कैलाश मानसरोवर यात्रा, प्रस्तुति हरेकृष्ण चतुर्वेदी, पूर्व पीए, डीएम, मथुरा.

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  • Jeevan Mantra

जहां पर हुए साक्षात भगवान शिव के दर्शन

मैं और मेरा परिवार जिसमें मैं स्वयं तथा मेरा बड़ा पुत्र एवं मेरी पत्नी शामिल थे मथुरा से दिल्ली तथा दिल्ली से वायु मार्ग द्वारा काठमांडू पहुंचे।

इस यात्रा में 1 से 20 व्यक्तियों का एक समूह था जिसमें भारत के कोने-कोने से पधारे हुए तीर्थयात्री थे। कुल यात्रियों में दिल्ली का एक परिवार भी था जिसमें एक महिला जो कि मलेशिया में सेवारत थी तथा उनकी पुत्री जो कि इंजीनियरिंग कर रही थी शामिल थी।

हम लोग काठमांडू में हाईवे स्टार होटल एवरेस्ट में ठहराए गए तथा रात्रि को ब्रीफिंग की गई। ब्रीफिंग के दौरान बताया गया की यात्रा में तीन वोल्वो की बसें चलेंगी जिनमें यात्री बैठेंगे तथा साथ में एक कार रहेगी जिसमें चिकित्सा सुविधा तथा डॉक्टर चलेंगे तथा एक ट्रक चलेगा जिसमें यात्रियों को खाना बनाने वाला कुकिंग स्टाफ होगा जो यात्रा के पड़ाव स्थल यानी गेस्ट हाउस में भारतीय भोजन बना कर देगा।

यात्रा में एक टिकट की कीमत 1 लाख 11,000 रुपया थी यह यात्रा दिल्ली से दिल्ली 9 दिन की यात्रा थी। इसकी प्रमुख शर्त यह थी की यदि कोई यात्री यात्रा के दौरान बीमार पड़ जाता है तो वह आगे की यात्रा नहीं करेगा तथा उसको उसके परिवार के साथ वापस भेज दिया जाएगा तथा टिकट की कीमत नहीं लौटाई जाएगी। दूसरी महत्वपूर्ण शर्त यह थी कि यदि कोई व्यक्ति ऑक्सीजन सिलेंडर का प्रयोग करता है तब भी उसे आगे की यात्रा नहीं करने दी जाएगी और उसके टिकट के पैसे वापस नहीं होंगे तीसरी महत्वपूर्ण शर्त यह कि यदि किसी कारण से किसी यात्री की मृत्यु हो जाती है तो उस की डेड बॉडी वापस भारत नहीं आएगी तथा उसको रास्ते में बर्फ में ही गाढ दिया जाएगा ।

होटल में रात्रि को हुई ब्रीफिंग के बाद अगले दिन सुबह हम लोग ब्रेकफास्ट करके बसों के द्वारा नेपाल चीन सीमा पर स्थित कुदारी बॉर्डर पहुंच गए तथा वहां पर लगभग 3 घंटे की वीजा की औपचारिकता पूर्ण कर चाइना बॉर्डर से बाहर निकलकर चाइना की बसों में बैठकर आगे की यात्रा के लिए जो कि तिब्बत में स्थित न्यालम नामक स्थान तक थी के लिए चल दिए।

रास्ते में हमें एक ही स्थान पर तीनों बसों को रोककर लंच कराया गया जो कि पूर्णता भारतीय भोजन था। लगभग 4:00 बजे सायंकाल को हम 8000 फीट की ऊंचाई पर तिब्बत के न्यालम नामक स्थान पर पहुंच गए यहां पर हमको कमरों में रखवाया गया लगभग 5 तीर्थयात्री एक कमरे में थे यहां पर यात्रा को 2 दिन के लिए रुकना था जिसका कारण ऊंचाई की यात्रा शुरू हो ना था यहां पर यह देखा जाता है कि यात्री ऑक्सीजन की समस्या से ग्रसित तो नहीं हो रहे उनको किसी प्रकार की उल्टियां अथवा दस्त अथवा बुखार जैसी कोई समस्या तो नहीं है। मुख्य रूप से यहीं पर यात्री की चिकित्सा परीक्षा स्वता हो जाती है यदि यात्री अस्वस्थ महसूस करता है तो उसको न्यालम में ही ड्रॉप कर दिया जाता है।

