अति सरल दिखते हुए भी अर्थ कितने गंभीर

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  • Jeevan Mantra

तृतीय गृहाधीश, कांकरोली नरेश, अर्वाचीन युग के "ब्रह्मर्षि", पू.पा.गो.108 श्रीव्रजेशकुमारजी महाराजश्री रचित... 

ये दो श्लोक ...अति सरल दिखते हुए भी ...कितने 

अर्थगंभीर हैं...!!!

 

वाक्पति श्रीवल्लभ की वाणी में सूत्रात्मकता की जो अनुभूति 

होती है...उसी सूत्रात्मक शैली में आपश्री ने भी... 

इन दो छोटे-छोटे श्लोकों में ...पुष्टिभक्ति की व्याख्या, 

उसके प्राणरुप भाव का स्वरूप और भगवत्कृपा की प्राप्ति का उपाय - इन तीनों मूलभूत तत्वों को निरूपित कर दिये हैं...!!!

 

आपश्री की कृपा से... आपश्री की दिव्य-अलौकिक वाणी के 

माध्यम से ...आपश्री के निगूढ़ स्वरूप को पहचानने की 

योग्यता हमें प्राप्त हो... यही विनती...

"श्रीवल्लभ-सुधाधारा-वाग्रसास्वादशाली" आपश्री के 

पावन पादपद्मों में...!!!

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