श्रीद्वारकेश प्रभु मेरे हृदयकमल के मध्य सदा विराजमान रहें...!!! प्रस्तुति - श्रीधर चतुर्वेदी पूर्व अधिकारी राजाधिराज ठाकुर श्री द्वारकाधीश जी महाराज मंदिर मथुरा

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"दीर्घायताब्ज-नयनं नयनाभिरामं 

श्यामं सुकोमलतरं वपुरादधानः।

भूयान् मदीय हृदयाम्बुज-मध्यवर्ती श्रीद्वारका-नगर-नागर-चक्रवर्ती।।"

-(तृ.गृ.गो.श्रीव्रजेशकुमारजी महाराजश्री कृत श्रीचक्रवर्ती स्तवनम्-श्लोक सं.5)

【कमल जैसे विशाल नेत्रवाले, ...नेत्रों को दर्शन से अलौकिक सुख की अनुभूति करानेवाले, ...अत्यंत सुकोमल श्रीअंगवाले, श्रीद्वारका नगर के नागरिकों के चक्रवर्ती ...श्रीद्वारकेश प्रभु मेरे हृदयकमल के मध्य सदा विराजमान रहें...!!!】

स्वयं "प्रतिक्षणनिकुंजस्थलीलारससुपूरित" होते हुए भी, ... स्वयं के मिष से..हमारे शिक्षार्थ - हमारे हितार्थ ...अपने प्राणप्रेष्ठ को अपने हृदय में विराजने की विनती कर रहे हैं...!!!

"श्रीसर्वोत्तम स्तोत्र" में समाविष्ट "जनशिक्षाकृतेकृष्णभक्तिकृत्" नाम की यथार्थता के प्रत्यक्ष दर्शन करानेवाले...श्रीवल्लभ के ही अवर स्वरूप ...हमारे पू.पा.सरकारश्री की कृपा से...हमारे श्रीद्वारकेश प्रभु... हमारे हृत्स्थान को अपना स्थायी निवासस्थान बनाये...यही अभिलाषा-अभ्यर्थना...!!!

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