श्रीभागवत-प्रतिपद-मणिवर-भावांशु-भूषिता-मूर्तिः

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"श्रीभागवत-प्रतिपद-मणिवर-भावांशु-भूषिता-मूर्तिः।

श्रीवल्लभाभिधानस्तनोतु निज-दासस्य सौभाग्यम्।।"

-(श्रीगुसांईजी कृत 'सप्तश्लोकी'-श्लोक सं.2)

श्रीभागवत के प्रत्येक शब्द रूपी उत्तम मणि से प्रस्फुटित भाव रूपी किरणों से जिनका श्रीअंग विभूषित है ऐसे... 

श्रीवल्लभ नाम से प्रसिद्ध श्रीआचार्यचरण... 

अपने दासों के सौभाग्य का विस्तार करें।

वाक्पति श्रीवल्लभ के वास्तविक स्वरुप का इस श्लोक में 

परिचय करानेवाले श्रीगुसांईजी... 'श्रीसर्वोत्तमस्तोत्र' में भी... 'श्रीभागवतगूढार्थप्रकाशनपरायण'... और... 'श्रीभागवतपीयूषसमुद्रमथनक्षम' नाम से... श्रीमदाचार्यचरण के श्रीभागवत के प्रति अत्यधिक प्रेम का संकेत देते हैं...!!!

अपने अद्भुत ग्रंथ 'तत्वार्थदीपनिबंध' में... स्वयं श्रीमदाचार्यचरण श्रीभागवत के नित्यपठन का आग्रह प्रदर्शित करते हुए स्पष्ट 

आज्ञा करते हैं कि... भगवत्प्रेम के प्राकट्य के लिये 

श्रीभागवत के अतिरिक्त अन्य कोई साधन है ही नहीं...!!!

इतना ही नहीं... आपश्री द्वारा रचित श्रीभागवत की अद्वितीय व्याख्या "श्रीसुबोधिनी" के प्रारंभ में ही..."अर्थं तस्य विवेचितुं..." श्लोक में... आपश्री स्वयं...श्रीभागवत के अर्थ का यथार्थ प्रकाश करने के कार्य को ही... अपने प्राकट्य का हेतु बताते हैं...!!!

आपश्री को अतिप्रिय श्रीभागवत के अध्ययन में... 

आपश्री की कृपा से... हमें रति-गति-मति प्राप्त हो... 

यही विनती... 'श्रीभागवतभावार्थाविर्भावार्थावतारित' 

श्रीवल्लभ के पावन पादपद्मों में...!!!

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