आज‬ का पंचांग

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  • Jeevan Mantra

|।ॐ।|

*आज‬ का पंचांग*

तिथि.........चतुर्दशी

वार...........बुधवार

पक्ष... .......कृष्ण       

नक्षत्र.........माघ

योग...........सिद्ध

राहु काल.....१२:१६--१३:४८

मास............अश्विन

ऋतु.............वर्षा

कलि युगाब्द....५१२२

विक्रम संवत्....२०७७

16   सितम्बर   सं  2020

*आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो*

???????????????????????????????? #हर_दिन_पावन

"16 सितम्बर/जन्म-दिवस"

*भारतीय संगीत की आत्मा  : शुभलक्ष्मी*

1998 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से अलंकृत तथा एम.एस के नाम से प्रसिद्ध मदुरै षण्मुखवडिवु शुभलक्ष्मी का जन्म 16 सितम्बर, 1916 को तमिलनाडु के मदुरै नगर में हुआ था। उनकी माता वीणा तथा दादी वायलिन बजाती थीं। उन्होंने शुभलक्ष्मी को श्री आर्यकुड़ी, श्रीनिवास अय्यर तथा रामानुज आयंगर जैसे गुरुओं से संगीत की शिक्षा दिलाई।

प्रारम्भ से ही कर्नाटक संगीत की ओर रुझान होने के कारण कक्षा पांच तक पढ़ने के बाद वे अपना पूरा समय संगीत शिक्षण में ही लगाने लगीं। 10 वर्ष की अवस्था में ही उनकी पहली संगीत डिस्क बाजार में आ गयी थी। 17 वर्ष की होने पर उन्होंने चेन्नई की प्रसिद्ध ‘संगीत अकादमी’ में अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया। इसके बाद उन्होंने पंडित नारायण व्यास से भारतीय शास्त्रीय गायन सीखकर भारत की अनेक भाषाओं में गीत गाये। इस प्रकार तीन पीढ़ियों की विरासत के साथ ही अच्छे गुरुओं का स्नेह भी उन्हें मिला।

उन्होंने कई फिल्मों में अभिनय भी किया। इसमें सबसे प्रसिद्ध तमिल तथा हिन्दी में बनी ‘मीरा’ थी। 1945 में बनी इस फिल्म में उन्होंने मीरा के कई भजनों को स्वर भी दिया। इसके प्रारम्भ में ‘भारत कोकिला’ श्रीमती सरोजिनी नायडू ने उनका परिचय दिया है। उनके अभिनय की प्रशंसा गांधी जी ने भी की। गांधी जी के कहने पर उन्होंने हिन्दी सीखकर हिन्दी में भी गीत गाये।

1947 में मीरा फिल्म के उद्घाटन के बाद वे दिल्ली के बिड़ला हाउस में गांधी जी से मिलीं। वहां उन्होंने रामधुन तथा मीरा के भजन सुनाए। गांधी जी ने कहा कि यदि तुम बिना गाये भी मीरा के भजन बोलो, तो वे बहुत अच्छे लगते हैं। सुचेता कृपलानी के आग्रह पर उन्होंने गांधी जी का प्रिय भजन ‘हरि तुम हरो, जनन की पीर’ रिकार्ड कर भेजा। 1941 में सेवाग्राम की प्रार्थना सभा में उनके भजन सुनकर गांधी जी ने उन्हें ‘आधुनिक मीरा’ की उपाधि दी।

1953 में दिल्ली में आयोजित कर्नाटक संगीत के एक समारोह में उनके गीत सुनकर नेहरू जी ने कहा, ‘‘शुभलक्ष्मी के संगीत में दिल के तारों को हिला देने की शक्ति है। वे संगीत की रानी हैं। उनके सामने मैं क्या हूं, केवल भारत का प्रधानमंत्री ही तो।’’ गायनाचार्य श्री ओंकार ठाकुर उनके कंठ से ‘शंकराभरणम्’ सुनकर अभिभूत हो उठे। उन्होंने मंच पर जाकर शुभलक्ष्मी को बधाई दी।

एक समारोह में जब उन्होंने ‘पन्तुवराली राग’ गाया, तो 90 वर्षीय उस्ताद अल्लादिया खां की आंखों में आंसू आ गये। भारत के सभी प्रसिद्ध गायकों और संगीतकारों ने उन्हें तपस्विनी,  सुस्वरलक्ष्मी,  सुखलक्ष्मी, संगीत का आठवां स्वर जैसी उपाधियां दीं। उन्होंने गायन की अपनी शैली भी विकसित की। उन्होंने भारत के सांस्कृतिक राजदूत के नाते दुनिया भर के संगीत समारोहों में भाग लिया। 24 अक्तूबर, 1966 को संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस पर आयोजित महासभा में उन्होंने कांची पीठ के श्रीमद् परमाचार्य द्वारा रचित ‘मैत्री राग’ गाया। देश-विदेश से उन्हें सैकड़ों उपाधियां तथा मान-सम्मान प्राप्त हुए।

1940 में उनका विवाह एक क्रांतिकारी श्री त्यागराज सदाशिवन् से हुआ। उन्होंने शुभलक्ष्मी की प्रतिभा को बहुत निखारा। 1996 में पति की मृत्यु के बाद उन्होंने सार्वजनिक गायन बंद कर दिया। चार दिसम्बर 2004 को स्मृतिभ्रंश की शिकार होकर यह ‘आधुनिक मीरा’ सदा के लिए मौन हो गयीं।  

(संदर्भ    : कलाकुंज भारती, फरवरी 2009 तथा अंतरजाल सेवा)

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