वायु प्रदूषण से बढ़ती धुंध

Subscribe






Share




  • States News

आज भारत दुनिया का तेजी  से बढ़ती जनसंख्या वाला देश है। ऐसा मापन करने के लिए हम विश्व के अन्य देशों पर नजर डालें तो दुनिया की सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश चीन की जनसंख्या रफ्तार में कमी आई है। और 2001 से 2011 की जनगणना के अनुसार भारत ने भी जनसंख्या रफ्तार में वृद्धि दर कम की है। परंतु फिर भी भारत देश  इस दशक में चीन से बहुत आगे चल रहा है ।यदि हम विश्व में सबसे कम जनसंख्या वाले देश पर नजर डालें तो वह इटली के रोम का वेटिकन सिटी देश है जिसकी वर्तमान आबादी लगभग 1000 है।और वेटिकन सिटी की सारी संरचना व्यवस्था अन्य देशों की तरह ही है।लेकिन मैं नहीं कहूंगा कि उस देश का अनुसरण करना उचित है ।

हम बात करते हैं भारत मे बढ़ते वायु प्रदूषण की वायु प्रदूषण का एक मुख्य कारण भारत की जनसंख्या है,तो दूसरा  बड़ा कारण है।  

देश में बढ़ती रासायनिक निर्भरता

 

 पेट्रो रसायन उद्योग जिस का चलन 1970 के दशक से  औद्योगिक विस्तार के रूप में सामने आया, और 1980 तथा 1990 के दशक में इस उद्योग ने अप्रत्याशित सफलता प्राप्त की वास्तव में यह सफलता भारत के भविष्य की असफलता और लाचारी को बढ़ाने का षड्यंत्र था । आज हमारा कोई उत्पाद रसायन मुक्त नहीं है  हमारी आवश्यकता को पेट्रो रसायन उद्योग ने  निर्भरता में बदल दिया। आज सरकार बड़े प्रयास कर रही है कि भारत के लोग अपनी पुरानी सभ्यता संस्कृति का अनुसरण करने लगे परंतु चकाचौंध की क्षणिक पश्चिमी सभ्यता के कारण लोग सरकारी सकारात्मक प्रयासों में भी सहयोग नहीं करते हैं। इसका बड़ा उदाहरण किसानों को खेतों में पराली न जलाने को लेकर सरकार का प्रयास है परंतु किसान शॉर्टकट अपना रहे हैं।

 दूसरी ओर इन दिनों में सूर्य का तापमान भारत भूमि पर कम हो जाता है क्योंकि सूर्य की चाल दक्षिणायन के अंतिम चरण में होती है और मकर संक्रांति से सूर्य के उत्तरायण होने से तापमान में भारत भूमि पर वृद्धि होने से वातावरण में छाई धुंध कम होने लगती है यह एक खगोलीय घटना है कि 12 मास में 1 मास तक सूर्य प्रत्येक राशि में होता है।

तीसरे मुख्य बात है जो पेट्रोरसायन उद्योग को जबरदस्त बढ़ाती है। और वह है। वाहन प्रदूषण और  आज बड़े घरानों से लेकर मध्यमवर्गीय तथा निम्न आर्थिक स्तर वर्ग भी पेट्रोल डीजल के वाहन का स्वामी है। अब इसकी जड़ में जाएं तो जिसे देश की अर्थव्यवस्था में विकास दर के नाम से संबोधित किया जाता है ।और जीडी पी को लेकर गाहे बगाहे शोर गुंजायमान होता है।वह देश की विनाश दर साबित हो रही है, क्योंकि जो व्यक्ति कभी एक वाहन नहीं रख पाता था उसे  कुकरमुत्तों की तरह देश मे उग आयीं, फाइनेंस की कंपनियों ने अपने ऊंचे ब्याज दर के लालच में कई वाहनों का स्वामी बना दिया। तो आज वाहन रखना लोगों की जरूरत से ज्यादा स्टेटस सिंबल बन गया। और उसकी मार झेली देश मे पर्यावरण ने तो जिस लॉबी का निर्माण हमने देश में तीन-चार दशकों में किया है। वह केवल पश्चिमी देशों की नकल से अधिक कुछ नहीं है क्योंकि उनकी अपने देश में जरूरत है तो वह उसे पूरा कर रहे हैं और हम केवल उनकी नकल करके अपने देश में ध्वनि- वायु और जल प्रदूषण को बढ़ाकर पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे है। 

क्या हमारे देश की नई शिक्षा नीति में इन सभी प्रदूषण की जड़ मूल से चर्चा करने वाले अध्याय नहीं जुड़ सकते हैं? क्या हम  झूठी शान-शौकत को ही अपने भविष्य की पीढ़ियों को देने हेतु प्रतिस्पर्धी बने रहेंगे।   या रिवर्स इन इंडिया की सार्थकता की ओर भी ध्यान देंगे क्योंकि प्रदूषण और विकास तथा जनसंख्या के आंकड़े तो भरे पड़े है।परन्तु उन्हें लिखने और पढ़ने से एक कदम आगे जाकर उन्हें दूर कर राष्ट्र को सुव्यवस्थित करना ज्यादा जरूरी है। इस प्रश्न का उत्तर प्रत्येक भारतवासी के स्वयं के प्रयास से प्रारंभ होता है। सरकारों पर निर्भर रहने से नहीं।

अजय कुमार अग्रवाल 

समाज चिंतक ,स्वतंत्र पत्रकार

TTI News

Your Own Network

CONTACT : +91 9412277500


अब ख़बरें पाएं
व्हाट्सएप पर

ऐप के लिए
क्लिक करें

ख़बरें पाएं
यूट्यूब पर