फिजिकल डिस्टेंसिंग या सोशल डिस्टेंसिंग ?

Subscribe






Share




  • Health

कुछ गलत तो नहीं बोल रहे हम लोग ?

 

फिजिकल डिस्टेंसिंग या सोशल डिस्टेंसिंग ?

 

मैं बहुत दिनों से सोच रहा था कि कोरोना बीमारी के चलते आज समाज के जो हालात हैं वो बहुत ही बदतर हो चुके हैं। बाहर हो या घर, इंसान का इंसान से रिश्ता बदलता जा रहा है लोग एक दूसरे से मिलने में भी कतराने लगे हैं एक दूसरे के घर आना जाना बंद है कहना सुनना बन्द है चाय काफी तो बहुत दूर की बात है। 

कब तक चलेगा ऐसा कुछ पता नहीं। 

कोरोना से पहले जब किसी का कोई रिश्तेदार बीमार हो जाता था तो लोग हस्पिटल में भी  जाकर हाल चाल पूछने जाते थे। पर अब तो बीमार होना ही अपराध हो गया। बीमार को पुलिस के हवाले से अस्पताल भेज दिया जाता है जैसे वो कोई बीमार नहीं अपराधी हो,जबकि इसी समय भावनात्मक जुड़ाव की आवश्यकता होती है ताकि उसका मनोबल न टूटे और वो जल्द से जल्द ठीक हो जाये। हां यह सत्य है कि इस बीमारी से संक्रमित व्यक्ति को  छूने से दूसरे को भी संक्रमण हो जाता है। शारीरिक दूरी बनाना आवश्यक है परन्तु भावनात्मक या सामाजिक दूरी नहीं। समाज से तो जुड़े रहना है।

 इसीको कहते है फिज़िकल डिस्टेंसिंग....

              तो 

  फिजिकल डिस्टेंसिंग 

     (शारीरिक दूरी)

              बनाएं 

      सोशल डिस्टेंसिंग     

      (सामाजिक दूरी)

             नहीं  

 

कम से कम 2 मीटर की शारीरिक दूरी हो, मास्क लगा  हो, हाथ धुले हों साफ सफाई का ध्यान रखा जाए।

यह बचाव करते हुए सभी को एक दूसरे से सामाजिक तौर पर जुड़े रहना है। अन्यथा  हमारा समाज  आने वाले समय मे बहुत सारे नए नए बदलाव देखेगा । जो नई पीढ़ी के लिए अच्छा सन्देश नहीं होगा।

 

पंडित मोहनलाल शर्मा भारद्वाज

TTI News

Your Own Network

CONTACT : +91 9412277500


अब ख़बरें पाएं
व्हाट्सएप पर

ऐप के लिए
क्लिक करें

ख़बरें पाएं
यूट्यूब पर