2 दिन न्यालम में रुकने के पश्चात हम लोग अगली यात्रा परियांग के लिए निकल पड़े जो कि लगभग 14000 फीट की ऊंचाई पर है। न्यालम से फरियाद लगभग 9 से 10 घंटे की यात्रा है अतः हम न्यालम से सुबह जल्दी निकल कर परियांग लगभग 6:00 बजे सायंकाल पहुंच गए यहां पर भोजन कर सभी ने विश्राम कमरों में किया यहां पर भी चाइना सरकार द्वारा गेस्ट हाउस बनाया  हुआ है।

परियांग में लगभग रात्रि के 1:00 बजे मेरी स्वयं की तबीयत बिगड़ गई जिसका कारण अत्यधिक ऊंचाई पर होना था मेरी दम घुटने लगी तथा मुझे ऐसा लगा कि अब अंतिम समय निकट ही है। मेरे परिवार के साथ एक परिवार और था और वह आगरा का परिवार था जिसमें आगरा कॉलेज आगरा मैं एल एल एम की कक्षाओं को पढ़ाने वाली महिला प्रोफेसर तथा उनके पति बंसल साहब यूपी सेल टैक्स के आगरा के वरिष्ठ वकील हैं हमारे साथ थे। मैंने अपना अंतिम समय निकट देख उनको इशारों से बुलाया तथा कहा कि बंसल साहब मेरा समय निकट प्रतीत होता है मेरे बच्चों को जोके यात्रा कर रहे हैं कोई यात्रा नहीं कराएगा मैं ऑक्सीजन नहीं लूंगा अतः मेरी प्रार्थना है क्या आप मेरे जाने के बाद मुझे बर्फ में गढ़वा कर मेरे बड़े पुत्र तथा पत्नी को आगे की यात्रा पर ले जाना।

इतना सुनकर वहां कोहराम मच गया तथा बंसल साहब की आंखों में भी पानी आ गया मेरे पुत्र एवं पत्नी भी उठ पड़ी। मैंने चिकित्सा सुविधा लेने से मना कर दिया था तथा में अंतिम क्षण समझकर ओम नमः शिवाय के जाप में आंखें बंद कर कुछ समय के लिए चेतना शून्य हो गया । जब मुझे होश आया तो वह सुबह के 4 बज  चुके थे। तिब्बत के समय के अनुसार सूर्योदय हो  गया था। मुझे ऐसा लगा कि मैं घोर अंधकार से प्रकाश में लौटे आया हूं तथा धूप के कारण मुझे ऑक्सीजन सूर्य भगवान द्वारा दे दी गई थी।

