आप मानें या न मानें मगर सच्चे भक्तों के साथ अक्सर ऐसा होता है!

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  • Jeevan Mantra

एक बार की बात है एक संत जगन्नाथपुरी से मथुरा की ओर आ रहे थे. उनके साथ बड़े सुंदर ठाकुर जी थे. वे संत उन ठाकुर जी को हमेशा साथ ही लिए रहते थे और बड़े प्रेम से उनकी पूजा अर्चना कर लाड़ लड़ाया करते थे.

ट्रेन से यात्रा करते समय बाबा ने ठाकुर जी को अपने बगल की सीट पर बैठा दिया और अन्य संतों के साथ हरि चर्चा में मग्न हो गए.

जब ट्रेन रुकी और सब संत उतरे, तब वे सत्संग में इतने मगन हो चुके थे कि झोला गाड़ी में ही रह गया, उसमें रखे ठाकुर जी भी गाड़ी में ही रह गए. संत सत्संग की मस्ती में ऐसे बहे कि ठाकुर जी को साथ लेकर आना ही भूल गए.

बहुत देर बाद जब उस संत के आश्रम पर सब संत पहुंछे और भोजन प्रसाद पाने का समय आया तो उन प्रेमी संत ने अपने ठाकुर जी को खोजा और देखा की हाय हमारे ठाकुर जी तो हैं ही नहीं.

संत बहुत व्याकुल हो गए , बहुत रोने लगे परंतु ठाकुर जी मिले नहीं. उन्होंने ठाकुर जी के वियोग अन्न-जल लेना स्वीकार नहीं किया. संत बहुत व्याकुल होकर विरह में अपने ठाकुर जी को पुकारकर रोने लगे.

तब उनके एक पहचान के संत ने कहा - महाराज मैं आपको बहुत सुंदर चिन्हों से अंकित नये ठाकुर जी दे देता हूँ परंतु उन संत ने कहा कि हमें अपने वही ठाकुर चाहिए, जिनको हम अब तक लाड़ लड़ाते आये हैं.

तभी एक दूसरे संत ने पूछा - आपने उन्हें कहा रखा था? मुझे तो लगता है गाड़ी में ही छूट गए होंगे. 

एक संत बोले - अब कई घंटे बीत गए हैं. गाड़ी से किसी ने निकाल लिए होंगे और फिर गाड़ी भी बहुत आगे निकल चुकी होगी.

इस पर वह संत बोले- मैं स्टेशन मास्टर से बात करना चाहता हूँ, वहाँ जाकर सब संत उन महात्मा को लेकर स्टेशन पहुंचे. स्टेशन मास्टर से मिले और ठाकुर जी के गुम होने की शिकायत करने लगे. उन्होंने पूछा कि कौन सी गाड़ी में आप बैठकर आए थे?

संतों ने गाड़ी का नाम स्टेशन मास्टर को बताया तो वह कहने लगा - महाराज! कई घंटे हो गए, यही वाली गाड़ी तो यहां खड़ी हो गई है और किसी प्रकार भी आगे नहीं बढ़ रही है. न कोई खराबी है, न अन्य कोई दिक्कत. कई सारे इंजीनियर सब कुछ चेक कर चुके हैं परंतु कोई खराबी दिखती है नहीं. महात्मा जी बोले- अभी आगे बढ़ेगी, मेरे बिना मेरे प्यारे कहीं अन्यत्र कैसे चले जायेंगे?

वे महात्मा अंदर ट्रेन के डिब्बे के अंदर गए और ठाकुर जी वहीं रखे हुए थे, जहां महात्मा ने उन्हें पधराया था. अपने ठाकुर जी को महात्मा ने गले लगाया और जैसे ही महात्मा जी उतरे, गाड़ी आगे बढ़ने लग गयी. ट्रेन का चालक, स्टेशन मास्टर तथा सभी इंजीनियर आश्चर्य में पड़ गए और बाद में उन्होंने जब यह पूरी लीला सुनी तो वे गद्गद् हो गए. इसके बाद वे सभी जो वहां उपस्थित थे, उन सभी ने अपना जीवन संत और भगवन्त की सेवा में लगा दिया.

भक्तों भगवान जी खुद कहते हैं:-

भक्त जहाँ मम पग धरै, तहाँ धरूँ मैं हाथ,

सदा संग लाग्यो फिरूँ, कबहू न छोड़ूं साथ.

राधे कृष्ण.

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