तृ.गृ.गो.श्रीव्रजेशकुमारजी महाराजश्री कृत "श्रीराधिका स्तवनम्"।

Subscribe






Share




  • Jeevan Mantra

प्रस्तुति : श्रीधर चतुर्वेदी।

इस अद्भुत-अलौकिक स्तोत्र की पूर्वभूमिका से कल हम परिचित हुए थे।

आइए... आज से हम... इस स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक... और... उसके भावार्थ का... क्रमशः यथामति-यथाधिकार... रसास्वाद करते हैं...!!!

 

श्लोक - 1

गोवर्द्धनोधरणेन साकं कुंज मण्डप शोभिते गोपीगणाधिपराधिके पद्मास्तृते शयनासने।

केकीशुकैः कलनादिते नागेन्द्रसिंहसुगोपिते गोमेषयोगिगणावृते त्वं राजसे व्रज भामिनी।।

श्रीराधिका भवतारिणी दूरीकरोतु ममापदम्। गोवर्द्धनोद्धरणेन साकं कुंज मण्डप शोभिनी।।

 

भावार्थ :--

श्रीगोपीजनों के यूथों के अधिपति श्रीगोपीजनवल्लभ की आराधना में रत... और श्रीगोपीजनवल्लभ स्वयं जिनकी आराधना करते हैं... ऐसे... श्रीप्रभु की आह्लादिनी-शक्तिस्वरूपा हे व्रजभामिनी! अति शोभायमान कुंजमंडप में कमलपत्रों से रचित शय्या पर... आप...श्रीगोवर्धनधरण के संग विराज रही हैं...। (श्रीगोवर्धनधरण की पीठिका में अंकित) मोर, शुक आदि के कलनाद से गुंजायमान वह मंडप... नागश्रेष्ठ श्रीशेषजी और सिंह द्वारा सम्यक्तया रक्षित है... तथाच...गाय, मेंढा एवं मुनिगण उस मंडप के आसपास विचरण कर रहे हैं...। (श्रीगोवर्धनधरण की पीठिका की भावनानुसार ये नवधा भक्तों के स्वरूप हैं, जिनके द्वारा आप सेवित हैं।) श्रीगोवर्धनधरण के संग कुंजमंडप में शोभायमान...संसारसमुद्र से पार उतारनेवालीं हे श्रीराधिकाजी! मेरी आपत्ति दूर कीजिए...!!!

(क्रमशः)

TTI News

Your Own Network

CONTACT : +91 9412277500


अब ख़बरें पाएं
व्हाट्सएप पर

ऐप के लिए
क्लिक करें

ख़बरें पाएं
यूट्यूब पर