तृतीय गृहाधीश श्रीव्रजेशकुमारजी महाराज कृत श्रीचक्रवर्ती स्तवनम् - 3

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  • Jeevan Mantra

प्रस्तुति : श्रीधर चतुर्वेदी

।।श्रीद्वारकेशो जयति।।

तृतीय गृह गौरवगान

प्रसंग:- 338

तृतीय गृहाधीश श्रीव्रजेशकुमारजी महाराज कृत 'श्रीचक्रवर्ती स्तवनम्' - 3

राजाधिराज श्रीद्वारकाधीश प्रभु की इस अद्भुत-आस्वाद्य स्तुति के चार श्लोकों का अवगाहन अब तक कर लेने के बाद, आज अन्य तीन श्लोकों का भावदर्शन करते हैं, जिसमें आपश्री  श्रीद्वारकाधीश प्रभु की पुष्टिलीला के दर्शन करा रहे हैं।

"दीर्घायताब्जनयनं नयनाभिरामं

श्यामं सुकोमलतरं वपुरादधानः।

भूयान् मदीय हृदयाम्बुजमध्यवर्ती

श्रीद्वारकानगर-नागर-चक्रवर्ती।।5।।"

कमलपत्र समान विशाल-आरक्त नेत्रद्वय और अति सुकोमल मेघश्याम श्रीअंग से दर्शन करनेवालों के नेत्रों को परमाह्लाद प्रदान करनेवाले हे श्रीद्वारकेश प्रभु! श्रीद्वारका नगर के नागरिकों के चक्रवर्ती ऐसे आप मेरे हृदयकमल के मध्य विराजमान हों।

"श्रीद्वारकाधववधौ जनिता च शंका

गोपीगणान् प्रकटितानकरोद्रसज्ञः।

भूयान् मदीय हृदयाम्बुजमध्यवर्ती

श्रीद्वारकानगर-नागर-चक्रवर्ती।।6।।"

द्वारकास्थित आपकी पटरानियों के मन में उद्भूत, व्रजलीला एवं व्रजभक्तों के स्वरूप से संबंधित शंका के निवारण हेतु श्रीगोपीजनों को वहीं पर प्रकट करनेवाले रसज्ञ हे श्रीद्वारकेश प्रभु! श्रीद्वारका नगर के नागरिकों के चक्रवर्ती ऐसे आप मेरे हृदयकमल के मध्य विराजमान हों।

"गोपीतडाग-रसरासरसेश्वरो$सौ

रासेश्वरीरमण-नित्यविहारशीलः।

भूयान् मदीय हृदयाम्बुजमध्यवर्ती

श्रीद्वारकानगर-नागर-चक्रवर्ती।।7।।"

रास हेतु 'गोपी तलैया' में से गोपीजनों को प्रकट कर, रासेश्वरी स्वामिनिओं के संग नित्य रसविहार कर रहे हे रसेश्वर! हे श्रीद्वारकेश प्रभु! श्रीद्वारका नगर के नागरिकों के चक्रवर्ती ऐसे आप मेरे हृदयकमल के मध्य विराजमान हों।

(क्रमशः)

विशेष:- जन्माष्टमी के वस्त्राभूषण में सुसज्ज और संपूर्ण राजसी वैभव सहित दर्शन दे रहे राजाधिराज श्रीद्वारकाधीश प्रभु का जो चित्र आज यहाँ दिया जा रहा है, वह पचास से अधिक वर्ष पूर्व बम्बई की लब्धप्रतिष्ठ संस्था 'भारतीय विद्याभवन' द्वारा प्रकाशित किया गया है, और संप्रति दुर्लभप्राय है।

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