नामों से जिस स्वरूप का बोध होता है, उसी स्वरूप के तादृश-प्रकट चित्र में दर्शन

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  • Jeevan Mantra

"आनंदाय नमः।" 

"परमानंदाय नमः।" 

"स्वानंदतुंदिलाय नमः।"

श्रीसर्वोत्तम स्तोत्र में विराजमान इन नामों से श्रीआचार्यचरण के जिस स्वरूप का बोध होता है। उसी स्वरूप के तादृश-प्रकट दर्शन प्रस्तुत चित्र में हो रहे हैं।

वस्तुतः कृष्ण एव होते हुए भी "इति श्रीकृष्णदासस्य वल्लभस्य हितं वचः।" कहकर अपनी दिनचर्या और जीवनशैली द्वारा अपने सेवकों को भगवन्मय जीवनपद्धति सिखाकर अपने आचार्य स्वरूप को यथार्थ सिद्ध करनेवाले अद्वितीय आचार्यवर्य के चरणकमलों में भूरिशः दंडवत् प्रणाम।

आपश्री के अनुग्रह से हम आपश्री के उपदेशों को आत्मसात् कर तदनुसार जीवनयापन करके आपश्री की प्रसन्नतापूर्ण कृपा के भाजन बनें यही विनती श्रीचरणों में...

प्रस्तुति श्रीधर चतुर्वेदी

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