मेरी बहनों/बेटियों अपने परिवार को मांसाहारी/शवाहारी मत बनाओ

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  • Jeevan Mantra

नन्द किशोर चतुर्वेदी, मुंबई।

 

घर में अपनी माँ दादी नानी की तरह मेहनत करो शुद्ध, सात्विक भोजन ही नहीं सब कुछ अपने हाथों से बनाकर अपनों को खिलाओ।

बाजार की डिब्बाबन्द, बोतलबंद, पैकेज्ड फूड आइटम से जितना बच सकते हो, बचो। इनसे शुगर से लेकर कैंसर कोरोना तक की बीमारियां मुफ्त मिलती हैं।

चमड़ा सिटी के नाम से मशहूर कानपुर में जाजमऊ से गंगा जी के किनारे किनारे 10 -12 किलोमीटर के दायरे में आप घूमने जाओ तो आपको नाक बंद करनी पड़ेगी, यहाँ सैंकड़ों की तादात में गंगा किनारे भट्टियां धधक रही होती हैं, इन भट्टियों में जानवरों को काटने के बाद निकली चर्बी को गलाया जाता है।

इस चर्बी से मुख्यतः 3 चीजें बनती हैं।

1- एनामिल पेंट (जिसे हम अपने घरों की दीवारों पर लगाते हैं)

2- ग्लू (फेविकोल इत्यादि, जिन्हें हम कागज, लकड़ी जोड़ने के काम में लेते हैं)

3- और तीसरी जो सबसे महत्वपूर्ण चीज बनती है वो है "शुद्ध देशी घी"

जी हाँ " शुद्ध देशी घी" 

यही देशी घी यहाँ थोक मंडियों में 120 से 150 रूपए किलो तक भरपूर बिकता है।

कत्लखानों से आई चर्बी से बने इस घी को इसे बोलचाल की भाषा में "पूजा वाला घी" बोला जाता है, इसका सबसे ज़्यादा प्रयोग भंडारे कराने वाले करते हैं। लोग 15 किलो वाला टीन खरीदकर मंदिरों में दान करके पुण्य कमा रहे हैं।

इस "शुद्ध देशी घी" को आप बिलकुल नही पहचान सकते। 

बढ़िया रवेदार दिखने वाला ये ज़हर सुगंध में भी एसेंस की मदद से बेजोड़ होता है। 

औद्योगिक क्षेत्र में कोने-कोने में फैली वनस्पति घी बनाने वाली फैक्टरियां भी इस ज़हर को बहुतायत में खरीदती हैं।

अब आप स्वयं सोच लो आप जो वनस्पति घी " डालडा" "फॉर्च्यून" सफोला खाते हो, उसमें क्या मिलता होगा ?

कोई बड़ी बात नहीं देशी घी बेचने का दावा करने वाली कम्पनियाँ भी इसे प्रयोग करके अपनी जेब भर रही हैं।

इसलिए ये बहस बेमानी है कि कौन घी को कितने में बेच रहा है ?

अगर शुद्ध ही खाना है तो अपने घर में गाय पालकर ही आप शुद्ध खा सकते हैं।

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