हमारी मति को मोहित-मूर्च्छित होने से बचाएं.. यही अभ्यर्थना : तृ.गृ.गो.श्रीव्रजेशकुमारजी

Subscribe






Share




  • Darshan

हमारी मति को मोहित-मूर्च्छित होने से बचाएं.. यही अभ्यर्थना : तृ.गृ.गो.श्रीव्रजेशकुमारजी

"धन्याः स्मः कृपया प्रदत्तमिह

यज्जन्म स्वकीये कुले

      श्रीमद्वल्लभदेशिकस्य

      करुणाSस्माकं हि संजीवनी।

पाषण्डप्रचुरे हि लोकविभवे

नैषा मतिर्यातु नः

      वाञ्छेयं करुणानिधेश्च चरणयोः

      द्वारावतीशस्य मे।।"

 

-(तृ.गृ.गो.श्रीव्रजेशकुमारजी कृत

'श्रीमतां चरणेश्वभ्यर्थना' - श्लोक: ९)

 

【आप ने जिसे अपना माना है ऐसे कुल में..

 हमें जन्म देने की महती कृपा करके.. आप ने

हमें धन्यता प्रदान की है..!!

श्रीमद् वल्लभाचार्यचरणों की कृपा रूप

संजीवनी ही.. इस "पाषण्डप्रचुर लोक" के

लौकिक-अनर्थकारी वैभव से हमारी मति को

मोहित-मूर्च्छित होने से बचाये.. यही अभ्यर्थना-

अभिलाषा.. हे करुणानिधि! श्रीद्वारकेश प्रभो!

आपके चरणों में निवेदित करते हैं..!!】

 

*विशेष*  - प्रस्तुत चित्र में दृश्यमान.. आपश्री की

निजेष्ट के चिंतन में निमग्न मुखमुद्रा.. और..

इस श्लोक में प्रस्फुटित आपश्री के हृदयोद्गार..

आपश्री के अलौकिक-अप्राकृत स्वरूप को

पहचानने हेतु क्या पर्याप्त नहीं है..??!!

प्रस्तुति - श्रीधर चतुर्वेदी, पूर्व अधिकारी, राजाधिराज ठाकुर श्री द्वारकाधीश जी महाराज मंदिर, मथुरा.

TTI News

Your Own Network

CONTACT : +91 9412277500


अब ख़बरें पाएं
व्हाट्सएप पर

ऐप के लिए
क्लिक करें

ख़बरें पाएं
यूट्यूब पर