तृ.गृ.गो.श्रीव्रजेशकुमारजी महाराजश्री कृत "श्रीराधिका स्तवनम्"

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  • Jeevan Mantra

प्रस्तुति : श्रीधर चतुर्वेदी

इस दिव्यानुभूतिपूर्ण स्तोत्र के... आठ श्लोकों का दुर्लभ रसास्वाद... अब तक कर पाने के बाद... आज... अंतिम-नवम श्लोक का अवगाहन करके...पू.पा.सरकारश्री के हृदयसिंधु से प्रकटित... इस अमूल्य-अलौकिक भावामृत के... यथामति-यथाधिकार आचमन का उपक्रम... संपन्न करते हैं...!!!

 

श्लोक :- 9

दोषावृतेSपि दयानिधे! द्वारावतीपति सेवके 

दृष्टिः सदा परिरक्षणीया त्वत्पदांबुज धारके।

श्रीराधिका भवतारिणी दूरीकरोतु ममापदम् 

द्वेषात्स्वकीयजनैः कृतं दासोSस्मि हे व्रजनायिके।।

श्रीराधिका भवतारिणी दूरीकरोतु ममापदम्। 

गोवर्द्धनोद्धरणेन साकं कुंज मण्डप शोभिनी।।

 

भावार्थ :--

हे व्रजनायिका! हे दयानिधि! आपके चरणारविंद को मस्तक पर धारण करनेवाला... और...श्रीद्वारकाधीश प्रभु का सेवक... ऐसा मैं... अनेक दोषों से पूर्ण हूँ...। तथापि... अपनी कृपादृष्टि से सर्वदा-सर्वथा मेरी रक्षा कीजिए...!!! संसारसमुद्र से पार उतारनेवालीं हे श्रीराधिकाजी! कृपावश मुझे प्राप्त हुए... भगवत्सेवा-सौभाग्य का द्वेष करनेवालों द्वारा उत्पन्न की गई आपत्ति का...निवारण कीजिए (ताकि... बिना किसी विक्षेप या प्रतिबंध के... मैं सपरिवार... पुनः आप श्रीयुगलस्वरूप की सेवा में... प्रफुल्लतया प्रवृत्त हो पाऊँ)...!!! 

श्रीगोवर्धनधरण के संग... कुंजमण्डप में शोभायमान...भवसिंधु से पार उतारनेवालीं... हे श्रीराधिकाजी! मेरी आपत्ति दूर कीजिए...!!!

 

।।इति श्रीमद् व्रजभूषणात्मसंभवेन व्रजेश्वरेणोक्तं श्रीराधिका स्तवनं समाप्तम्।।

(इस प्रकार श्रीव्रजभूषणजी के आत्मज श्रीव्रजेशकुमारजी द्वारा रचित श्रीराधिका स्तवन समाप्त हुआ)

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