तृतीय गृह त्रयोदश गृहाधीश श्रीव्रजभूषणलालजी महाराज(चतुर्थ) - 8 - प्रस्तुति : श्रीधर चतुर्वेदी

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  • Jeevan Mantra

प्रस्तुति : श्रीधर चतुर्वेदी

।।श्रीद्वारकेशो जयति।।

तृतीय गृह गौरवगान

प्रसंग:- 231

तृतीय गृह त्रयोदश गृहाधीश श्रीव्रजभूषणलालजी महाराज(चतुर्थ) - 8

 

कल के प्रसंग में हमने विद्या विभाग की गतिविधियों के विषय में, और श्रीव्रजभूषणलालजी द्वारा अपने यात्रा-प्रवासों में किये गये धर्मप्रचार के विषय में जानकारी प्राप्त की। आज उसीके अनुसंधान में आगे का घटनाक्रम देखते हैं।

 

"बुरहानपुर में आर्यसमाज के साथ शास्त्रार्थ के प्रसंग एवं धर्म के प्रचार से सनातन धर्मजगत् को महाराजश्री की धर्मप्रचार की अभिरुचि का परिचय मिल गया था, अतः वहाँ से जब खंडवा जाकर व्याख्यान दिये गये, तो सामयिक पत्र-पत्रिकाओं में इसके संवाद छपने लगे, जिससे महाराजश्री के लिए जनता की श्रद्धा-भावना की वृद्धि होने लगी।"

 

"द्वि. श्रावण में जनता के आग्रह पर महाराजश्री इन्दौर गये, जहाँ जनता के उत्साह ने मूर्तिमान् रूप धारण कर उनका भव्य स्वागत किया। जितने दिन वहाँ निवास हुआ, धार्मिक सभाओं में व्याख्यानों का ताँता-सा लग गया।"

 

"इस प्रकार धार्मिक प्रचार की आवश्यकता और महाराजश्री की अभिरुचि को देखकर स्थानीय 'सनातनधर्मसंरक्षिणी' सभा ने टाउन हॉल में महाराजश्री और उनके शास्त्रियों के व्याख्यान कराये। वहाँ स्थानीय जनता की ओर से उक्त सभा ने महाराजश्री को एक सुन्दर अभिनंदनपत्र भेंट किया, और नगर में उनका अभूतपूर्व जुलूस निकाला, जिसमें राज्य की ओर से लवाजमा और सवारियों का प्रबन्ध किया गया था। सवारी के समग्र मार्ग पर अनेक स्थानों और दूकानों पर जनसमूह ने महाराजश्री का जयघोष के साथ सत्कार किया। तदनन्तर महाराजश्री ने स्थानीय ब्रह्मचर्याश्रम को आवश्यक अर्थसाहाय्य प्रदान किया, और वहाँ विद्वानों का सत्कार किया।"

 

"सं.1985 में काशी में 'अखिल भारतवर्षीय ब्राह्मण-महासम्मेलन' का आयोजन किया गया, जिसके लिए आमन्त्रण आने पर नाथद्वारा से तिलकायित श्रीगोवर्द्धनलालजी महाराज के प्रतिनिधि स्वरूप उनके पुत्र श्रीदामोदरलालजी और कांकरोली से व्रजभूषणलालजी महाराज वल्लभाचार्य-सम्प्रदाय के आचार्य- स्वरूप में विजयादशमी के दिन स्पेशल ट्रेन से काशी पहुँचे। स्वागत-सभा ने बड़े भारी जुलूस के साथ उनका स्वागत किया।"

 

श्रीव्रजभूषणलालजी की प्रखर विद्वत्ता, और उसके कारण इतनी युवा वय में भी एक समर्थ आचार्य के रूप में प्राप्त मान्यता-आदर के प्रत्यक्ष प्रमाण रूप इस घटना के विवरण को, विस्तारभय से आज यहाँ अपूर्ण छोड़़ते हैं, और कल उसके शेष भाग पर दृष्टिपात करके आगे बढ़ेंगें।

 

आज प्रस्तुत किये जा रहे चित्र में अपने  युवा पुत्र श्रीव्रजेशकुमारजी के संग विराजमान श्रीव्रजभूषणलालजी परम ओजस्वी आचार्य के रूप में दर्शन दे रहे हैं।

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