तृ.गृ.गो.श्रीव्रजेशकुमारजी महाराजश्री कृत "श्रीराधिका स्तवनम्" - प्रस्तुति : श्रीधर चतुर्वेदी

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प्रस्तुति : श्रीधर चतुर्वेदी

 

इस अद्भुत-अलौकिक स्तोत्र के... सात श्लोकों का रसास्वाद... 

अब तक हम ने किया...। आइये... आज अष्टम श्लोक का 

अवगाहन करते हैं...!!!

 

श्लोक :- 8

श्रीस्वामिनी युगलेन युक्तो मन्मथाधिकमोहनः 

वेणो रसावृत गोपिकां संनीयते विपिने रहः।

तत्रैव गोपित कृष्णरूपः प्रार्थनैः पुनरागतः 

मोदान्विते वृषभानुकन्ये रक्ष मां खलु दूषणात्।।

श्रीराधिका भवतारिणी दूरीकरोतु ममापदम्। 

गोवर्द्धनोद्धरणेन साकं कुंज मण्डप शोभिनी।।

 

भावार्थ :--

श्रीस्वामिनीजी के युगल सह विराजमान... कामदेव को निज स्वरूपलावण्य से मोहित करनेवाले श्रीमदनमोहनजी स्वरूपधारी रासेश्वर... वेणुनाद-श्रवण से रसाविष्ट श्रीगोपीजनों को एकांत वन में बुलाते हैं...और... वहाँ ...(स्वल्प संयोग के कारण उत्पन्न सौभाग्यमद के शमन हेतु) अपने स्वरूप को तिरोहित कर देते हैं... तब... विरह से अत्यंत व्याकुल श्रीगोपीजनों की दैन्यसभर प्रार्थना से पुनः प्रकट होनेवाले प्राणप्रेष्ठ के दर्शन से अति आनंदित... हे वृषभानुजा! आप मेरी (रासलीला के श्रवण से उत्पन्न होनेवाले लौकिक भावरूप) दूषण से रक्षा कीजिए...। (रासलीला की फलश्रुति रूप लौकिक कामरूपी दूषण के नाश का मुझे दान कीजिए...।)

 

श्रीगोवर्धनधरण के संग... कुंजमण्डप में शोभायमान...भवाब्धि से पार उतारनेवालीं... हे श्रीराधिकाजी! मेरी आपत्ति दूर कीजिए...!!!

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