रमेशं व्रजे गव्यमास्वादयन्तम् भजे स्वामिनीवल्लभं द्वारकेशम्।। प्रस्तुति - श्रीधर चतुर्वेदी

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"वने गोपिकायूथमाकारयन्तम् 

दरीद्वारदेशस्थितं गोकुलेशम्।

रमेशं व्रजे गव्यमास्वादयन्तम् 

भजे स्वामिनीवल्लभं द्वारकेशम्॥"

-(तृ. गृ. गो. श्रीव्रजेशकुमारजी कृत श्रीद्वारकेशाष्टकम् - श्लोक:1)

समश्लोकी अनुवाद:-

"वने गोपिका नां यूथो ने रचावी 

गोपीश द्वारे ऊभा कंदरा ना।

रमानाथ व्रज मां जे नवनीत-भोगी 

भजुं स्वामिनीप्रिय श्रीद्वारकेश॥"

अपने प्राणप्रेष्ठ श्रीद्वारिकाधीश प्रभु की...  श्रीगोवर्धनधर और श्रीनवनीतप्रियजी स्वरूप 

धारण कर... वन एवम् व्रज में हो रही लीला के 

तादृश दर्शन करानेवाला यह चित्र भी... 

इस लीला को स्तोत्रबद्ध करनेवाले 

पू. पा. सरकारश्री ने ही सिद्ध करा कर ...

यह प्रमाण दिया है आपश्री की लेखिनी के 

सामर्थ्य ने ही...चित्रकार की तूलिका को 

इतना प्राणवान बनाया है...!!!

शतशः दंडवत् प्रणाम इस लीला को, लीलानायक को और उसके प्रकटकर्ता को...!!!

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