हमको हमारा सिंध लौटा दो - किशोर इसरानी

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प्रेषक- राम खत्री/किशोर इसरानी

मथुरा। दादा दादी जहां रहते थे। पापा हमारे जहां खेलते थे। सनातन सभ्यता जहां से निकली। संस्कृति जहां थी पनपी, वह सिंध हमारा लौटा दो। सिंधु नदी इधर बहा दो।

भारत पाकिस्तान के बीच चल रहे शोर के बीच एक आवाज सिंधी समाज भी उठा रहा है। विभाजन का दंश झेल चुके सिंधी समाज के लेखक विचारक किशोर इसरानी ने कहा कि सिंधी समाज ने अपने ही देश में शरणार्थी होने का दंश झेला था। उन्होंने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि भारत की प्राचीन सभ्यता का सबूत है सिंध जिसे स्वतंत्रता के बदले विभाजन की भेंट चढ़ा दिया गया, हमारे बुजुर्ग अपने ही देश में बेगाने हो गए। जिनका जन्म अखंड भारत के सिंध में हुआ, उनको अपने ही देश में शरणार्थी का ठप्पा मिला, जबकि सिंधी हिन्दू किसी बाहरी देश से नहीं आये थे। वह भारत के एक हिस्से से भारत के ही दूसरे हिस्सों में भटक रहे थे। अपने ही भारत के सिंध को पाकिस्तान बनता देख उनकी रूह कांप उठी। किशोर इसरानी ने कहा कि बहुत दुख होता है जब अपने बड़ो से उनके उझड़ने की कहानी सुनते हैं। अब तो हम भारत सरकार से यही मांग करते हैं कि कश्मीर के साथ ही हमारा सिंध हमको लौटा दो।

सिंधी जनरल पंचायत के अध्यक्ष नारायण दास लखवानी ने ऑपरेशन सिंदूर में देश के जवानों के शौर्य को सलाम करते हुए कहा कि भारतीय सेना ने हमारे देश का गौरव बढ़ाया है।

लाड़ी लोहाणा सिंधी पंचायत के प्रदेश महासचिव रामचंद्र खत्री ने सीजफायर के निर्णय का देश हीत में कदम बताते हुए कहा कि भारत किसी भी जगह कम नहीं है। हमें भारतीय सेना पर नाज है। उन्होंने कहा कि विभाजन के नाम पर अपना सिंध खोने वाले सिंधी समाज का दर्द आज भी जिंदा है। सिंध जब पाकिस्तान बन गया, तब खाली हाथ भारत के कौने कौने में आकर यहां बसे सिंधी समाज के लोगों ने कड़ी मेहनत कर अपने परिवार का पेट पाला। रोते-बिलखते बच्चों के आंसू पोछने, उनके लिए दूध की व्यवस्था करने के लिए दर-दर भटकते रहे। किसी ने बोरे बेचे, किसी ने खोमचा लगाया, किसी ने सब्जी बेची तो किसी ने कपड़े का काम शुरू किया। आज भी काफी सिंधी ऐसे है जो किराए के मकान में रहते हैं। सिंधी समुदाय का कहना है कि पाकिस्तान को सबक सिखाना जरूरी था। उससे बंटवारे से लेकर अब तक का पूरा हिसाब लेना है।

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