उत्तर प्रदेश, मथुरा : सीएमओ का औचक निरीक्षण, ग्रामीणों की शिकायत के बाद भी मिठ्ठौली नहीं पहुंचे सीएमओ

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दीपक गुप्ता

टीटीआई न्यूज़

नौहझील (मथुरा) 27 अक्टूबर 2020

एक तरफ योगी सरकार आम जनमानस के स्वास्थ्य को लेकर सख्त दिखाई दे रही है लोगों को बीमारियों से बचाने के रोज नए नए तरीके अपना रही है।

वहीं मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर मिट्ठोली स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सफेद हाथी बना लोगों का मुंह चढ़ा रहा है जहां डॉक्टरों की तैनाती तो है मगर तैनाती होने के बाद भी सालों से बंद पड़ा है जिस ओर स्वास्थ्य विभाग का अब तक कोई ध्यान नहीं है वही मिट्ठोली निवाशी शिकायत करते करते थक चुके हैं मगर ग्रामीणों की शिकायत पर स्वास्थ्य विभाग मौन बैठा है। 

नौहझील के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर भी ओपीडी नहीं चल रही हैं phc मिट्ठोली पर ताला लटका हुआ मिला आसपास के लोगों का कहना है कि सालो से यह अस्पताल बंद है। 

इस अस्पताल में तैनात डॉक्टरो सहित कई अन्य लोगों का स्टाफ है लेकिन सालो से कोई डॉक्टर या कर्मचारी यहाँ नहीं आता जाता है वहीं प्रधानमंत्री मोदी के स्वच्छ भारत मिशन को पलीता लगा रहा है स्वास्थ्य विभाग जिसकी वजह से यह अस्पताल एक गौशाला बना हुआ है जहां डिलीवरी वार्ड में उपले ओर घड़े भरे पड़े phc मिट्ठोली को देखकर ऐसा लगता है जैसे स्वास्थ्य विभाग ने phc को भाड़े पर दे दिया है तो वही दूरी तरफ गाय और सांड घूमते दिखाई दे रहे हैं जहां गंदगी का यह आलम है जहां गंदगी की वजह से लोगों का रहना दूभर हो गया है तो वही मेन गेट भी टूटा पड़ा है अंदर ताले लटके हुए है मिठोली निवासी कुछ लोगों से जब बातचीत की गई तो वहां के लोगों ने बताया कि सालो हो गए मगर यहां ना तो कोई डॉक्टर आता है और ना ही कोई कर्मचारी जबकि आज सीएमओ महोदय मथुरा ने सीएचसी नौहझील का औचक निरीक्षण किया जहां सोशल डिस्टेंसिंग की भी  जमकर धज्जियां उड़ती दिखाई दी जहां लोगों की शिकायत के बाद भी सीएमओ महोदय ने मिट्ठोली पीएचसी पर आना जरूरी नहीं समझा और नौहझील सीएससी पर भी फॉर्मेलिटी पूरी कर बापस चले गए यहां से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नौहझील की दूरी 15 किलोमीटर की है अगर इमरजेंसी में किसी को कोई तकलीफ होती है तो आने जाने की भी कोई व्यवस्था नहीं है इसलिए गांव के ही निजी वाहन से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नौहझील ले जाया जाता है जिसकी वजह से कई मरीजों ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया इसलिए मरीज भी नहीं आते और निजी अस्पतालों में इलाज करा कर वापस चले जाते है देखना यह होगा की शासन प्रशासन इन लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई करता है। 

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