श्रीवामन जयंती/श्रीवामन द्वादशी

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  • Jeevan Mantra

प्रस्तुति : पुरुषोत्तम चतुर्वेदी

श्रीमद्भागवत महापुराण के अष्टम स्कन्ध अनुसार देवताओं का पक्ष लेकर एवं उन्हें निमित्त बनाकर स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने ही भक्त प्रह्लाद जी के वंश में उत्पन्न हुए राजा बलि पर कृपा करने के लिए श्री वामनजी का रूप धारण किया। 

 

राजा बलि की यज्ञशाला में पधारकर श्री वामन जी ने उनसे तीन पग पृथ्वी का दान मांगा, किन्तु दो पग में ही श्रीवामन भगवान ने तीनों लोकों को नाप लिया, तब तीसरे पग का दान पूर्ण करने के लिए राजा बलि ने स्वंय को श्रीवामन भगवान के समक्ष समर्पित कर दिया । श्री भागवतोक्त नवधा भक्ति के अंतर्गत आत्म निवेदन भक्ति जिन्हें सिद्ध हुई ऐसे परम भक्त राजा बलि के सौभाग्य का क्या कहना ?

 

यह जो पुष्टि कार्य प्रभु द्वारा हुआ उसी कारण हम पुष्टिभक्तिमार्गीय जीव श्री वामन जयन्ती का उत्सव मनाते हैं। भक्त परमानंद दास जी ने इस लीला को अपने पद में गाया है कि:  

 

बलि राजाको समर्पण साचो। 

बहुत कहयो गुरु शुक्र देवता मन दृढ़ आप नही काचो ।।

 

यज्ञ करत है जाके कारण सो प्रभु आपन जांच्यो । 

परमानंद प्रभु प्रसन्न भये हरि , जो जन को जानत हैं साँचो।। 

 

 इस पद का भाव यह है कि : भगवान की कृपा से ही राजा बलि,  श्रीवामन भगवान के प्रति शुद्ध आत्मनिवेदन भक्ति कर पाए हैं। 

 

    इनके गुरु शुक्राचार्य जी के बहुत मना करने पर भी राजा बलि ने भगवान वामनजी के लिए तीन पग भूमि दान का दृढ़ संकल्प किया क्योंकि बाली राजा जानते थे कि जिस प्रभु की प्राप्ति के लिए वह यज्ञ कर रहे हैं वे प्रभु स्वंयं ही उनकी परीक्षा ले रहे हैं। 

 

परमानंद दास जी यह वर्णन कर रहे हैं कि प्रभु सच्चे जीवों ( दैवी जीवों) को जानते हैं इसलिए ऐसे जीवों पर प्रसन्न होकर उनपर कृपा की वर्षा करते हैं जैसे यहां  राजा बलि पर भगवान श्री वामनजी ने कृपा की है। 

  

द्वारकेशजी यह कहते है की, 

 

 "हरि को वामन रूप बनायो।

नंदराय यह मानी जयंती, उबटि सुगंधि न्हवायो।।

सिर किरीट पीतांबर काछनी, आभूषण बहु भाँति।

जन्म समय सुनि सुनि गृह गृह तें आई जुरि जुरि पांति।।

कहत सबै सिंगार सलोनो, नित प्रति दुनो नेहु।

'द्वारकेश' प्रभु जाचक व्है को कह्यो, बलि दीनो तू देहु।।"

 

श्रीमदाचार्यचरण ने जिन चार भगवदवतारों की जयंती का पुष्टिमार्ग में स्वीकार किया है... उनमें से एक जयंती है श्रीवामन जयंती...!!!

 

श्रीभागवतोक्त 'नवधा भक्ति' के अंतर्गत 'आत्म-निवेदन' भक्ति जिन्हें सिद्ध हुई है.. ऐसे.. भक्तवर्य

श्रीप्रह्लादजी के पौत्र.. असुरराज बलि के सौभाग्यका क्या कहना.. जिनके सर्वस्व का .. श्रीप्रभु ने..वामन स्वरूप धारण कर.. भिक्षा के मिष.. स्वयं

चल कर अंगीकार किया...!!!

 

बार-बार प्रणाम.. श्रीपुष्टिपुरुषोत्तम की इस अद्भुत पुष्टिलीला को..!!????

 

भागवत पुराण अन्तर्गत यह पूतना लीला से जुड़ी बात है।????

 

पूतनालीला:- श्रीमद्भागवत में वर्णित पूतनालीला वाली पूतना, जो पूर्वजन्म में बलिराजा की पुत्री रत्नमाला हती।

    

     जब सुंदर बालस्वरूप वामन प्रभु, बलिराजा के यज्ञ में पधारे तब प्रभु के यह स्वरूप को देखकर रत्नमाला मोहित हो गयी, उनको ऐसो मनोरथ हुआ ...

 

 a. जो ऐसो इतनो सुंदर बालक पुत्रस्वरूप मुझे हुवे तो आछौ। लेकिन  .....

 

 b. (जब प्रभुने विराट स्वरूप धारण कर्यो तब वह देखके भयभीत हो गई, तब) दुसरो मनोरथ भयो की ऐसे पुत्र को तो जहर दे कर मार डालू।

 

प्रभु को शरणागत भक्त रत्नमालाके  दोनों मनोरथ लीला अंतर्गत पूरे करने हते। और भगवान "भक्त वत्सल है , भक्त मनोरथ पुरकाय है" यह वचन को हममें दृढ़ करने के लिए।यह पूतना लीला प्रकट करी।

 

उत्सव की खूब खूब बधाई

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