आज का पंचांग

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प्रस्तुति - रवींद्र कुमार 

प्रसिद्ध वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ ज्योतिषी

 

 

|।ॐ।|

आज‬ का पंचांग

तिथि.........त्रयोदशी

वार...........रविवार

पक्ष... .......शुक्ल       

नक्षत्र........हस्त

योग..........व्यगाथा

राहु काल.....१७:१४--१८:५३

मास ......चैत्र

ऋतु.......बसंत

कलि युगाब्द....५१२३

विक्रम संवत्....२०७८

25  अप्रैल  सं - 2021

महावीर जयंती

आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो

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#हरदिनपावन

"25 अप्रैल/इतिहास-स्मृति"

पचपदरा का नमक आंदोलन   

गांधी जी द्वारा 1930 में किया गया नमक सत्याग्रह बहुत प्रसिद्ध है; पर इसका आधार 1926 में हुआ पचपदरा (राजस्थान) का नमक आंदोलन था।

भारत में समुद्र के किनारे अनेक स्थानों पर नमक बनता है। सौ वर्ष पूर्व तक मारवाड़ में 90 स्थानों पर नमक बनता था। सम्पूर्ण उत्तर भारत में राजस्थान का नमक ही प्रयोग होता था; लेकिन पचपदरा का नमक विशेष था। वहां धरती खोदने पर 5-6 फुट से 13 फुट तक गाढ़ा नमकीन पानी मिलता है। इसे सुखाकर नमक बनाते हैं। विशेष स्वाद व गुण वाले इस नमक की आपूर्ति मुख्यतः मेवाड़, मारवाड़, हाड़ौती, मालवा, सागर आदि में की जाती थी।

1857 के बाद अंग्रेजों ने भारत की अन्य व्यवस्थाओं के साथ अर्थव्यवस्था को भी नष्ट करने का षड्यन्त्र रचा। अंग्रेज व्यापारी भारत से बड़ी मात्रा में कच्चा माल पानी के जहाजों में ढोकर इंग्लैंड ले जाने लगे। वापसी पर उन्हीं जहाजों में तैयार माल लाद दिया जाता था। इससे वे भारतीय श्रमिक और कारीगरों की कमर तोड़ना चाहते थे। 

तैयार माल अपेक्षाकृत हल्का और कम जगह घेरता है। इससे जहाज में काफी जगह खाली रह जाती थी। अतः संतुलन बनाने के लिए वे उनमें पत्थर भर देते थे; पर इससे व्यापारिक रूप से उन्हें हानि होती थी। अतः वे पत्थर की जगह अपने देश का बना नमक भेजने लगे।

पर भारत में पर्याप्त नमक बनता था और वह सस्ता भी होता था। इसलिए लोगों ने महंगा विदेशी नमक खरीदने में कोई रुचि नहीं ली। अतः शासन ने नमक के व्यापार को अपने हाथ में लेकर डेढ़ आने मन वाले नमक पर एक रुपया नौ आने, अर्थात कीमत से लगभग 15 गुना कर लगा दिया। कर चोरी का बहाना बनाकर तथा नमक बनाने की विधि को पुरानी और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताकर नमक निर्माताओं पर अनेक प्रतिबंध थोप दिये गये।

इससे नमक-निर्माता परेशान हो गये। उन दिनों अंग्रेजों ने देसी रियासतों में अपने दलाल नियुक्त कर रखे थे। इनके माध्यम से राजस्थान की रियासतों से कई सन्धियां की गयीं। 1879 की सन्धि के अनुसार पचपदरा, डीडवाना, फलौदी, लूणी, सांचोर व कच्छ में नमक उत्पादन का अधिकार शासन के हाथ में आ गया। इसके लिए रियासतों को मुआवजा भी दिया गया।

अंग्रेजों ने श्रमिकों द्वारा महाजनों से लिया गया कर्ज चुका दिया और उसे वसूलने के लिए नमक के दाम घटा दिये। इससे श्रमिक अंगेजों के चंगुल में फंस गये। प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर मंदी का बहाना बनाकर उन्होंने उत्पादन ही बंद कर दिया। इससे लगभग 20,000 लोग बेरोजगार हो गये। 

उन्हीं दिनों गंज वसोदा (म.प्र.) में 1885 में जन्मे गुलाबचंद सालेचा ने पचपदरा में ‘श्री लक्ष्मी साल्ट ट्रेडर्स’ की स्थापना की थी। उन्होंने जब नमक निर्माताओं की दुर्दशा देखी, तो इसके विरुद्ध संघर्ष प्रारम्भ कर दिया।

सर्वप्रथम वे मारवाड़ राज्य के दीवान से मिले और उन्हें नमक संधि की विसंगतियों के बारे में बताया; पर उसने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। फिर उन्होंने दीवान की अनुमति से राज्य पुस्तकालय के दस्तावेजों का अध्ययन कर एक विस्तृत आलेख तैयार किया और 25 अप्रैल, 1926 को जोधपुर राज्य के महाराजा और ब्रिटिश अधिकारियों को दिया। उनका यह प्रयास भी सफल नहीं हुआ। इस पर उन्होंने नमक निर्माण में लगे श्रमिकों और व्यापारियों को संगठित किया तथा नमक की दर बढ़ाने के लिए व्यापक हड़ताल की। 

गुलाबचंद सालेचा यद्यपि अपने प्रयास में सफल नहीं हुए; पर पचपदरा का नमक आंदोलन खूब चर्चित हो गया। आगे चलकर गांधी जी को इसके माध्यम से देशव्यापी जागृति करने में सफलता मिली। 

(संदर्भ : जनसत्ता 4.4.2010)

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