तृतीय गृहाधीश श्रीव्रजेशकुमारजी महाराज कृत 'श्रीद्वारकेश स्तुति' - 4

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।।श्रीद्वारकेशो जयति।।

तृतीय गृह गौरवगान

प्रसंग:- 331

तृतीय गृहाधीश श्रीव्रजेशकुमारजी महाराज कृत 'श्रीद्वारकेश स्तुतिः' - 4

इस दिव्य रचना के सात श्लोकों का रसास्वादन अब तक कर लेने के बाद आज हम अंतिम तीन श्लोकों का भावदर्शन करने जा रहे हैं, जिसमें आपश्री अपने दास्यभाव एवं दैन्य का दर्शन कराते हुए अपने प्राणप्रेष्ठ के चरणयुगलों में सविनय प्रणिपात अर्पित करते हैं।

"दयासागरो भक्तभावैकतुष्टः

निजास्यावताराश्रितेषु प्रहृष्टः।

अहं दोषदुष्टो$पि दासो$स्मि नाथ!

प्रसन्नो$स्तु मे सर्वदो द्वारकेशः।।8।।"

हे दयासागर! आप केवल भक्तों के भाव से ही संतुष्ट होते हैं, और अपने वदनानलावतार श्रीमदाचार्यचरण के आश्रितों पर आपकी विशेष प्रसन्नता बनी रहती है। हे नाथ! अनेक दोषों से दुष्ट होते हुए भी मैं आपका दास हूँ। मेरे सर्वदाता हे श्रीद्वारकेश प्रभु! मुझ पर अपनी प्रसन्नता सदा बनाये रखिए।

"मया स्वामिनीपादपद्माङ्घ्रिरेणु-

र्धृता मस्तके तेन निर्भीतियुक्तः।

तवाग्रे करोमि स्तुतिं प्राणनाथ!

प्रसन्नो$स्तु मे सर्वदो द्वारकेशः।।9।।"

मेरे द्वारा श्रीस्वामिनीजी के चरणकमलों की रज मेरे मस्तक पर धारण की गई है, और उसीके प्रताप से हे प्राणनाथ! मैं निर्भीक होकर आपके समक्ष आपकी स्तुति कर रहा हूँ। (यहाँ प्रथम 'कर्मणि' एवं बाद में 'कर्तरि' प्रयोग के द्वारा आपश्री सूचित कर रहे हैं कि चरणरेणु केवल कृपा से ही लभ्य है, और उसके प्रतापबल से ही जीव भगवत्सेवा में प्रवृत्त होने का सामर्थ्य प्राप्त कर पाता है।) मेरा वाञ्छित प्रदान करनेवाले हे श्रीद्वारकेश प्रभु! आप मुझ पर सदैव प्रसन्न रहिए।

"मया वाञ्छ्यते त्वत्पदांभोजसेवा

प्रयच्छ प्रभो! त्वं हि सर्वार्थदानी

इति श्रीमदाचार्यदासेन पूर्णा

कृता ते स्तुतिर्द्वारकेश! प्रसीद।।10।।"

।।इति श्रीमद्व्रजभूषणात्मज श्रीव्रजेश्वरकृता श्रीद्वारकेश स्तुतिः सम्पूर्णा।।

हे प्रभु! सर्वार्थ का दान करनेवाले ऐसे आपके समक्ष मैं केवल आपके चरणकमलों की सेवा की ही याचना कर रहा हूँ। मेरा मनोवाञ्छित मुझे प्रदान करने की कृपा कीजिए। श्रीमदाचार्यचरण के इस दास द्वारा की गई इस स्तुति से हे श्रीद्वारकेश प्रभु! आप प्रसन्न हों।

विशेष:- आज प्रस्तुत चित्र में अपने समक्ष विराजमान श्रीद्वारकाधीश प्रभु के चरणों में विनयपूर्वक विज्ञप्ति करते हुए आपश्री के दर्शन हो रहे हैं।

आपश्री की लेखिनी से उद्भूत अद्भुत कृतिओं की शृंखला में कल से हम जिस स्तोत्र का अवगाहन प्रारंभ करने जा रहे हैं वह है 'श्रीस्वरूपलावण्य रश्मि स्तोत्रम्'।

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