पागलपन

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  • Jeevan Mantra

मेरे दोस्त के पास उसकी बहन का अभी फ़ोन आया.. सुशांत की मौत को लेकर बहुत परेशान हैं, कह रही थीं कि पता नहीं बेचारे को न्याय मिल पायेगा या नहीं.. बेचारा कितना अच्छा इंसान था।

दोस्त की बहन का अपना व्यवसाय था, वो ठप्प पड़ा है, पति का व्यवसाय ठप्प पड़ा है.. दुकान का किराया तक देने की हालत नहीं बची है.. मगर सुशांत के लिए परेशान हैं.. ऐसे ही मेरे और भी क़रीबी लोग हैं.. बड़े परेशान हैं सुशांत को लेकर.. काम धंधे इनके भी सब बंद हैं.. सब कुछ बेचने की नौबत है.. मगर सुशांत के न्याय के लिए बहुत चिंतित हैं.. कह रहे हैं उस बेचारे को न्याय मिलना चाहिए.. मेरी बहुत क़रीबी दोस्त कल कह रही थीं कि मीडिया की आख़िर रिया से क्या दुश्मनी है, वो क्यूं रिया के पीछे लगेगा?.. बेचारा मीडिया तो उसे न्याय दिलाने के लिए लगा हुआ है.. ये साइको और क्रिमिनल अर्नब "बेचारा" है.. सोचिये.. और रिया "चुड़ैल"

भारत का 95% देशवासी इस वक़्त ऐसा ही हो चुका है.. पूरी तरह से मीडिया के कंट्रोल में.. इन्हें जो चाहो दिन रात दिखा के उस का समर्थन हासिल कर लो.. ये ख़ुद भूखे रहेंगे, नंगे रहेंगे, बीमार रहेंगे, संक्रमण के संभावित ख़तरे से घिरे रहेंगे, इनके बच्चों का कोई भविष्य नहीं बचा है.. मगर इन्हें न्याय चाहिए सुशांत के लिए.. सोचिये.. पागलपन का इस से बड़ा उदाहरण दिखेगा आपको कहीं? 

इन "मध्यम वर्गीय मूर्छित" लोगों को पता ही नहीं है कि मीडिया का सारा "ढांचा" काम कैसे करता है ? एक से एक तुच्छ और घटिया पत्रकार सैकड़ों और हज़ारों करोड़ का मालिक बना बैठा है, और इनके हिसाब से वो सब "न्याय" दिलाने के दौरान ली गयी "फ़ीस" से बना है.. हमारी पैदाइश से पहले भारत मे सबसे ज़्यादा पैसेवाले "वकील" लोग होते थे.. वो भी ऐसे ही न्याय "दिलाने" की फ़ीस से ही करोड़ों अरबों की संपत्ति के मालिक बन जाते थे.. हम लोगों ने वकीलों की बड़ी-बड़ी कोठियां देखी हैं, जिनमें वो रहते थे।

अकेले महाराष्ट्र में 2014 से 2019 तक पंद्रह हज़ार (15000) किसानों ने "आत्महत्या" की है.. पूरे देश मे ये संख्या लाखों में है.. आजकल हर रोज़ कोई न कोई आत्महत्या कर रहा है नौकरी जाने से, बिज़नेस डूबने से, या सर पर बढ़े हुए कर्ज़ की वजह से.. औसतन रोज़ कम से कम पचास से सौ छोटी और बड़ी कंपनियां बन्द हो रही हैं और करोड़ों बेरोज़गार हो रहे हैं.. मगर इन पागलों को उस ड्रग एडिक्ट को न्याय दिलाना है जो एक महीने में "सत्तर लाख" रुपये दोस्तों के साथ गांजा और चरस पीने में उड़ा देता था।

कुछ दिन पहले ही मेरा दोस्त, जो अभी मेरे पास ही रह रहा है, कि माँ का फ़ोन आया सुबह सुबह.. बड़ी ख़ुश थीं.. ये बताने के लिए फ़ोन किया था कि "बेटा राफ़ेल आ गया है.. हम सबके लिए गर्व की बात है".. दोस्त ने पूछा कि "अम्मा, तुमने नाश्ता किया और दवाई खाई? या ऐसे ही राफ़ेल को ही लेकर सुबह सुबह भूख मिट गई तुम्हारी?".. बेटे ने याद दिलाया तब उन्होंने नाश्ता किया औए दवा खाई.. मगर पूरे दिन राफ़ेल की ख़ुशी में मदहोश थीं क्यूंकि दिन रात वही देख रही थीं चैनल पर...

ये सब पागल हो चुके हैं.. और दिन रात ये टीवी चैनल देखकर मनोरोग की उस अवस्था में पहुंच चुके हैं, जहां इन सबको अब "मनोचिकित्सक" की ज़रूरत है.. इन्हें एंटी एंग्जायटी और एंटी डिप्रेसिव गोलियों की ज़रूरत है और इन सबका प्रॉपर इलाज होना लाज़िमी हो गया है.. क्यूंकि ये अपने घरों में पागल अर्नब और उन जैसे जाने कितनों की चीख पुकार दिन रात सुनते हैं और इन्हें समझ ही नहीं आ रहा है कि उसी के जैसे पागल हुए जा रहे हैं.. ये वही सोचते हैं वही समझते हैं जैसा वो "पागल" अर्नब सोचता है.. मगर ये इस बात को समझ ही नहीं पाते हैं कि उसे इन लोगों का ध्यान मूल समस्याओं से हटाने के लिए कितने "सैकड़ों करोड़" चंदे और फण्ड के रूप में सत्ता वालों से मिलते हैं.. इनकी अपनी दुकानें और घर बिके जा रहे हैं और ये इसे देख ही नहीं पा रहे हैं कि उस "साइको" के पास सैकड़ों करोड़ का चैनल खोलने का पैसा कहां से आ रहा है ?

अब इन मध्यम वर्गीय पागलों को मेरा सच में कुछ भी समझाने का मन नहीं करता है.. इनकी नियति है कि ये मिट जाएं अब.. पूरी तरह

जय हिन्द जय भारत।

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