कर्मों का फल तो भुगतना ही पड़ेगा !

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  • Jeevan Mantra

पितामह भीष्म जब बाणों की शर-शैया पर पड़े थे, तब भगवान श्रीकृष्ण उनके समक्ष पहुंचे।

पितामह भीष्म ने उन्हें प्रणाम किया और उनसे हाथ जोड़कर बोले बोले - भगवन्, मुझे अपने पिछले 100 जन्म ध्यान हैं, उनमें मुझसे ऐसा कोई कर्म नहीं हुआ, जिसके ऐवज में मुझे इस तरह से बाणों की शैया पर पड़ा रहना पड़े। 

भगवान श्री कृष्ण बोले - पितामह भीष्म आप महान हैं। इसलिए आपको अपने पिछले 100 जन्म ध्यान हैं, वरना इंसान को अपना पिछला जन्म भी ध्यान नहीं रहता। आपको अपने पिछले सौ जन्म तो याद हैं। लेकिन आपको अपना पिछला 101वां जन्मदिन ध्यान नहीं है। उसी जन्म में आपसे एक ऐसा कर्म हुआ था, जिसके ऐवज में आपको इस तरह से बाणों की शैया पर पड़ा रहना पड़ रहा है।

पितामह भीष्म ने पूछा - भगवन, क्या था वह जन्म, क्या था वह कर्म ? 

भगवान श्री कृष्ण ने बताया - आप थे एक देश के राजा, जा रहे थे शिकार पर। रास्ते में एक घायल सर्प पड़ा था, जिसे देखकर आपके मन में दया का भाव आया। आपने सोचा कि इस सर्प को रास्ते से हटा दिया जाए वरना यह कुचलकर मर जाएगा। इसलिए आपने उसे अपने हाथ में लगे तीर से उठाकर पीछे की तरफ फेंक दिया और आप आगे बढ़ गए। आपने यह किया तो अच्छा था कि एक घायल सबको आपने मार्ग से हटाया था, जहां कि उसकी दुर्गति हो सकती थी। लेकिन हो बुरा गया, क्योंकि जहां आपने उस घायल सर्प को फेंका था, वहां कंटीली झाड़ियां थीं। इसलिए वहां उसकी दशा पहले से बुरी हो गई और वह इसी तरह से तड़पता रहा, जिस तरह से आज आप तड़प रहे हैं। यह सृष्टि का नियम है कि इंसान को अपने भले-बुरे कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है, चाहे वह अनजाने में हुए हों या जानकर किए गए हों!

प्रस्तुति - योगेश खत्री

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