उक्त घटना के बाद परियांग मे हम अपने अगले यात्रा के पड़ाव स्थल कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए नास्ता कर बस में बैठ गए लगभग 5:00 बजे हम लोग रास्ते में लंच लेते हुए कैलाश पहुंच गए। कैलाश में पूर्व निर्धारित गेस्ट हाउस में हम पूर्ववत रुके। इस दौरान हमारे सहयात्री के रूप में यात्रा कर रही आगरा की प्रोफेसर साहिबा द्वारा कहा किया गया कि भाई साहब हम लोग ऐसा करते हैं कि चाइना के बस वाले को कैलाश पर्वत जो कि यहां से यानी गेस्ट हाउस से 10 किलोमीटर की दूरी पर है ले चलते हैं तथा दर्शन कर वापस लौट आते हैं। जो टूर ऑपरेटर है वह आपके पिताजी के शिष्य हैं अतः आप उनसे बात कर ले कि वह हमको क्योंकि मौसम साफ है तथा धूप निकली हुई है कैलाश के आज ही दर्शन करा दें अतः वे हमारी यात्रा के ग्रुप लीड को फोन कर बता दें। मेरे द्वारा उनसे संपर्क करने पर उन्होंने बताया कि उनका हेलीकॉप्टर मौसम खराब होने के कारण उड़ नहीं पाया है अतः वह नेपालगंज में ही रुके हुए हैं वह नहीं आ पा रहे हैं। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं यात्रियों को नहीं मिल पाऊंगा। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में केदारनाथ जी जल प्रलय में डूब गए हैं तथा मंदिर का कोई पता नहीं स्थिति खराब है अतः जो पूजा पाठ कैलाश पर्वत पर मुझे कराना था वह कृपया आप करा दें। उनके द्वारा असमर्थता व्यक्त करने पर आगरा की प्रोफेसर साहिबा के द्वारा अपने स्तर से प्रयास किया गया तथा ड्राइवर से बात की तो बस ड्राइवर द्वारा 10 किलोमीटर के यात्रा के ₹50000 की मांग की गई जब उनके द्वारा कहा गया कि कोई बात नहीं आप चल कर बैठिए  मेरे द्वारा इतनी रकम का भुगतान करने से मना करने पर उनके द्वारा कहां गया कि आपको ही ₹50000 नहीं देना है आपको मात्र ₹1000 प्रति यात्री देना होगा यदि हम आज दर्शन नहीं करती है तो कोई पता नहीं कि कल जब हम अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार दर्शन करने जाएंगे तो इस बर्फीले तूफान में हमको दर्शन हो पाए इसकी कोई गारंटी नहीं आज धूप निकली हुई है सुंदर दर्शन हम कर सकते हैं पैसा तो पहले से ही यात्रा में खर्च हो रहा है थोड़ा सा पैसा और यदि खर्च हो जाता है और भगवान के दुर्लभ दर्शन हो जाते हैं तो यह बहुत बड़ी बात है उनकी राय पर मैं और मेरा बड़ा पुत्र जो कि अब भगवान के धाम में है श्री अंबरीश चतुर्वेदी तथा पत्नी प्रतिभा चतुर्वेदी बस में बैठ गए तथा देखते ही देखते पूरी बस भर गई तथा हम गैस्ट हाऊस से बस को लेकर 10 किलोमीटर दूर भगवान शिव जी के द्वार कैलाश पहुंच गए जहां वाह निर्मित यम द्वार इसके चार द्वार बने हैं , मैं प्रवेश करके  हम बाहर निकले तथा सामने ही भगवान कैलाश के दर्शन हुए। यम द्वार के संबंध में ऐसी मान्यता है कि यहां पर भगवान शिव उसी तीर्थयात्री को प्रवेश देते हैं जिसको उन्हें दर्शन देने होते हैं अन्यथा या तो कोई अनहोनी हो जाती है अथवा तीर्थयात्री का वहीं पर स्वास्थ्य बिगड़ जाता है तथा दर्शन नहीं हो पाते हैं। अतः यम द्वार से निकलकर हम लोगों ने भगवान शिव के चरणों में अश्रुपूरित जल से उनका अभिषेक किया तथा उस मिट्टी को अपने शरीर पर डालकर अपने शरीर और आत्मा को शुद्ध किया। इसके बाद प्रोफेसर साहिबा द्वारा समस्त यात्रियों के बीच कहा गया कि जो यात्रा के संचालक महोदय हैं वह आपके पिताजी के शिष्य हैं तथा आपको गुरु भाई का सम्मान देते हैं अतः आप उनकी अनुपस्थिति में सबको पूजा करा दें। संयोग से वहां पर भगवान गणेश जी की आकृति वाले प्राकृतिक रूप से बर्फ से बने हुए गणेश जी मौजूद मिले अतःमेरे द्वारा समस्त तीर्थ यात्रियों को वहीं पर बैठकर अपने ज्ञान के अनुसार पूजा आर्चना कराई। पूजा के उपरांत यात्रियों द्वारा भेंट की गई धनराशि जो कि बंसल साहब द्वारा काउन्ट करने पर लगभग ₹47000 थी इस पर मैंने अपनी पत्नी से कहा कि ₹3000 अपने पर्स से और निकालो तथा हम तीनों ने एक ₹1000 भगवान की भेंट में चढ़ाई तथा समस्त धनराशि को अपने सहयात्री प्रोफेसर साहिबा के पति बंसल जी को दे दी यह आप रखें । इस पर विवाद हुआ तीर्थ यात्रियों द्वारा कहां गया  कि हम क्यों अपने द्वारा पूजा में चढ़ाए गए इस पैसे को रख ले हमने भगवान की भेंट चढ़ाई तो यह पैसा पंडित जी आपका हुआ। इस पर मैंने कहा कि मैं आपके पैसों को क्यों रख लूं मैं इसके लिए मानसरोवर तो नहीं आया इस पर प्रोफेसर साहिबा के पति श्री बंसल साहब ने  कहा कि आप भाई साहब यदि अनुमति दें तो इस समस्त पैसे को भगवान पशुपति नाथ जी के भंडारे में दे दिए जाएं। इस बात पर मेरे बड़े पुत्र ने कहा कि इससे सुंदर और क्या हो सकता है । इसमें कुछ तीर्थ यात्रियों द्वारा लाई गई वह धनराशि भी शामिल थी जो तीर्थ यात्रियों को उनकी  यात्रा करने से पूर्व उनके स्वजन ,पांच  पड़ोसियों ,इष्ट मित्रों द्वारा दी गई धनराशि भी शामिल थी इसके अतिरिक्त यात्रियों द्वारा चढाए गये  स्वर्ण एवं चांदी के  भी  उनके द्वारा चढ़ाए गए कुछ यात्री बिल्व पत्र एवं  इञ बहुत ही सहेज कर लेकर आए थे, 

