विधि का विधान

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  • Jeevan Mantra

श्री राम का विवाह और राज्याभिषेक दोनों शुभ मुहूर्त देख कर किया गया। फिर भी न वैवाहिक जीवन सफल हुआ न राज्याभिषेक।

और जब मुनि वशिष्ठ से इसका जवाब मांगा गया तो उन्होंने साफ कह दिया।

"सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहूं मुनिनाथ।

लाभ हानि, जीवन मरण, यश अपयश विधि हाँथ।।"

अर्थात, जो विधि ने निर्धारित किया है वही होकर रहेगा।

न राम के जीवन को बदला जा सका, न कृष्ण के।

न ही शिव सती की मृत्यु को टाल सके, जबकि महामृत्युंजय मंत्र उन्ही का आवाहन करता है।

न गुरु अर्जुन देव जी और न ही गुरु तेग बहादुर साहिब जी और दश्मेश पिता गुरू गोबिन्द सिंह जी  अपने साथ होने वाले विधि के विधान को टाल सके जबकि आप सरब समर्थ थे।

रामकृष्ण परमहंस भी अपने कैंसर को न टाल सके।

न रावण अपने जीवन को बदल पाया न कंस। जबकि दोनों के पास समस्त शक्तियाँ थी।

मानव अपने जन्म के साथ ही जीवन मरण, यश अपयश, लाभ हानि, स्वास्थ्य, बीमारी, देह रंग, परिवार समाज, देश स्थान सब पहले से ही निर्धारित कर के आता है।

साथ ही साथ अपने विशेष गुण धर्म, स्वभाव, और संस्कार सब पूर्व से लेकर आता है।।

इसलिए यदि अपने जीवन मे परिवतर्न चाहते हैं, तो अपने कर्म बदलें। आपकी मदद के लिए स्वयं परमात्मा खड़े है।

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