भक्ति और ज्ञान मार्ग के समुच्चय का संप्रदाय है उदासीन सम्प्रदाय - रुद्रदेवानंद

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विकास अग्रवाल

टीटीआई न्यूज़

वृन्दावन (27-08-2020)

 

उदासीन संप्रदाय के प्रवर्तक आचार्य श्रीचंद्र देव का 526 वाँ महा महोत्सव बड़े ही धूमधाम के साथ योगानंद आश्रम में महामंडलेश्वर स्वामी रूद्रदेव आनंद के सानिध्य में मनाया गया। श्री चंद्र देव संवत 1551 भाद्रपद शुक्ल नवमी के दिन लाहौर के पास खड़गपुर तहसील के तलवंडी ग्राम में गुरुनानक देव महाराज के यहां उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुलक्षणा देवी के गर्भ से हुआ। चंद्रदेव  के बाल्यकाल से ही शिव स्वरूप में दर्शन होते थे और उन्होंने धीरे-धीरे अपनी साधना को बढ़ाया और प्रत्येक व्यक्ति  की ओर कदम रखते हुए उन्होंने साधु समाज को एक नई दिशा प्रदान की ।

आचार्य बद्रीश ने कहा कि भगवान चंद्रदेव ने उदासीन मत का प्रकाशन किया। उदासीन संप्रदाय की स्थापना करके ज्ञान और भक्ति का समुच्चय स्थापित करते हुए उपासना को प्रधानता दी। "उदासीन मत कियो प्रकाश । ज्ञान भक्ति सों भव भय नाश ।पंचदेव पूजा करवाय । धर्म सनातन दियो जगाय" उस समय देश में विधर्मी आक्रांताओं का अत्यंत प्रभाव था परंतु आपने अपने दिव्य प्रभाव से अपने आलोक से साधुता के माध्यम से ,भक्ति के माध्यम से, पंच देव की उपासना का ऐसा जबरदस्त प्रचार प्रसार किया। मानव जाति के अपने सोए हुए या विलुप्त हुए सनातन धर्म को पुनः जागृत कर दिया। महामंडलेश्वर स्वामी रूद्रदेव आनंद महाराज ने कहा कि उदासीन संप्रदाय अपने आप में भक्ति और ज्ञान मार्ग के समुच्चय का संप्रदाय है। उदासीन का मतलब होता है" उत् ऊर्ध्वम आसीन ,यानि उच्चा वस्था में सदैव स्थित रहना। इसके साधक सदैव सामान्य स्थिति से ऊपर उठकर के सामान्य यानी कि काम, क्रोध ,लोभ ,मोह ,राग द्वेष आदि से ऊपर उठकर केवल भक्ति भावना में लीन रहते हैं। 

कार्यक्रम में महंत सेवा दास उदासीन, महंत सुबोदानंद, महंत शिव चेतन, स्वामी चंदन मुनि, स्वामी देवानन्द उदासिन ,महंत राघव, डॉ लक्ष्मीनारायण मिश्र, राम गोस्वामी, धर्म रक्षा संघ के अध्यक्ष सौरभ गौड़ और शुभम पंडित समेत अनेक लोग मौजूद रहे।

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