वे मानो भगवान श्रीहरि के मस्तक का छेदन करते हैं . . .

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  • Jeevan Mantra

पूर्णमायाममायां च

       द्वादश्यां रविसङ्क्रमे

तैलाभ्यंङ्गं च कृत्वा च

        मध्याह्ने निशि सन्ध्ययो:

आशौचेऽशुचिकाले ये

        रात्रिवासोऽन्विता नरा:

तुलसीं ये विचिन्वन्ति

        ये छिन्दन्ति हरे: शिर:

देवी भागवत ९/२४/४९/५९

पूर्णिमा, अमावस्या, द्वादशी सूर्य संक्रान्ति मध्याह्नकाल रात्रि दोनों सन्ध्याएं अशौच के समय रात में सोने के पश्चात बिना स्नान किये इन समयों में तथा तेल लगाकर जो मनुष्य तुलसी के पत्तों को तोड़ते हैं वे मानो भगवान श्रीहरि के मस्तक का छेदन करते हैं।

पं बनवारी चतुर्वेदी

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