जब बुद्धि में भय व्याप्त जाए तो प्रभु के शरणागत हो जाओ . . .

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  • Jeevan Mantra

चिंतन/मनन/मंथन!

      (सोचो,समझो और करो!)

 

                     जब बुद्धि में भय व्याप्त जाए तो प्रभु के शरणागत हो जाओ। भय कुछ खोने का हो, भय कुछ लुटने का हो, भय शत्रु का हो अथवा तो भय प्राणों का ही क्यों न हो प्रत्येक स्थिति में प्रभु की शरण हमें भय से मुक्त कराकर अभय प्रदान करती है।

 

         जीवन में जितने भी प्रकार के भय हैं सबका निराकरण उस गोविंद की शरण में आने के बाद ही संभव है। जीवन की एक कड़वी सच्चाई ये भी है कि जब और जहाँ कोई काम नहीं आता, तब  गोविंद(परमात्मा) ही काम आते हैं ।

                बात चाहे गज की हो, बात चाहे देवी द्रोपदी, कुंती की हो या बात चाहे देवी उत्तरा की हो, जहाँ पर सबका बल क्षीण हो जाता है वहाँ से आगे फिर गोविंद ही संभालते हैं।

               अर्जुन जैसे सर्वश्रेष्ट धनुर्धर और भीम जैसे सर्वश्रेष्ठ गदाधर ज्येष्ठों को अपने सम्मुख खड़ा होने के बावजूद भी देवी उत्तरा को उन प्रभु से कहना पड़ा कि हे गोविंद यद्यपि मेरे पास सब हैं लेकिन इस भय से जो मेरी रक्षा कर सके ऐसाआपके सिवा मुझे कोई नजर नहीं आता है-

"नान्यं त्वदभयं पश्ये,"

 

"आस्था/शरणागति भय समाप्त करती है, अंधविश्वास भय व्याप्त करता है!"

                   राधे-राधे।

प्रस्तुति - घनश्याम हरियाणा

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