नील में रंगा वस्त्र दूर से ही त्याग देना चाहिए

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न चापि नीलीवासा: स्यात्

स्कंदपुराण

स्नानं दानं तपो होम: 

         स्वाध्याय : पित्रतर्पणम्

वृथा तस्य महायज्ञा

           नीलवासो विभर्ति य: 

नीली रक्तेन वस्त्रेण

          यदन्नमुप कल्पयेत

भोक्ता विष्टासमं भुड्क्ते

          दाता च नरकं व्रजेत

स्कंदपुराण

 

नील में रगा हुआ वस्त्र दूर से ही त्याग देना चाहिये

जो नील का रंगा हुआ वस्त्र पहनता है उसके स्नान दान तप होम स्वाध्याय पित्रतर्पण और पंच महायज्ञ ये सभी व्यर्थ हो जाते है नील के रगे वस्त्र धारण करके जो रसोई बनायी जाती है उस अन्न को जो खाता है वह मानो विष्टा खाता है वह अन्न देने वाला यजमान नरक में जाता है।

 

पं बनवारी चतुर्वेदी

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