       120 यात्री मैं से लगभग 50 यात्रियों की विधिवत पूजा अर्चना के बाद हम लोग वापस गेस्ट हाउस कैलाश लौट गए । गेस्ट हाउस में लगभग 8:00 बजे हमारे ग्रुप में यात्रा कर रही मलेशिया में सेवारत महिला की पुत्री आई तथा बोली के अंकल जी क्या मैं अपना मोबाइल चार्जिंग के लिए लगा जाऊं। बातों के दौरान उस बिटिया ने बताया कि मेरी शिवजी में कोई विशेष आस्था नहीं है मैं तो मात्र नौ ग्रह जो कि आकाश से उतरकर धरती पर आकर मानसरोवर में स्नान कर वापस आकाश में जाते हैं, केवल उनको देखने आई हूं। मेरे बड़े पुत्र द्वारा कहा गया कि बहिन आप कृपया हमको भी नौ ग्रहों के दर्शन के लिए नींद से उठा दें तो उसके द्वारा कहा गया के ठीक है भैया मैं उठा दूंगी। रात्रि के लगभग 1:30 बजे उस बिटिया द्वारा मेरे परिवार को जगा दिया गया तथा हम सपरिवार तथा वह बिटिया एवं उसकी मां शीशे से चारों ओर से बनी हुई एवं कबर्ड की गई गेस्ट हाउस की छत पर पहुंच गए कुछ समय की प्रतीक्षा के बाद हमने देखा कि आकाश से क्रमशः ज्योतिपुंज के रूप में नौ ग्रह धरती पर आ रहे हैं और उन प्रकाश के पुंजौ ने पवित्र मानसरोवर झील में स्नान किया तथा वापस आकाश में चले गए।

