तृतीय गृह एकादश गृहाधीश श्रीबालकृष्णलालजी महाराज - 11

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प्रस्तुति : श्रीधर चतुर्वेदी

।।श्रीद्वारकेशो जयति।।

तृतीय गृह गौरवगान

प्रसंग:- 221

 

तृतीय गृह एकादश गृहाधीश श्रीबालकृष्णलालजी महाराज - 11

 

कल के प्रसंग के समापन में सूचित किये गये अनुसार आज श्रीबालकृष्णलालजी के बहुमुखी -उत्तुंग चरित्र के अनेकविध पहलूओं का समाकलन करते हुए उनके चरित्रावलोकन का उपसंहार करते हैं।

 

"जैसा कहा जा चुका है, महाराजश्री अपना पृथक् ही वैशिष्ट्य रखते थे। जहाँ वे परम उदार, चतुर-चिंतामणि और गुणग्राहक तथा रसिक व्यक्ति थे, वहाँ पात्रापात्र का विचार रखनेवाले, नीतिविशारद और गुणी एवं श्रीद्वारकाधीश प्रभु के अनन्य सेवाभिलाषी भी थे। जहाँ इनका आदर विद्वान् और कलावन्त करते थे, वहाँ बड़े-बड़े धनी व्यक्ति भी इनकी दानशीलता देखकर अचंभा करते थे। कवि जहाँ अपनी कविता के लिए इनसे प्रशंसा पाते थे, वहाँ स्वयं इनकी मर्मज्ञता और कविता सुनकर विचार- निमग्न हो जाया करते थे। जहाँ इनका ठाठबाट किसी नरेश से कम नहीं रहता था, वहाँ धर्माचार्य भी इनका स्वरूप और विद्वत्ता देखकर गौरव किया करते थे। जहाँ यह स्वकीय आश्रित एवं स्वीकृत व्यक्ति का निभाव कर लेते थे,  वहाँ न्याय करने में कभी हिचकिचाते नहीं थे।"

 

"धनी-मानी, सेठ-साहूकारों के साथ राजा-महाराजा आदि जिस किसी का भी महाराजश्री से परिचय और सहयोग हुआ, वे सब उनका आदर करते थे। ब्रिटिश गवर्नमेंट की बंबई हाईकोर्ट ने भी अदालत में किसी भी प्रसंग में अनिवार्य उपस्थिति की महाराजश्री को छूट दे दी थी, और प्रसंग आने पर वह कमीशन भेजकर उनका मन्तव्य लिवाया करती थी।"

 

"सं.1972 के लगभग महाराजश्री का स्वास्थ्य बिगड़ने लग गया। मथुरा मेंं रहकर बहुत-से प्रसिद्ध डाक्टर, नामी वैद्य आदि से चिकित्सा कराई गई, पर उससे कोई लाभ न हुआ। अन्त में स्वकीय वियोग में समस्त परिवार, राज्यकर्मचारी तथा अपार वैष्णव- समाज को छोड़कर सं.1973 आषाढ़ कृ.9, शुक्रवार को श्रीराजाधिराज मन्दिर मथुरा में महाराजश्री का नित्यलीलाप्रवेश हो गया। उन्होंने इस नश्वर देह का त्याग करते हुए अलौकिक कीर्ति रूप से विद्यमान होकर श्रीद्वारकाधीश के चरणकमलों में स्थान प्राप्त किया।"

 

"इनके इस असामयिक निधन से मथुरा नगरी में अपार शोक छा गया था। अन्तिम यात्रा में क्या हिन्दू, क्या पारसी, क्या जैन और क्या मुसलमान सभी सम्मिलित हुए थे। वास्तव में महाराजश्री के देहविलय से समाज में जो स्थान रिक्त हुआ, उसकी फिर पूर्ति नहीं हो सकी। इनके इस अवितर्कित निधन से कांकरोली को तो जिस अवस्था का अनुभव करना पड़ा, उसका दिग्दर्शन नहीं कराया जा सकता। इस अप्रिय समाचार से समस्त भारतवर्ष में एक अप्रत्यक्ष विषाद-घटा छा गई थी, जिसका परिचय सामयिक समाचारपत्रों से मिलता है।"

 

"महाराजश्री के बाद प्रायः एक वर्ष तक उनके ज्येष्ठ पुत्र गो.श्रीद्वारकेशलालजी तिलकायित रहे।"

 

इस प्रकार श्रीबालकृष्णलालजी के अद्भुत-अलौकिक चरित्र के अवगाहन का क्रम आज यहाँ समाप्त करते हुए कल उनके अनुगामी श्रीद्वारकेशलालजी के यावल्लब्ध चरित्र पर दृष्टिपात करेंगें।

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