जीवन का आनंद लेना है तो सफलता व असफलता के माइनों से दूर हटकर सुकर्म करने में आनन्द लेना चाहिए : राष्ट्र संत शिरोमणि पूज्य प्रभुदत्त ब्रहमचारी जी

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बात फरवरी 1990 की है, संकीर्तन भवन बसंत विहार नई दिल्ली की है। पूज्यवर ने अपने प्रवचनों में कहा कि उददेश्यपूर्ण कर्म करो सफलता सुनिश्चित होगी।

महाराज श्री ने कहा कि समाज में सफलता-असफलता को अपने ढंग से प्रस्तुत कर रखा है। इसके दो मुख्य आधार हैं - पहला कर्म, दूसरा उद्देश्य, यदि उद्देश्य पूरा हो गया तो सफल नहीं तो असफल होना मान लिया गया है। लेकिन इतिहास पर दृष्टि डाली जाए तो पता चलता है कि समय ने असफलता की भी पूजा की है, उनका भी यशोगान किया गया है, नमन किया है, जय, जयकार किया गया है।

जो हम चाहते हैं, उसे पाना ही सफलता नहीं कहलाता। यदि यह एसा होता तो, नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय नहीं बने होते। यहाँ तक कि जिस आ0सी0एस0 (आज आई0ए0एस0) बनने को उस समय हिन्दुस्तान के नौजवानों की 

जिन्दगी की सबसे बड़ी सफलता माना जाता था, वे उसमे सफल हुए । बाद में अपनी उसी सफ़लता को छोड़कर वे देश की आजादी के काम मे लग गए, जिसमें वे जीते जी सफल नहीं हो सके। फिर भी भी आज पूरा देश उनकी इस असफ़लता की पूजा करता है, आ0सी0एस0 बनने की सफलता की नहीं। इसलिए यदि जीवन का आनंद लेना है तो सफलता व असफ़लता के माइनों से दूर हटकर सुकर्म करने में आनन्द लेना चाहिए। 

जय श्री राम।

प्रस्तुति - कैप्टन हरिहर शर्मा, मथुरा।

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