16 

सूर्यास्त - 19:11

 

#हरदिनपावन

"9 अगस्त/बलिदान-दिवस"

काशीनाथ पगधरे एवं गोविंद ठाकुर का बलिदान

 

नौ अगस्त, 1942 का भारत के स्वाधीनता संग्राम में विशेष महत्व है। इस समय तक अधिकांश क्रांतिकारी फांसी पाकर अपना जीवन धन्य कर चुके थे। हजारों क्रांतिवीर जेल में अपना यौवन गला रहे थे। ऐसे में गांधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस के मंच से लोग स्वाधीनता के लिए संघर्ष कर रहे थे।

 

गांधी जी अंहिसा प्रेमी थे। उन्होंने सत्याग्रह को अपने संघर्ष का प्रमुख शस्त्र बनाया था। इससे पूर्व वे कई बार विभिन्न नामों से आंदोलन चला चुके थे। हर आंदोलन से लक्ष्य कुछ निकट तो आता था; पर पूर्ण स्वाधीनता अभी दूर थी। ऐसे में गांधी जी ने ‘करो या मरो’ का नारा देकर नौ अगस्त, 1942 से ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ आंदोलन की घोषणा कर दी।

 

अंग्रेज शासन ने नौ अगस्त तथा उससे पूर्व ही गांधी जी तथा कांग्रेस के अन्य प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। उन्हें लगता था कि इससे लोग नेतृत्वविहीन होकर घर बैठ जाएंगे तथा आंदोलन की मृत्यु हो जाएगी; पर हुआ इसका उल्टा। प्रायः सभी स्थानों पर सामान्य नागरिकों तथा युवाओं ने आगे बढ़कर इस आंदोलन की कमान अपने हाथ में ले ली।

 

जैसे ही गांधी जी की गिरफ्तारी का समाचार फैला, लोग सड़कों पर उतर आये। अनेक स्थानों पर पुलिस ने गोली चलाई, जिसमें कई लोग बलिदान हुए। महाराष्ट्र में काशीनाथ पगधरे तथा गोविंद ठाकुर ऐसे ही दो युवक थे, जिन्होंने अपनी प्राणाहुति देकर इस आग को और अधिक तीव्रता प्रदान की।

 

काशीनाथ तथा गोविंद का जन्म 1925 में महाराष्ट्र के क्रमशः सतपती एवं पालघर के पास के गांवों में हुआ था। नौ अगस्त को इस क्षेत्र में भी भारी तनाव उत्पन्न हो गया। पुलिस ने विद्रोह को दबाने के लिए चिनचिनी हाई स्कूल में छात्रों पर गोली चला दी। इस समाचार के फैलते ही छात्रों के अभिभावक तथा आम नागरिक पालघर तहसील केन्द्र पर एकत्र होने लगे।

 

यह देखकर अंग्रेज अधिकारी बौखला गये। उन्होंने आंदोलन को निर्ममता से कुचलने का आदेश दे दिया; पर वे जितना दमन करते, लोग उतने अधिक उत्साहित हो उठते। छात्र तथा युवकों का एक जुलूस नंदगांव से पालघर की ओर बढ़ने लगा। इसका नेतृत्व गोविंद ठाकुर कर रहा था। दूसरा जुलूस काशीनाथ पगधरे के नेतृत्व में सतपती से चला। ऐसे ही निकटवर्ती सभी गांवों से लोग पालघर की ओर बढ़ने लगे। धीरे-धीरे पालघर में काफी लोग एकत्र हो गये। लोग उत्साह में ‘भारत माता की जय’ के नारे लगा रहे थे।

 

शासन ने यह देखकर पालघर के तहसील कार्यालय पर सुरक्षा के लिए भारी पुलिस तैनात कर दी। यह देखकर एक बार जनता के कदम ठिठक गये; पर तभी काशीनाथ ने जोर से ‘वन्दे मातरम्’ और ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ की हुंकार भरी। इससे जनता फिर उत्साहित हो उठी और वह पुलिस का घेरा तोड़कर तहसील कार्यालय पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़ने लगी।

 

बाजी को हाथ से निकलता देख पुलिस अधिकारी ने गोली चलाने का आदेश दे दिया; लेकिन लोग फिर भी आगे बढ़ते रहे। अचानक एक गोली ने इस जुलूस के नेता काशीनाथ पगधरे का सीना चीर दिया। उसने तत्काल प्राण त्याग दिये। अन्य सैकड़ों लोग भी घायल हुए। इनमें से एक गोविंद ठाकुर भी था, जिसने अस्पताल में जाकर अपने प्राण छोड़े।

 

इन युवकों के बलिदान से आंदोलन और अधिक तीव्र हो गया, जिसके परिणामस्वरूप हम 15 अगस्त, 1947 का शुभ दिन देख सके। 

 

#हरदिनपावन

"9 अगस्त/जन्म-दिवस"

संघ इतिहास के व्यास चंद्रशेखर परमानंद भिषीकर

 

आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का साहित्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।  प्रायः हर राज्य में अपनी-अपनी भाषाओं में संघ के प्रकाशन संस्थान भी हैं, जहां न केवल संघ अपितु हिन्दू विचार को बढ़ाने वाला साहित्य प्रकाशित होता है। प्रायः सभी बड़े कार्यालयों पर संघ वस्तु भंडार भी हैं, जहां ऐसा साहित्य बिक्री हेतु उपलब्ध हो जाता है। प्रकाशन एवं विक्रय की समुचित व्यवस्था के कारण देश भर में कहीं न कहीं, किसी न किसी भाषा में प्रायः हर दिन संघ की कोई न कोई पुस्तक प्रकाशित हो रही है। प्रायः सभी प्रमुख भाषाओं में बड़े या छोटे समाचार पत्र और जागरण पत्रक भी प्रकाशित हो रहे हैं।

 

पर जब संघ का काम प्रारम्भ हुआ, तब ऐसा कुछ नहीं था। प्रसिद्धि से दूर रहने की नीति के कारण इस ओर किसी का ध्यान भी नहीं था; पर क्रमशः लेखन और सम्पादन में रुचि रखने वाले कुछ लोगों ने यह काम प्रारम्भ किया। श्री चंद्रशेखर परमानंद (बापूराव) भिषीकर ऐसे लोगों की मालिका के एक सुवर्ण मोती थे। 

 

संघ के संस्थापक पूज्य डा. केशव बलीराम हेडगेवार की पहली जीवनी उन्होंने ही लिखी। इसमें उनकी जीवन-यात्रा के साथ ही संघ स्थापना की पृष्ठभूमि तथा उनके सामने हुआ संघ का क्रमिक विकास बहुत सुंदर ढंग से लिखा गया है। लम्बे समय तक इसे ही संघ की एकमात्र अधिकृत पुस्तक माना जाता था। आगे चलकर उन्होंने श्री गुरुजी, भैया जी दाणी, दादाराव परमार्थ, बाबासाहब आप्टे आदि संघ के अनेक पुरोधाओं के जीवन चरित्र लिखे। इस कारण बापूराव को संघ इतिहास का व्यास कहना नितांत उचित ही है।

 

बापूराव का जन्म नौ अगस्त, 1914 को हुआ था। वे संघ के प्रारम्भिक स्वयंसेवकों में से एक थे। अतः उन्हें डा. हेडगेवार, श्री गुरुजी तथा उनके साथियों को निकट से देखने एवं उनके अन्तर्मन को समझने का भरपूर अवसर मिला था। संघ की कार्यपद्धति का विकास तथा शाखाओं का नागपुर से महाराष्ट्र और फिर पूरे भारत में कैसे और कब विस्तार हुआ, इसके भी वे अधिकृत जानकार थे।

 

छात्र जीवन से ही उनकी रुचि पढ़ने और लिखने में थी। इसलिए आगे चलकर जब उन्होंने पत्रकारिता और लेखन को अपनी आजीविका बनाया, तो जीवनियों के माध्यम से संघ इतिहास के अनेक पहलू स्वयंसेवकों और संघ के बारे में जानने के इच्छुक शोधार्थियों को उपलब्ध कराये। कुल मिलाकर उन्होंने संघ के दस वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के जीवन चरित्र लिखे।

 

एक निष्ठावान स्वयंसेवक होने के साथ ही वे मौलिक चिंतक भी थे। संघ के संस्कार उनके जीवन में हर कदम पर दिखाई देते थे। पुणे के ‘तरुण भारत’ में सम्पादक रहते हुए वे ‘अखिल भारतीय समाचार पत्र सम्पादक सम्मेलन’ (ए.आई.एन.ई.सी.) के सदस्य बने। सामान्यतः पत्रकारों और सम्पादकों के कार्यक्रमों में खाने और पीने की अच्छी व्यवस्था रहती है। आजकल तो इसमें नकद भेंट से लेकर कई अन्य तरह के भ्रष्ट आचार-व्यवहार भी जुड़ गये हैं; पर बापूराव ऐसे कार्यक्रमों में जाने के बाद भी पीने-पिलाने से सदा दूर ही रहे।

 

सक्रिय पत्रकारिता से अवकाश लेने के बाद भी बापूराव ने सक्रिय लेखन से अवकाश नहीं लिया। उनकी जानकारी, अनुभव तथा स्पष्ट विचारों के कारण विभिन्न पत्र-पत्रिकाएं उनसे लेख मांगकर प्रकाशित करती रहती थीं। वृद्धावस्था संबंधी अनेक कष्टों के बावजूद पुणे में अपने पुत्र के पास रहते हुए उन्होंने अपने मन को सदा सकारात्मक विचारों से ऊर्जस्वित रखा। बापूराव के बड़े भाई नाना भिषीकर बाबासाहब आप्टे के घनिष्ठ सहयोगी थे। डा. हेडगेवार की योजनानुसार 1931 में वे संघ कार्य के लिए सिन्ध प्रान्त के कराची नगर में गये थे।

 

संघ इतिहास के ऐसे शीर्षस्थ अध्येता का आठ दिसम्बर, 2008 को महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले के हराली कस्बे में निधन हुआ।

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