दाऊजी ओढ़ें रजाई, समझो ब्रज में सर्दी आई

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सुजीत वर्मा

बल्देव (मथुरा) 29 दिसंबर 2020

ब्रज के राजा दाऊजी महाराज का 440 वां पाटोत्सव (अगहन पूर्णिमा लक्खी मेला) 30 दिसंबर से शुरू होगा। बता दें कि दाऊजी महाराज को सर्दी से बचाने के लिए अगहन पूर्णिमा से गद्दल (रजाई) ओढ़ाई जाती है। इसी कारण अगहन पूर्णिमा को गद्दल पूनौ के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि ब्रज के राजा सभी को संदेश देते हैं कि सर्दी से बचाव के लिए उन्हाेंने स्वयं रुई से निर्मित रजाई धारण कर ली है, अब भक्त भी सर्दी से बचाव के लिए तैयारी कर लें। 

बलदेव के श्री दाऊजी मंदिर में यह मेला मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा से शुरू होता है। मान्यता है कि मार्गशीर्ष शुक्ल 15 संवत 1638 ईस्वी सन 1582 को बलदेव और माता रेवतीजी के विग्रह का प्राकट्य हुआ था। प्राकट्य महोत्सव के संबंध में बताया जात है कि श्रीमदबल्लभाचार्य महाप्रभु के पौत्र गोस्वामी गोकुलनाथ ने पर्ण कुटी में श्रीविग्रह की प्राण प्रतिष्ठा की। एक वर्ष बाद दोबारा नव निर्मित देवालय में संवत 1639 मार्गशीर्ष पूर्णिमा सन 1583 को नए विशाल देवालय में प्राण प्रतिष्ठा की। पूजा का भार गोस्वामी कल्याण देव को सौंपा गया। उनके वंशज आज भी इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं।

बता दें कि नए देवालय का निर्माण दिल्ली निवासी श्यामलाल सेठ ने कराया था। इसमें युगल विग्रह विधिविधान से प्रतिष्ठित किए गए। तभी से मेला का आयोजन स्मृति स्वरूप पाटोत्सव मेला के रूप में होता आ रहा है। मेले में लाखों श्रद्धालु उमड़ते हैं इसी कारण इसे लक्खी मेला के नाम से जाना जाता है। दाऊजी मंदिर के रिसीवर  ने बताया की उत्सव की संपूर्ण तैयारी कर ली गई हैं। मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की सभी सुविधाओं को ध्यान में रखा गया है। 

कुषाणकालीन है दाऊजी का विग्रह

पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार मंदिर में स्थापित विग्रह कुषाणकालीन है। ब्रज के प्राचीन देवालयों में ब्रजराज का विग्रह ही सबसे प्राचीन है। विशाल सिंहासन पर स्थापित यह विग्रह आठ फीट ऊंचा और साढे़ तीन फीट चौड़ा श्याम वर्ण है। पीछे शेषनाग सात फनों से युक्त मुख्य मूर्ति पर छाया कर रहे हैं जो साक्षात स्वरूप में शेषनाग हैं। ब्रजराज के सामने उनकी सहधर्मिणी रेवती मैया का बड़ा मनोहारी स्वरूप में विग्रह स्थापित है। बताया जाता है कि पहली बार ब्रजराज को खीर का भोग लगाया गया था। यही परंपरा आज भी चली आ रही है। राजभोग में दाऊजी को खीर का भोग अवश्य लगाया जाता है। बाल भोग में माखन मिश्री का भोग लगता है।

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