           लगभग सातवे अथवा आठवें प्रकाश पुंज के स्नान के दौरान वह लड़की चीख कर कहती है कि मां भोले बाबा के दर्शन कर ,देख भोले बाबा खड़े हुए हैं उनका कितना सुंदर शरीर है आकाश में उनकी गर्दन है बाघ अंबर लपेटे हुए हैं कंधे पर सुन्दर सर्प है, सिर से गंगा जी की बूंदें टपक रही हैं। भगवान का त्रिशूल उनके हाथ में है तथा आकाश से भी ऊंचे दिखाई दे रहे है माता द्वारा मना किया गया कि उनको कुछ भी नहीं दिख रहा वह इस बात पर अपनी माता से क्रोध में चिल्लाई, इस दौरान मैं और मेरा परिवार भी अपनी आंखों को नोचने लगा कि शायद हम अपनी आंखों को फोड़ दें तो भगवान शिव के दर्शन हो जाएं लेकिन ऐसा नहीं हुआ हमको मात्र नौ ग्रहों का आना जाना ही दिखाई दिया वापसी में वह लड़की संपूर्ण यात्रा में भगवान शिवजी   का भजन करती हुई तथा आंखों से अविचल धारा बहाती हुई वापस आई

      यहां पर मैं समझ नहीं पा रहा कि जो बिटिया यह कह रही थी कि मुझे शिवजी से कोई लेना देना नहीं है मैं तो मात्र नौ ग्रह के आने की बात को देखने आई हूं उस नास्तिक लड़की को भगवान भोले बाबा दर्शन दे देते हैं तथा अन्य किसी को नहीं। इस बात को अथवा इस प्रश्न को मैं आप जैसे विद्वान पाठकों के समक्ष विचार करने के लिए छोड़ता हूं जहां तक मेरा अल्प ज्ञान है वह यह है कि भगवान के दर्शन इतने आसान नहीं मनुष्य के जाने कितने जन्मों के पुण्य लाभ भगवान किस जन्म में किसको दें यह पता नहीं। यह उदाहरण यह शिक्षा देता है उन नास्तिकों के लिए कि भगवान नहीं है उनका यह भी विचार अथवा विश्वास सर्वथा गलत है मेरी अपनी धारणा है कि भगवान है तथा कण-कण में व्याप्त है जरूरी नहीं कि थोड़ी सी भक्ति में आप या  हम भगवान को प्राप्त कर लें

     अगले दिन पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हम लोग फिर दुर्लभ एवं पवित्र मानसरोवर में स्नान कर अपने को धन्य माना मैंने अपने जीवन काल में इतना मीठा जल नहीं पान किया तथा नहीं यह जल मानसरोवर के अतिरिक्त धरती पर उपलब्ध है।  स्नान कर हम लोग दर्शन के लिए कैलाश गये परंतु दुर्भाग्य कि भारत में आई केदारनाथ जी में भीषण आपदा का समाचार हमारे ग्रुप लीडर द्वारा  तीर्थ यात्रियों को दिया गया था जिसे सुनक हर तीर्थयात्री  स्तब्ध एवं अत्यधिक दुःखी था 

         इसके बाद यात्रा के अंतिम पड़ाव में मानसरोवर में चल रहे भीषण तूफान एवं मौसम अत्यधिक खराब रहने के चलते हमको भगवान शिव जी के स्पष्ट दर्शन दुबारा नहीं हो पाए जो कि हमने 1 दिन पूर्व किए थे।

            भगवान का स्मरण चिंतन ,संकीर्तन तथा भगवत चर्चा भी भगवान की पूजा है । मेरी मान्यता है कि जो भी पाठक इस बृत्तांत को पढ़ेंगे अथवा श्रवण करेंगे उनको भगवान भोलेनाथ  कैलाश यात्रा का फल देंगे 

भोलेनाथ बाबा की जय।

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